कहते है कि हर चीज एक निश्चित समय के लिए होती है। इसके बाद उसकी उपयोगिता खत्म हो जाती है। ऐसा ही कुछ दशकों पुराने मिग-21 (MIG-21) विमान के मामले में भी लगता है। गुरुवार 28 जुलाई 2022 को भारतीय वायुसेना का एक और मिग-21 दुर्घटना का शिकार हो गया। राजस्थान के बाड़मेड़ में यह विमान क्रैश हो गया, जिसके चलते दुर्भाग्यपूर्ण हमें अपने दो पायलटों को खोना पड़ा। विमान में मौजूद दोनों पायलटों की मौत हो गई। जमीन से टकराने के बाद विमान में आग लग गई थी। हादसा इतना भीषण था कि विमान का मलबा 1 किमी के दायरे में जाकर बिखर गया।
परंतु मिग-21 के साथ हादसे का यह पहला और नया मामला बिल्कुल भी नहीं है। कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो मालूम चलता है कि अब तक बहुत बड़ी संख्या में मिग-21 विमान हादसे की चपेट में आ चुके है और इसका शिकार होकर कई पायलटों की जान जा चुकी है। तो ऐसा क्या इन हादसे से बचने के लिए इन मिग-21 विमानों को भारतीय वायुसेना से हटाए जाने का समय नहीं आ गया है? क्या यह आवश्यक नहीं हो गया है कि इन विमानों को अब रिटायर कर देना चाहिए? आखिर कब तक “उड़ता ताबूत” कहे जाने वाला मिग-21 यूं ही उड़ान भरता रहेगा और देश के युवा पायलट ऐसे हादसों में शहीद होते रहेंगे?
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मिग-21 विमान हादसे को दावत देने वाला साबित हो रहा है
मिग-21 सोवियत काल के उन्नत लड़ाकू विमानों में से एक माना जाता है। मिग-21 ने अपनी पहली उड़ान वर्ष 1955 में भरी थी। वहीं भारतीय वायुसेना में इसे साल 1963 में शामिल किया गया था। उस दौर में इसे सबसे बेहतरीन विमानों के तौर पर देखा जाता है। मिग-21 अपने समय का सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक था। कई-कई मौकों पर इस विमान ने अपनी काबिलियत भी साबित कर दिखाई है। वे मिग-21 विमान ही था, जिसने बालाकोट एयरस्ट्राइक के दौरान पाकिस्तान के फाइटर जेट को खदेड़ दिया था। विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने मिग-21 बायसन से ही पाकिस्तान के F-16 को मार गिराया था।
परंतु अब देखा जाए तो यह विमान हादसे को दावत देने वाला साबित हो रहा है। यही कारण है कि इसे “उड़ता ताबूत” (Flying Coffins) और “विडो मेकर” (Widow Maker) जैसे नामों तक से बुलाया जाने लगा है। अधिकतर देश, जो मिग-21 विमानों का इस्तेमाल करते आ रहे थे उन्होंने इसका उपयोग करना बंद कर दिया है। दुनिया में सबसे अधिक हादसों का शिकार मिग-21 लड़ाकू विमान ही हुआ है। सोवियत संघ की वायुसेना ने इसे अपने बेड़े से वर्ष 1985 में ही हटा लिया था। बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी मिग-21 को रिटायर कर दिया। परंतु भारतीय वायुसेना इसे अपग्रेड करके लगातार इस्तेमाल कर रही है। अपग्रेड करने के बाद इन्हें मिग-21 बाइसन का नाम दिया गया।
भारतीय वायुसेना के पास मिग-21 बाइसन की करीब 6 स्क्वाड्रन है और एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 विमान शामिल रहते है। वायुसेना ने विमानों को अपग्रेड तो जरूर कर दिया, परंतु इसके बाद भी दुर्घटनाएं अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही। देश में मिग-21 से जितनी दुर्घटनाएं हुई है, वायुसेना के इतिहास में शायद ही उतनी किसी और विमान के साथ हुई हो। आंकड़ें हैरान करने वाले है। वर्ष 2012 में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंथनी ने संसद में जानकारी दी थी कि रूस से खरीदे गए 872 मिग विमानों में आधे से अधिक हादसे की चपेट में आ चुके है।
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मिग-21 पर वायुसेना की निर्भरता को कम करना होगा
टाइम्स नाउ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1971-72 के बाद से 400 से ज्यादा मिग-21 क्रैश हो चुके हैं। इन दुर्घटनाओं में 200 से भी अधिक पायलटों ने अपनी जान गंवाई। इसके अलावा 50 अन्य लोग भी हादसों का शिकार हो गए है। वहीं वर्ष 2010 से लेकर 2013 के बीच में मिग-21 के क्रैश के 14 मामले सामने आए थे। पिछले वर्ष यानी साल 2021 में अकेले यह लड़ाकू विमान पांच बार हादसों का शिकार हुआ था, जिसमें तीन पायलटों की मृत्यु हुई।
बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि पायलटों को मिग-21 के कारण बहुत समस्याएं होती है। उनके द्वारा मिग के कुछ मॉडल्स में दिक्कतों को लेकर शिकायतें भी की जा रही है। मिग-21 की लैंडिंग काफी तेज होती है और इन लड़ाकू विमानों की कॉकपिट विंडो कुछ इस प्रकार है कि पायलटों को सही तरीके से रनवे नजर नहीं आता, जिसके कारण परेशानी होती है। इनका सिंगल होने की वजह से भी खतरा बना रहता है। इंजन अक्सर उड़ते वक्त फेल हो जाता है। वहीं पक्षियों से टकराने के कारण भी मिग-21 के क्रैश होने की संभावना बनी रहती है।
इन सब कारणों से मिग-21 को भारतीय वायुसेना से हटाया जाना अब बहुत जरूरी बनता जा रहा है। हालांकि इसके साथ ही एक समस्या यह भी है कि अगर पुराने विमानों को हटाना है, तो वायुसेना के लिए उतने ही नए विमानों की भी आवश्यकता होगी। वायुसेना में नए विमानों को शामिल किया तो जा रहा है, परंतु अभी इसकी संख्या कम है। इसके चलते मिग-21 पर वायुसेना की निर्भरता बनी हुई है। जिस कारण जानकार मानते है कि अगले तीन-चार वर्षों तक मिग-21 का इस्तेमाल करने को मजबूर होना पड़ सकता है।
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