हाय रे! ‘दहाड़ते शेर’ पर वामपंथियों का यह ‘गीदड़ विलाप’ इतना मज़ा क्यों आ रहा है!

शेर है तो दहाड़ेगा ही तुम मिमिया क्यों रहे हो प्रिय वामपंथियो?

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Source- TFIPOST.in

नरेंद्र मोदी, हमारे वामपंथी बंधुओं को सुकून का एक क्षण भी नहीं दे सकते। बेचारे सोचे थे कि श्रीलंका में सरकार गिरवाके रवीश के हसीन सपने देखेंगे, कि तुरंत महोदय ने संसद के नए परिसर का शिलान्यास करा दिया, एवं उसके शिखर पर निर्मित भव्य अशोक स्तम्भ का गाजे बाजे सहित अनावरण किया, जिसे देख सभी वामपंथियों को पच नहीं रहा है। पीएम मोदी द्वारा नवीन संसद परिसर के शिलान्यास एवं नवनिर्मित अशोक स्तम्भ के अनावरण से वामपंथी त्राहिमाम कर उठे हैं, और कैसे एक नए भारत का उदय है, जहां तुष्टीकरण और नौटंकियों के लिए कोई स्थान नहीं।

पीएम मोदी ने अनावरण किया तो किया, परंतु जिस प्रकार से अशोक स्तम्भ को बनवाया, और उसकी विधिवत पूजा करवाई, उससे वामपंथियों के काटों तो खून नहीं। उदाहरण के लिए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को ही देख लीजिए, जो पीएम मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पूजा करते देख कर भड़क गए। जनाब के अनुसार, “संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को विभाजित करता है, ऐसे में सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए संसद भवन के शीर्ष पर राजकीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा के स्पीकर लोकसभा का प्रतनिधित्व करते हैं, वो सरकार के अधीन नहीं हैं”।

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चलिए, ये तो हुई ओवैसी की बात, और एक बार को उनकी बात मान भी लें, क्योंकि विपक्षी सांसद हैं, वैसे माननी तो नहीं चाहिए, फिर भी मान लेते हैं, परंतु फिर आते हैं उच्च कोटी के ढपोरसंख,  अमेरिकी श्रेणी के लायर, क्षमा करें, द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन, जो ट्वीट करते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने घर में प्रार्थना करनी चाहिए और अगर वो खुले में प्रार्थना करना चाहते हैं तो ये भारतीय संघ का कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं होना चाहिए। उन्होंने उन्हें ‘बार-बार ऐसा अपराध करने वाला’ बता दिया और कहा कि ये स्पष्ट रूप से गलत है”।

जब लोगों ने इस फ्रॉड को घेरना प्रारंभ किया, तो महोदय नरेंद्र मोदी को टैग करते हुए ट्वीट किये, “जिन्हे नरेंद्र मोदी के हिन्दू पूजन से समस्या नहीं, उनसे मैं पूछना चाहूँगा कि यदि पूर्व उपराष्ट्रपति, माननीय हामिद अंसारी जी ने यदि इस्लामिक रीति रिवाज के अनुसार यही काम किया होता, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती? अपने घटिया जीवन में कम से कम एक बार ईमानदारी से बताइएगा!”

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परंतु यह रीति यहाँ पर खत्म नहीं होती। जिन वामपंथी दलों को पूजा-पाठ से कोई वास्ता न हो, उनके प्रतीक CPI(M) ने तुरंत बयान जारी कर दिया कि ‘धार्मिक कार्यक्रमों’ को राजकीय प्रतीक के अनावरण से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। पार्टी ने दावा किया कि ये सबका प्रतीक है, न कि किसी खास धार्मिक विचार को मानने वालों का। साथ ही राष्ट्रीय समारोहों से ‘धर्म’ को अलग रखने की बात की है।

कांग्रेस के चाटुकार शिरोमणि जयराम रमेश ने तो यहाँ तक ट्वीट कर दिया कि अशोक स्तम्भ के मूल स्वरूप को ही बदल देना राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान, ये जानते हुए भी कि अशोक स्तम्भ के मूल स्वरूप वही है, जो सारनाथ में निर्मित धम्म स्तम्भ का था, और जिसके प्रतीक प्रारंभ में स्वतंत्रता के पश्चात डाक टिकटों पर भी दिखाते थे। पर नहीं जी, विरोध करने के लिए विरोध करना है, और फिर #अशोक_स्तम्भ_मत_बदलो भी ट्रेंड कराना है।

अब वर्तमान अशोक स्तम्भ के प्रति अंधविरोध से विपक्ष ने भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी कुंठा को जगजाहिर किया है, जिसके लिए जितना बोलें उतना कम पड़ेगा, और सच कहें, तो ये कुंठा उन्हें आजीवन विपक्ष में बिठाने के लिए पर्याप्त हैं। शायद इसीलिए एक विश्लेषक सुनंदा वशिष्ट ने खूब कहा है, “दिखा दीजिए एक सिंह जो दहाड़े नहीं और मैं दिखा दूँगी एक उदारवादी जो बुद्धि से ईमानदार हो”।

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