ईसाई मिशनरियों की उपज था द्रविड़ आंदोलन? सबकुछ जान लीजिए

उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच में किसने पैदा की खाई?

पेरियार

Source- TFI

आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा सभी को था और आखिर वही सिद्ध हुआ जिसके बारे में बोलते सब थे परंतु स्पष्ट तौर पर बात कोई नहीं करता था। तमिलनाडु में हिंदू विरोध की जो विषबेल द्रविड़ आंदोलन के नाम पर पड़ी थी और जो नौटंकी सत्ताधारी डीएमके आए दिन हिंदू विरोध के नाम पर करती आई है, उसके पीछे केवल एक कारण है – ईसाई मिशनरी। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे तमिलनाडु का कथित द्रविड़ आंदोलन असल में ईसाई मिशनरियों की ही उपज है और डीएमके के स्थानीय नेता भी अब इस बात को स्वीकारते दिख रहे हैं कि अगर ईसाई मिशनरियां न होती तो तमिलनाडु का विकास न होता।

असल में इन दिनों डीएमके के नेता रह चुके तमिलनाडु विधानसभा के स्पीकर का लगभग एक माह पूर्व दिया गया बयान काफी तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वो अपने ईसाई संबंधों को लेकर काफी गर्व महसूस करते दिख रहे हैं। तमिलनाडु विधानसभा के स्पीकर एम अप्पावु ने ईसाई मिशनरियों को लेकर एक बयान दिया था जिस पर सियासी बवाल मच गया है। उन्होंने इस टिप्पणी के जरिए राज्य के विकास का श्रेय ईसाइयों को देने की कोशिश की थी।

28 जून 2022 को अप्पावु और डीएमके एलएमए इनिगो इरुदयाराज तिरुचिरापल्ली में सेंट पॉल मदरसा के शताब्दी समारोह में थे। कार्यक्रम में अप्पावु ने कहा था कि “अगर ईसाई पिता और बहनें नहीं होती तो तमिलनाडु बिहार जैसा होता। कैथोलिक पिता और बहनों ने ही मुझे आज इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की। तमिलनाडु सरकार आपकी सरकार है। आपने बनाया है। आपकी प्रार्थना और उपवास ने इस सरकार का गठन किया। कैथोलिक ईसाई और ईसाई पिता सामाजिक न्याय और द्रविड़ मॉडल सरकार का मुख्य कारण हैं।”

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वो इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “आपको (कैथोलिक ईसाई) किसी पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है। आप अपनी सभी समस्याओं को सूचीबद्ध कर सीधे मुख्यमंत्री को दे दें। वह किसी चीज से मना नहीं करेंगे और सब कुछ सुलझा लेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री जानते हैं कि आप इस सरकार के कारण हैं। यह आपकी सरकार और आपका मुख्यमंत्री है। मैं इसमें आपके साथ हूं। अगर ईसाई हटा दिए जाते हैं तो तमिलनाडु में विकास नहीं होगा। तमिलनाडु के विकास का मुख्य कारण कैथोलिक ईसाई हैं। आज का तमिलनाडु आप पर बना है।”

परंतु ये कोई नई बात नहीं है। यह वही तमिलनाडु की स्टालिन सरकार है जिसने एक कॉलेज डीन का ट्रांसफर केवल इसलिए करा दिया क्योंकि उन्होंने Hippocrates Oath के बजाए महर्षि चरक की शपथ दिलवाई थी। ‘महर्षि चरक शपथ’ दिलाने के मामले में राज्य सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए कॉलेज के डीन डॉ. ए. रथिनवेल (Dr. A. Rathinavel) को वेटिंग लिस्ट में डलवा दिया यानी उन्हें निलंबित नहीं किया परंतु आधिकारिक रूप से स्थानांतरित भी नहीं किया। एक प्रेस नोट में तमिलनाडु सरकार ने कहा, “सभी मेडिकल कॉलेज लंबे समय से मेडिकल छात्रों को हिप्पोक्रेटिक ओथ दिला रहे हैं। ऐसे में हिप्पोक्रेटिक ओथ के स्थान पर महर्षि चरक शपथ कराना निंदनीय है। कॉलेज के डीन को उनके पद से हटा दिया गया है और उन्हें वेटिंग लिस्ट में डाल दिया है।”

हालांकि, तमिलनाडु में ईसाइयों का इतिहास भी बहुत विस्तृत है। उदाहरण के लिए नीचे दी गई वर्ष 2021 की इस वीडियो को देखिए। कन्याकुमारी के अरुमनई में 18 जुलाई 2021 को आयोजित एक सभा में ‘जनन्याग क्रिस्थुवा पेरवई अमाईपु’ नामक NGO के सलाहकार व ईसाई पादरी George Ponnaiah ने बेहद आपत्तिजनक भाषण दिया था। अपने भाषण में उसने भारत माता से लेकर पीएम मोदी तक के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था।

