जुबैर पर ज्ञान देने चला था जर्मनी, भारत ने ऐसा हड़काया कि अब मुंह छिपाते फिर रहा है

जर्मनी पहले अपना घर संभाल लो फिर ज्ञान देना!

jarmani

Source- TFIPOST.in

जिनके खुद के घर शीशों के होते हैं वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते। शायद इसका जर्मन अनुवाद जर्मनी में सुना दिया होता तो आज वो इतना ज्ञान नहीं बिखेर रहा होता। यूरोपीय नेता इतने विचलित हो गए हैं कि वे अपनी राजनीति को दुरुस्त रखने के लिए और कुनबा मजबूत करने के लिए उसे मीलों दूर के मुद्दों को खंगाल भारत के आंतरिक मुद्दों पर नौटंकी कर रहे है। बोरिस जॉनसन ने पुतिन के देश को गाली देकर अपनी घरेलू विफलता को छिपाने की कोशिश की। अब जर्मनी, यहूदियों के खिलाफ जनसंहार चलाने का इतिहास रखने वाला देश भारत को व्याख्यान दे रहा है काश उसे पता होता कि भारत उसका उपनिवेश नहीं है। खैर बुद्धिहीन विनाशय।

दरअसल, हाल ही में, जर्मन राज्य के कठपुतली प्रसारक डॉयचे वेले ने भारत में मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर अपनी सरकार के बयानों की सूचना दी। जर्मन सरकार के अनुसार, जुबैर की गिरफ्तारी भारत में प्रेस की स्वतंत्रता कैसे बाधक हो रही है उसका परिचय करा रही है। जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता क्रिश्चियन वैगनर ने कहा कि “जर्मनी इस मुद्दे पर नजर रख रहा है। जर्मनी के मुताबिक जुबैर एक पत्रकार हैं और जो कुछ भी कहते और लिखते हैं उसके लिए उन्हें सताया नहीं जाना चाहिए। गौरतलब है कि जुबैर ने खुद कहा है कि वह पत्रकार नहीं हैं। लेकिन ऐसे तत्व लगे पडे हैं उसे पत्रकार साबित करने के लिए।”

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ये नया भारत है प्रतिकार करना जानता है

अब भारत ऐसे विषय पर चुप रहे ऐसा 2014 के बाद संभव ही नहीं है, अब वो भूत बना बैठा नहीं रहता, अब वो प्रतिकार में विश्वास रखता है। भारत ने भी उसी तरह से पलटवार किया जैसा उसे करना चाहिए था। भारत ने उचित रूप से बयान को अनुपयोगी करार दिया। यह कहते हुए कि जर्मन सरकार ने भारत की संप्रभुता का सम्मान तार-तार करते हुए लक्ष्मण रेखा को पार कर लिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “यह अपने आप में एक घरेलू मुद्दा है। मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि इस मामले में एक न्यायिक प्रक्रिया चल रही है और मुझे नहीं लगता कि मेरे या किसी और के लिए किसी मामले पर टिप्पणी करना उचित होगा जो न्यायाधीन है, मुझे लगता है कि हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता अच्छी है मान्यता प्राप्त और बिना सूचना के टिप्पणियां अनुपयोगी हैं और इससे बचा जाना चाहिए।”

ज़ुबैर के लिए पुष्पों की वर्षा ऐसे ही नहीं हुई, सभी जर्मनी के इस बयान से हैरान थे पर यह जर्मनी देश में मुस्लिम प्रवासियों को लुभाने का एक प्रयास था। हिटलर के सत्ता से बेदखल होने के बाद, जर्मनी एक विक्षिप्त हो चुका देश था। इसके अतिरिक्त, कम जन्म दर और श्रम की कमी ने औद्योगिक विकास की कमर को तोड़ दिया था। इसलिए, 1950 के दशक में, जर्मनी ने प्रवासियों के लिए अपने द्वार खोल दिए। ये प्रवासी वैश्विक विश्व व्यवस्था में जर्मनी के फिर से उभरने का कारण रहे हैं। 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी की लगभग 8.32 करोड़ आबादी में से 1.37 करोड़ वास्तव में पहली पीढ़ी के अप्रवासी हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वामपंथी दलों ने जर्मनी को प्रवासियों का अड्डा बना दिया है। इतना अधिक कि वे अपने ही बुरे-भले तक का निर्णय नहीं ले रहे हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि 2016 में, एक महिला जर्मन राजनेता ने अपने यौन शोषण के लिए अपने वास्तविक बलात्कारियों को दोष देने से इनकार कर दिया था, मात्र इसलिए क्योंकि वे अप्रवासी थे।

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अगर आप्रवासियों की समस्या जर्मनी के लिए एक बड़ा संकट है, तो मुस्लिम आप्रवास एक और बड़ा संकट है। मुस्लिम दुनिया में जैस्मीन क्रांति के बाद में, औसतन 1 मिलियन लोगों ने सालाना आधार पर जर्मनी में डेरा डाल दिया जिनमें से अधिकांश मुसलमान हैं। ऐसे में अपने वोटबैंक को साधने के चक्कर में जर्मनी आधा बर्बाद तो ऐसे ही हो गया है। इसी बीच ज़ुबैर के मामले में अपना ज्ञान बिखेरने से पहले यदि अपना घर और घर की यथास्थिति देख ली होती तो निश्चित रूप से बेशर्माई के साथ ज़ुबैर के मामले में भारत को दोषी न ठहराता।

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