हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। यह कोई आम काव्य रचना नहीं है, दुष्यंत कुमार द्वारा रचित इन पंक्तियों का भाव बहुत बड़ा है। वर्तमान में यह रचना देश के मुकुट जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है। वर्ष 2019 से केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से चुनावों का इंतज़ार कर रही घाटी में अब चुनाव की तैयारियां अपने अंतिम पड़ाव पर है। हाल ही में चुनाव आयोग ने जम्मू और कश्मीर में मतदाता सूची के सारांश संशोधन का आदेश दिया है जो पिछले तीन वर्षों से अपडेट नहीं किया गया है। केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव के संचालन के लिए अभ्यास शुरू करने से पहले संशोधन अनिवार्य है, जो पिछले लगभग चार साल से देय हैं। ऐसे में सूची अपडेट करने की प्रक्रियाएं ज़ोरों पर है।
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दरअसल, चुनाव आयोग ने निर्देश दिया है कि विशेष सारांश संशोधन का पूरा अभ्यास 31 अक्टूबर, 2022 तक मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के साथ पूरा किया जाएगा। ध्यान देने वाली बात है कि 5 अगस्त, 2019 जिस दिन राज्य से कलंकित दो धाराएं, धारा 370 और 35A हटी थी, उसी दिन से संवैधानिक परिवर्तन और परिसीमन अभ्यास के कारण जम्मू-कश्मीर में मतदाता सूची का संशोधन नहीं किया जा सका था। चुनाव आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार, एकीकृत मसौदा मतदाता सूची 1 सितंबर, 2022 को प्रकाशित की जाएगी।
जारी अनुसूची में कहा गया है कि मतदान निकाय के अनुसार, आपत्तियां 1 सितंबर से 30 सितंबर के बीच दर्ज की जा सकती हैं और 15 अक्टूबर तक उनका निपटारा किया जाएगा। मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन 31 अक्टूबर को किया जाएगा। इससे पहले मई में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा एवं अन्य संसदीय क्षेत्रों के बड़े पैमाने पर पुनर्गठन की सिफारिश की थी। अपनी अंतिम रिपोर्ट में, आयोग ने सात अतिरिक्त विधानसभा क्षेत्रों की सिफारिश की, जिसमें जम्मू के लिए छह और कश्मीर के लिए एक है।
केंद्र शासित प्रदेश में सीटों की कुल संख्या को 83 बढ़ाकर 90 तक ले जाने के तहत, जम्मू संभाग में सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई है, जबकि कश्मीर घाटी में सीटें 46 से 47 हो गई है। खबरों की मानें तो चुनाव आयोग इस साल के अंत में स्थिति की सुरक्षा की समीक्षा करेगा और अंतिम निर्णय लेने से पहले केंद्र शासित प्रदेश में बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनाव होगा। ज्ञात हो कि जम्मू-कश्मीर में जून 2018 से निर्वाचित सरकार नहीं है। पिछली सरकार तब थी जब भाजपा ने पीडीपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया था, जिससे पीडीपी-भाजपा गठबंधन की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को उस दौरान इस्तीफा देना पड़ा था।
उसके बाद राज्य को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की कवायद को लेकर और दो घृणास्पद धाराओं का देश से निस्तारण करके, सभी बिंदुओं पर गहन चिंतन के बाद सारी शक्तियां केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यापाल को दे दी गई। भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया। परिसीमन की कवायद ने जम्मू-कश्मीर की जम चुकी राजनीति को केंद्र स्तर पर ले लिया क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने पिछले दो वर्षों में कई बार कहा था कि केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव परिसीमन के पूरा होने के बाद ही होंगे। ऐसे में अब परिसीमन और मतदाता सूची के अंतिम चरण के बाद जल्द ही राज्य में चुनावों की बेला आएगी और पुनः राजनीति की खबरें जम्मू और कश्मीर से आनी आम हो जाएंगी।
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