तमिलनाडु के कुछ मंत्रियों के नाम का जिक्र करने के बाद इस पादरी ने अपने भाषण में कहा कि DMK ने हमारे (ईसाई और मुस्लिम) वोटों के कारण दक्षिणी जिलों में चुनाव जीता। उसने आगे कहा, “DMK को मिली जीत हमारे द्वारा दी गई भिक्षा थी।” भाषण के दौरान खुलासा करते हुए पादरी George Ponnaiah ने कहा था कि “हमारा (ईसाई और मुस्लिम) बहुमत इस क्षेत्र में 60% से अधिक है जो बढ़कर 70% और उससे अधिक हो जाएगा। इसे कोई नहीं रोक सकता।”

इस ईसाई पादरी ने नागरकोइल के भाजपा विधायक और भारत माता के लिए बेहद अपमान जनक भाषा में कहा कि “एम आर गांधी ने जूते नहीं पहने हैं क्योंकि वह भारत माता को चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं। लेकिन हम इसलिए जूते पहनते हैं ताकि हमारे पैर गंदे न हों और भारत माता के कारण हमें कोई बीमारी न हो।”

परंतु इन लोगों को इतना कुछ बोलने एवं भारत और भारतीयता के विरुद्ध विष उगलने की स्वतंत्रता कहां से मिल जाती है? जब उनके आराध्य ही द्रविड़ आंदोलन के नाम पर ईसाइयत का गुपचुप प्रसार करें तो ये कैसे संभव नहीं होगा? जी हां, हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के कलंक और घोर वामपंथी ईवी पेरियार रामास्वामी की, जिन्होंने द्रविड़ आंदोलन के नाम पर न केवल ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया अपितु भारत के विभाजन को अपना समर्थन भी दिया।

वो कैसे? 1929 से 1935 के बीच जब दुनिया आर्थिक तंगी से जूझ रही थी तब पेरियार सोवियत संघ की सैर कर रहे थे। इसके लिए उन्हें धन कहां से मिला? आज तक इस पर कई तरह के सवाल खड़े होते रहे हैं। वो पेरियार ही थे जो द्रविड़ अभियान के नाम पर हिंदी विरोध अभियान, सनातन संस्कृति को अपमानित करना और सनातनियों को खुलेआम धर्मांतरण के लिए भड़काने का काम करते थे। इसी पेरियार रामास्वामी ने खुलेआम मोहम्मद अली जिन्ना और उनके अलगाववादी विचारों का समर्थन किया था परंतु इन्हीं वामपंथियों को जब उनके बारे में उल्लेख करना पड़े तो वे बगले झांकने लगते हैं। पेरियार रामास्वामी का यह भी कहना था कि वह हिंदू नहीं हैं। यही नहीं, उन्होंने जनगणना (1980) में तमिलनाडु के लोगों से यह अपील की कि जनगणना के दौरान वे अपने आप को हिंदू न कहें जिससे धर्मांतरण के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ था।

जिस पेरियार को डीएमके और तमिलनाडु के वर्तमान सीएम एम के स्टालिन ‘समाज सुधारक’ के रूप में पेश करते रहे हैं, उन्हें हिंदुओं को अपमानित करने में विशेष आनंद मिलता था। वो सार्वजनिक तौर पर भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के चित्रों को जूतों से मारते थे और श्रीराम के पुतले जलाने के लिए उन्हें एक बार हिरासत में भी लिया गया था। जिस पेरियार रामास्वामी को DMK ‘सामाजिक न्याय के पुरोधा’ के तौर पर पेश करती है वास्तव में उससे दूर-दूर तक उनका कोई नाता नहीं था।

कहने को पेरियार रामास्वामी महिला सशक्तिकरण पर लंबे चौड़े भाषण देते थे लेकिन वेंकटप्पा मणि अम्मा से विवाह करने के बाद उनका ये सारा ज्ञान हवा में उड़ गया था। वेंकटप्पा उनकी दूसरी पत्नी थीं। जब इनका विवाह हुआ तो वेंकटप्पा मात्र 31 वर्ष की थी और पेरियार स्वयं 73 वर्ष के थे। बताया जाता है कि वेंकटप्पा मणि अम्मा को पेरियार ने गोद लिया था और उन्हीं से शादी कर ली। अपनी ही दत्तक पुत्री से विवाह कैसा सामाजिक न्याय है, क्या DMK बताने का कष्ट करेगी?

वास्तव में DMK नेताओं ने अपने बयान से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यह सिद्ध कर दिया है कि जो द्रविड़ आंदोलन कथित रूप से ‘जातिवाद’ और ‘हिंदुवाद’ का विरोध करने के लिए प्रारंभ किया गया था वह वास्तव में ईसाइयत का एक अभिन्न अंग था, जो इस धर्म के प्रचार प्रसार में काफी सफल रहा है और अब इस बात को खुलेआम स्वीकारने में सत्ताधारी पार्टी को न कोई लज्जा है, न कोई ग्लानि!

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