भारत में ‘खाद्यान्न संकट’ का रोना रोया जा रहा है लेकिन उसकी सच्चाई आपकी आंखे खोल देगी?

ऐसा स्कैम कहीं और नहीं!

खाद्यान संकट भारत

Source- TFIPOST HINDI

घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। ये कहावत हम सभी ने बचपन में अनेकों बार किसी न किसी बात पर काफी सुना होगा। इसका अर्थ भी स्पष्ट होगा – जब हाथ में कुछ न हो, तो लंबे चौड़े सपने पालने की भूल तो न ही करें। अब इसी बीच विभिन्न कारणों से ये अफवाह फैल रही है कि भारत में शीघ्र ही खाद्यान्न संकट उत्पन्न होने वाला है, और भारत भुखमरी के मुहाने पर आने वाला है?

पर क्या ये सत्य है? क्या इस तथ्य में तनिक भी सच्चाई है? हो सकता है, परंतु यदि अगर ऐसा है, तो आप फिर उसी जाल में फंस रहे हैं, जिसमें कुछ लोग भोले भाले पाठकों को फँसाकर मुफ्तखोरी की रेवड़ी बँटवाना चाहते हैं। यूं ही नहीं नरेंद्र मोदी ने कहा था, “हमें देश की रेवड़ी कल्चर को हटाना है। रेवड़ी बांटने वाले कभी विकास के कार्यों जैसे रोड नेटवर्क, रेल नेटवर्क का निर्माण नहीं करा सकते। ये अस्पताल, स्कूल और गरीबों को घर नहीं बनवा सकते। पीएम मोदी ने युवाओं से इस पर विशेष रूप से काम करने की बात कही और कहा कि ये रेवड़ी कल्चर आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित होगा”।

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परंतु ये ‘खाद्यान्न संकट’ का चक्कर है किस बारे में? असल में रूस यूक्रेन विवाद के पश्चात ही कई मीडिया पोर्टल्स ये खबरें फैला रहे हैं कि देश में “खाद्य संकट उत्पन्न हो रहा है”! विश्वास नहीं होता, तो इन हेडलाइंस को देख लीजिए –

परंतु क्या यही सच है? ऐसा भी नहीं है, क्योंकि हाल ही में भारत द्वारा विश्व तक भोजन नहीं पहुंचने के मुद्दे को लेकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियम पर प्रश्न खड़े किए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इंडोनेशिया के बाली में एक सेमिनार के दौरान अपने भाषण में खाद्यान्न निर्यात व्यवस्था को लेकर विश्व व्यापार संगठन से उदार बनने के लिए कहा। बाली में खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग को मजबूत करना” के विषय पर एक सेमिनार आयोजित किया गया था। इस सेमिनार में ही बोलते हुए सीतारमण ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) भारत को उसके सार्वजनिक भंडार से ऐसे देशों को खाद्यान्न निर्यात की इजाजत दे, जो खाद्य संकट से जूझ रहे हैं।

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तो क्या चावल और अन्न की कोई कमी नहीं है हमारे देश में?

ऐसा नहीं है, इस वर्ष उत्पादन में कमी आई है, परंतु इसका अर्थ ये भी नहीं कि अकाल आया है या खाद्यान्न संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है। भारत आज भी इतना अन्न उगा सकता है कि कम से कम अपना और अपने पड़ोसियों का पेट भर सके। इसी पद्वति पर निर्मला सीतारमण ने अभी WTO को उसके दोहरे मापदंडों के लिए आड़े हाथों भी लिया था। असल में संगठन के सदस्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खरीदे गए भोजन को निर्यात करने की अनुमति नहीं दी जाती। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें रियायती दरों पर खरीदा जाता है।

इस पर भारत की वित्त मंत्री ने कहा- “डब्ल्यूटीओ इस तरह से खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को निर्यात के लिए बाजार में लाने की इजाजत नहीं देता। यह एक ऐसी स्थिति है जो उरुग्वे दौर के दिनों से मौजूद है। हम व्यापार करने के इच्छुक हैं। भारत के द्वारा भूख या फिर खाद्य असुरक्षा को कम में मदद की जा सकती है, परंतु WTO से इसकी इजाजत नहीं है।”  ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि खाद्यान्न का संकट तो निस्संदेह है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। परंतु ये संकट इतना भी भीषण नहीं है, कि ये भारत को ही लील जाए जैसे ब्रिटिश काल में हुआ करता था, और उसका भी एक स्पष्ट कारण था – हम स्वतंत्र नहीं थे।

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