रहने दो बॉलीवुड, मधुबाला को बड़े पर्दे पर चित्रित कर पाना तुम्हारे बस की बात नहीं

मधुबाला तो मधुबाला थीं, उन्हे आत्मसात करना मज़ाक थोड़े न है!

Madhubaala

Source- TFIPOST.in

कुछ लोगों का रूप तो दुनिया को मोहित करता है पर वही रूप स्वयं के लिए अभिशाप भी बन सकता है। भारतीय सिनेमा की सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में से एक मधुबाला की बड़ी विचित्र जीवन यात्रा थी, उनके उस जीवन को अब जल्द ही सिल्वर स्क्रीन पर भी लाया जाएगा।

मुमताज़ जहां बेगम दहलावी जिन्हे हम मधुबाला के नाम से बेहतर जानते हैं। अब शीघ्र ही एक फिल्म के रूप में पुनः आप सबके समक्ष होंगी। ‘शक्तिमान’ को सिल्वर स्क्रीन पर लाने प्रोड्यूसर्स के साथ मधुबाला के परिवार की बातचीत सुनिश्चित हुई है और कई प्रशंसकों ने अपने चॉइस भी सोशल मीडिया पर प्रसारित करने शुरू कर दिए हैं। आज भी कोई अगर इनकी एक झलक देख ले तो इनका प्रशंसक अवश्य बन सकता है, पर अब बॉलीवुड इस योग्य नहीं है कि मधुबाला के जीवन को आत्मसात कर सके।

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बॉलीवुड अब इतना भी योग्य नहीं है कि मधुबाला के रोल के योग्य ढंग की एक एक्ट्रेस निकाल पाए। यही कड़वा सत्य है। बॉलीवुड की वर्तमान बिरादरी इस योग्य भी नहीं कि अपने दम पर एक हिट फिल्म भी निकाल सके। मधुबाला जैसी विचित्र व्यक्तित्व को आत्मसात करना तो बहुत ही दूर की बात है । ये जो आपकी अनन्या पांडे, आलिया भट्ट, दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा है न इनमें न वो रूप है, न वो लावण्य, न वो शिष्टाचार, और न ही वो रम्यता, जो इस भूमिका को अलग ही स्तर पर ले जा सके।

परंतु ऐसा क्यों है? ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं, ