हाल ही में हुए भारत के राष्ट्रपति के चुनावों में भाजपा की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मु भारी मतों से जीती हैं। हालांकि केवल उनकी बड़ी जीत ही अकल्पनीय नहीं थी, जो अकल्पनीय और अविश्वनीय हुआ वह था मुर्मु को विपक्ष के कई विधायकों और सासंदों का वोट। वैसे तो केंद्र में बैठे पक्ष और विपक्ष का 36 का आंकड़ा है लेकिन इस बार विपक्ष ने जो क्रॉस- वोटिंग की है उसने उन्हीं की एकता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है।
भाजपा का सबसे अधिक विरोध करने वाली तृणमूल कांग्रेस की नेता और बंगाल की मुख्यमंत्री, ममता बनर्जी जिन्होंने स्वयं विपक्ष से राष्ट्रपति के पद के लिए यशवंत सिन्हा का नाम सुझाया था वह भी द्रौपदी का नाम सुनकर पीछे हट गयीं और उन्होंने भाजपा की प्रत्याशी के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया। यह भले ही आम जनता के लिए हैरान करने वाला था लेकिन राजनीती के गलियारों को समझने वाले इसके पीछे का भेद भी समझ गए। यह शुद्ध और सरल चुनावी गणित है।
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ममता के समर्थन का कारण
आगमी 2023 में होने वाले चुनाव जिनमें मिदनापुर के पुरुलिया, बांकुरा और जंगलमहल जिलों में मुख्य रूप से आदिवासी रहते हैं। द्रौपदी मुर्मु संथाल जनजाति की हैं। भले ही वह ओडिशा से हैं लेकिन वह पहली आदिवासी जनजाति की महिला हैं जो इस मुकाम तक पहुंची हैं। ऐसे में जो भी नेता मुर्मु के खिलाफ खड़ा होता या बोलता वह एक तरह से आदिवासियों का दुश्मन बन जाता और उनका वोट खो देता।
ममता दीदी अपना वोट बैंक को बरकरार रखना चाहती हैं। साथ ही द्रौपदी एक महिला प्रत्याशी थीं जिनका वह चाहकर भी विरोध नहीं कर सकती थीं। इन्हीं दो कारणों से उन्हें मुर्मु के समर्थन में आना पड़ा। साथ ही भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव और 2021 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में काफी सीटें जीती थीं। वह इस विकास को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में यदि वह मुर्मु के खिलाफ खड़ी होतीं तो आगामी चुनाव में जो कुछ वोट उन्हें मिलने थे वे भी नहीं मिलते। यहीं से मुर्मु के समर्थन की बात सामने आती है। झारखड के मुक्ति मोर्चा पार्टी से मुख्यमंत्री बने सोरेन भी इसी कारण से द्रौपदी के खिलाफ वोट नहीं कर सके। बाकी सभी सांसदों और विधायकों, जिन्होंने क्रॉस- वोटिंग की है उनके अपने दल के विरुद्ध खड़े होने के पीछे यही कारण था कि वे जनजाति समूह को नहीं खोना चाहते थे।
खैर, भाजपा ने अपना पूरा गणित देख जोड़कर जो मुर्मु को राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया उनकी वह परियोजना काम कर गयी और उन्होंने न केवल विपक्ष को हराया बल्कि उनकी एकता को भी तार- तार करके रख दिया। राष्ट्रपति चुनाव के बाद अब बारी आती है उप- राष्ट्रपति चुनाव की जिसमे भाजपा के प्रत्याशी जगदीप धनकड़ है जो पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं और विपक्ष ने खड़ा किया है कोंग्रेसी नेता मार्गेरेट अल्वा को जो राजस्थान की पूर्व राज्यपाल रह चुकी हैं।
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TMC ने उपराष्ट्रपति चुनाव का किया बहिष्कार
गुरुवार को तृणमूल कांग्रेस पार्टी के नेता अभिषेक बनर्जी ने कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी उपराष्ट्रपति चुनाव का बहिष्कार करेगी। बनर्जी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस का एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन करने का सवाल ही पैदा नहीं होता और रही बात विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा की, तो उन्हें टीएमसी से सलाह लिए बिना तय किया गया था इसलिए टीएमसी कांग्रेस का भी इन चुनाव में समर्थन नहीं करेगी।
TMC will not support NDA's Vice-Presidential candidate Jagdeep Dhankhar. The party will abstain from the upcoming Vice Presidential polls as it was decided in the meeting: TMC MP Abhishek Banerjee
(File pic) pic.twitter.com/gf12NiuhME
— ANI (@ANI) July 21, 2022
बंगाल के उपराज्यपाल के रूप में काम कर चुके जगदीप धनखड़ और दीदी के बीच में तब से मनमुटाव है जब 30 जुलाई, 2019 को धनखड़ ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में पदभार ग्रहण किया था। अब जब तृणमूल ने उप- राष्ट्रपति चुनाव से अपना पल्ला पहले ही झाड़ लिया है तो ऐसे में बाकी का विपक्ष भी अधिक दिन तो ठहरने से रहा। उपराष्ट्रपति का चुनाव 6 अगस्त को एम वेंकैया नायडू के उत्तराधिकारी का चयन करने के लिए किया जाएगा, जिनका कार्यकाल 10 अगस्त को समाप्त हो रहा है। हालाँकि मुर्मु की बड़ी जीत के बाद जिस तरह से विपक्ष मायूस होता दिख रहा है यह कहना गलत नहीं होगा कि अभी द्रौपदी मुर्मु ने शपथ भी नहीं ली है और विपक्ष उपराष्ट्रपति चुनाव को जीतने की हर उम्मीद छोड़ चुका है।
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