हिंदुओं, अपनी सुप्त अवस्था को त्यागो और स्वयं को सशक्त और प्रशिक्षित करो

स्वस्थ रहना, मजबूत रहना सबसे ज़्यादा आवश्यक है।

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Source- TFIPOST

सभी धर्मों में सबसे अधिक उदार और सहिष्णु सनातन धर्म है। हिंदू धर्म के लोग शुरू से ही अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ते रहे हैं। इसका कारण है हमारे शास्त्रों में पढ़ाया गया “अहिंसा परमो धर्मः धर्म रक्षा तथैव च:” का पाठ। सनातन धर्म में हर जीव चाहे वो पशु हो, पक्षी हो या मनुष्य हो, सभी के प्रति प्रेम की भावना रखना सिखाया जाता है। गाय को हिंदू धर्म में ‘मां’ की तरह पूजा जाता है। हाथी को भगवान गणेश का दूसरा रूप माना जाता हैं। परंतु अहिंसा का अर्थ यह कतई नहीं है कि आक्रामकता और कट्टरता के विरुद्ध अपनी सुरक्षा भी ना की जाए। भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं। इसके बावजूद देश के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना बढ़ने लगी है। स्थिति ऐसी हो गई है कि अपने ही देश में हिंदुओं को डर सताने लगा है! इसके पीछे की वजह है देश में बढ़ती कट्टरता। हाल की घटनाओं में हमने देखा कि कैसे इस्लामिस्टों ने चुन-चुनकर हिंदुओं का क़त्ल किया।

इसका ताजा मामला उदयपुर में देखने के लिए मिला जब नूपुर शर्मा के एक बयान की आड़ लेकर इस्लामिस्टों ने कन्हैया लाल की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी। कन्हैया लाल का दोष क्या था? उसके बेटे ने गलती से फेसबुक पर नूपुर शर्मा के समर्थन में एक पोस्ट डाल दी। बस इसके बाद इस्लामिस्ट उनके खून के प्यासे बन गए और कन्हैया लाल को जान से मारने की धमकी देने लगे। अंत में इन्हें कन्हैया लाल की जान लेकर ही सुकून मिला। कन्हैया लाल की हत्या के बाद इन इस्लामिस्टों में न कोई डर था और न ही इनके चेहरे पर कोई पछतावा। कन्हैया लाल ऐसे पहले व्यक्ति नहीं थे जो इस्लामिस्टों का शिकार हुए। कमलेश तिवारी समेत कई अन्य मामलों में भी हमें ऐसा ही देखने को मिला था। ऐसे में इस कट्टरता से बचने के लिए हमें मजबूत होना होगा।

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गांधी की भूमिका!

ध्यान देने वाली बात है कि हम इंसान आदिवासी हैं, आदिवासी कहने का संदर्भ मानव सभ्यता के प्रारंभिक विकास से जुड़ा है। संघर्ष करना हमारे डीएनए में है। जब हम आधुनिक समाज के सदस्य नहीं थे, तब हम क्षेत्र और संसाधनों के लिए लड़ते थे। संघर्ष के वे बिंदु अभी भी हैं लेकिन अब धार्मिक संघर्ष भी इसके साथ जुड़ गया है।

विशेष रूप से पिछले 2 सहस्राब्दियों में यह मानक अभ्यास बन गया है। ईसाई धर्म, इस्लाम और यहूदी धर्म की तिकड़ी के बीच चल रहा धर्मयुद्ध इसका एक प्रमुख उदाहरण है। भारत में अब्राहमिक लहरों के कारण किसी तरह सनातन भी उलझ गया। सनातनी काफिर और विधर्मी बन गए और इस तरह वे उपरोक्त तीन में से कम से कम दो के लिए दुश्मन समान हो गए। पिछले 1300 वर्षों में हिंदू समाज ने प्रतिरोध की कोशिश की और वे काफी हद तक सफल भी रहें। हालांकि, असफलता भी प्रतिरोध की कहानी का एक हिस्सा है।

लेकिन मोहन दास करमचंद गांधी के प्रवेश ने हिंदुओं की समस्या बढ़ा दी। उन्होंने एक अवधारणा पेश की और उत्पीड़न के मद्देनजर “पूर्ण अहिंसा” का आह्वान कर डाला। गांधी ने भारतीयों और विशेषकर हिंदुओं से कहा कि अगर कोई तुम्हारे गाल में मार भी दे तो तुम्हें पीछे नहीं हटना चाहिए बल्कि अपने दूसरे गाल को आगे करना चाहिए। उनका तर्क यह था कि आपके चेहरे पर कुछ राउंड घूंसे मारने के बाद व्यक्ति शर्मिंदगी महसूस करेगा और आपको नैतिक शर्म से मारना बंद कर देगा। इस सिद्धांत को नैतिक विश्वास देने के लिए विभिन्न ऐतिहासिक श्लोकों को संदर्भ से बाहर कर दिया गया।

उदाहरण के लिए “अहिंसा परमो धर्मः धर्म रक्षा तथैव च:” को भोले हिंदुओं को “अहिंसा परमो धर्मः” के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया गया। इसी तरह “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा को “वीर भोग्य वसुंधरा” के ढर्रे में बढ़ावा दिया गया। हिंदुओं द्वारा अपने शास्त्रों की उपेक्षा के अलावा बुद्धिजीवियों की बेईमानी इसके पीछे मुख्य कारण थी।

स्वतंत्रता के बाद गांधीवादी विचार प्रबल हुआ जिसने समाज की नैतिक विश्वसनीयता को और कमजोर कर दिया। लोग अहिंसा का पालन करने लगे लेकिन समाज ने उन लोगों के लिए लाभ पैदा किया जो हिंसा करने के लिए अधिक इच्छुक थे! हिंदुओं ने शस्त्रों को छोड़ने का विचार पहले ही कर लिया था साथ ही शास्त्रों के उपयोग को भी छोड़ना शुरू कर दिया। उसके बाद अगले 25 वर्षों में हिंदुओं ने रोटी और मक्खन कमाने पर ध्यान केंद्रित किया और धार्मिक कारणों को यूं ही छोड़ दिया।

जबकि दूसरी ओर कथित शांतिदूत हिंसा करने के बावजूद आकर्षण प्राप्त करते रहे। अफगानिस्तान के मुजाहिदीन अब कश्मीर तक पहुंच चुके थे और उनका नेटवर्क पूरे भारत में फैल गया था। भारत में ISI के गुर्गे 2014 से पहले के युग में आम बात थे। उसके बाद ISIS की कट्टरता फैलने लगी लेकिन शुक्र है कि एक राष्ट्रवादी सरकार के नेतृत्व में इसकी पैठ केरल जैसे क्षेत्रों तक ही सीमित रही। लेकिन इस विचार ने पैर जमा लिया और युवाओं को कट्टरपंथी बनाना शुरू कर दिया। दूसरी ओर हिंदू समाज उन्हीं घिसी-पिटे नियमों का पालन करता रहा जिसके अनुसार वे अपनी रक्षा के लिए अभी भी राज्य पर निर्भर हैं।

हिंदुओं को होना होगा मजबूत

तो फिर समाधान क्या है? कैसे हिंदू स्वयं को इन कट्टरपंथियों के हमले से बचा सकते है? जवाब है- आत्मरक्षा! आत्मरक्षा ही वो हथियार है जिसका इस्तेमाल कर हिंदू स्वयं को और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं। देखा जाए तो भारत का कानून भी आत्मरक्षा का अधिकार देता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 96 से लेकर 106 तक में आत्मरक्षा के अधिकार का जिक्र किया गया है। कानून के तहत हर व्यक्ति, स्वयं की सुरक्षा, अपनी पत्नी की सुरक्षा, अपने बच्चों की सुरक्षा, अपने करीबियों और अपनी संपत्ति की सुरक्षा कर सकता है। आत्मरक्षा केवल कानूनी ही नहीं बल्कि मौलिक अधिकार भी है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 मे मिले जीवन के अधिकार के तहत आता है।

ऐसे में किसी भी स्थिति में स्वयं या अपने परिवार की रक्षा करने के लिए हमें तैयार रहने की आवश्यकता है। आत्मरक्षा करने के लिए शस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त करना तो कठिन है परंतु इसके बिना भी आत्मरक्षा की जा सकती है। इसके लिए आवश्यकता है लोगों को अपनी ताकत पर काम करने की। जब भी किसी पर हमला होता है तो जाहिर तौर पर वो व्यक्ति घबरा जाता है। ऐसे में लोगों को आत्मरक्षा के तरीके समझ नहीं आते। परंतु अगर संयम से काम लिया जाए तो आसानी से स्वयं को किसी भी हमले से बचाया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि आप हर समय अलर्ट रहें जिससे किसी भी खतरे का आभास होने पर आप तुरंत जवाब दे सकें। ऐसी स्थितियों में आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। स्वयं को मानसिक तौर पर मजबूत रखना भी बेहद जरूरी है, हमला होने की स्थिति में धैर्य से काम लें।

आसपास ही देखा जाए तो आपको ऐसी कई चीजें मिल सकती है जिसका इस्तेमाल कर आप अपनी जान बचा सकते हैं। मान लीजिए आप ऐसी स्थिति में हैं जहां कोई आप पर हमला करने के लिए आगे बढ़ रहा है तो ऐसे में स्वयं की रक्षा के लिए अपने आसपास देखें। आपको कोई न कोई ऐसी चीज मिल ही जाएगी जिसका इस्तेमाल आप हमलावर को स्वयं से दूर रखने के लिए कर सकते हैं। उदाहण के तौर पर आप लाठी या फिर उसके समान किसी और चीज से अपनी आत्मरक्षा कर सकते हैं। लाठी को अगर आप चारों दिशाओं में ठीक से घुमाएंगे तो यह दुश्मन को आपसे दूर रख सकता है। लाठी चलाने के लिए किसी भी तरह के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। आप बस सही तरीके से अगर लाठी घूमाएंगे तो हमलावर को अपने से दूर रख सकते हैं। ऐसी ही और भी कई चीजें है जिनका इस्तेमाल आत्मरक्षा के लिए किया जा सकता है।

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अगर हमलवार आपके नजदीक आने का प्रयास कर रहा है तो आप एक जोर से मुक्का मारकर भी उसे दूर कर सकते हैं। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ तकनीक सीखने की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए आपके हाथों में तेज गति की आवश्यकता है जिसे आप केवल 5 मिनट के दैनिक अभ्यास से हासिल कर सकते हैं। हालांकि, केवल इसी से सबकुछ नहीं होगा। किसी भी स्थिति में स्वयं की जान बचाने के लिए एक मजबूत शरीर की भी आवश्यकता होती है। अगर आप हमलावर को स्वयं से दूर रखने में कामयाब हो जाते हैं तो इसके बाद आवश्यकता होगी वहां से बचकर भागने की। अगर किसी को अपनी जान बचाकर भागने की जरूरत है तो इसके लिए एक फिट शरीर भी चाहिए। आपका शरीर ऐसा है कि आप भाग नहीं सकते हैं तो आप स्वयं को खतरे में डाल सकते हैं।

इसके लिए आवश्यक है आप अपने शरीर को फिट बनाए रखें। प्रतिदिन व्यायाम करें, शरीर को फुर्तीला बनाए रखें। इसके लिए आप योग का भी सहारा ले सकते हैं। योग से शरीर अधिक मजबूत और लचीला होता है। सूर्य नमस्कार, उत्तानपादासन, पर्वतासन आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। इससे आपका शरीर लचीला, फुर्तीला और मजबूत रहेगा।

आत्मरक्षा के लिए शरीर को मजबूत बनाने और स्वयं को अलर्ट रखने के साथ आप सेल्फ डिफेंस से जुड़ी कुछ तकनीक भी सीख सकते हैं। आज कल ऐसे कई फिटनेस सेंटर के साथ ही हेल्थ क्लब्स में सेल्फ डिफेंस से जुड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे में स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए और मजबूत बनाने के लिए आपको इन तरीकों को अपनाना चाहिए।

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