‘पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति भारत से अच्छी है’, वैश्विक एजेंसियों को हुआ क्या है?

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Kaleen Bhaia to World Bank

Source- TFI

वैश्विक स्तर के संगठनों और निकायों ने मानो जैसे भारत को हमेशा पाकिस्तान से जबरन कमतर दिखाने की कसम ही खा ली है। कभी खानापूर्ति की दर, कभी ट्रेड इंडेक्स, कभी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लेकर तो कभी तमाम ऐसे मामलों पर भारत और पाकिस्तान का बिना सर-पैर का कथित तुलनात्मक अध्ययन बड़ा निंदनीय और हास्यास्पद हो चला है। जिस पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू त्रास झेल रहे हैं, उसी पाकिस्तान को लेकर वर्ल्ड बैंक ने ऐसी रिपोर्ट पेश की है जिसे ‘कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति का कुनबा जोड़ा’ कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि यहां भी पाकिस्तान को भारत से ऊपर ही दिखाया गया है।

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दरअसल, वर्ल्ड बैंक के एक हालिया अध्ययन जिसका शीर्षक है ‘Reshaping Social Norma about Gender: A way forward’, इस शीर्षक से श्रम कार्य बल में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुछ विचित्र टिप्पणी की गई है। यह अध्ययन भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव जैसे कुछ दक्षिण एशियाई देशों पर केंद्रित था। इस अध्ययन में यह बताया गया है कि महामारी में असमान वसूली ने दक्षिण-एशियाई देशों को कई नीतिगत चुनौतियों के साथ छोड़ दिया है जो रूस-यूक्रेन संकट के प्रभाव से और अधिक बढ़ गए हैं। हालांकि, धीरे-धीरे लिंग असमानताओं के बारे में समझाते हुए दूसरों के बीच कर व्यवस्था में आवश्यक बदलाव आदि के साथ रिपोर्ट धीरे-धीरे उनके एजेंडा को आगे बढ़ाती है, वहीं जो सामान्य रूप से भारत और विशेष रूप से हिंदुओं को नीचा दिखाने के वाला एजेंडा होता है, इसमें उसी का अंश प्रस्तुत हुआ है।

ज्ञात हो कि इस रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक आर्थिक विकास और श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी के बीच समानांतर रेखा खींचने का प्रयास करता है और खुद उपरोक्त विचार को यह कहकर ध्वस्त कर देता है कि दक्षिण एशिया में संबंध काफी जटिल हैं। इस रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक का मुख्य टारगेट भारत था और भारत को लक्षित करने के लिए भारत के डेटा की तुलना पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ की गई थी। रिपोर्ट में संक्षेप रूप में बताया गया है कि आर्थिक विकास बांग्लादेश और यहां तक ​​कि पाकिस्तान जैसे देशों में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि के अनुरूप है। हालांकि, भारत के मामले में महिलाओं की भागीदारी केवल एक सीमा तक ही बढ़ी है।

आज तक हमारी पाठ्यपुस्तकों में यह पढ़ाया आता जा रहा है कि सामान्य रूप से भारत और हिंदू धर्म अत्यंत प्रतिगामी, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को खारिज करने वाला है। हिंदुओं के बीच पितृसत्ता, स्त्री द्वेष और लिंगवाद एक अतिरंजित विचार है, दशकों से वाम-उदारवादी गुटों द्वारा यही प्रचारित किया गया है और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन कुंठित राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी गुटों ने ‘अंतरराष्ट्रीय संगठनों’ में भी प्रवेश कर लिया है। इसके परिणामस्वरूप वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक 2021 में Female Labour Force Participation (FLFP) अर्थात् महिला श्रम बल में बांग्लादेश में भागीदारी 35 फीसदी, पाकिस्तान में 21 फीसदी और भारत में 19 फीसदी है। अब यह धूर्तपना हो या भारत के प्रति कुंठित सोच वो विचारणीय है पर वर्ल्ड बैंक की इस सोच से यह प्रदर्शित होता है कि कैसे वो भारत को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।

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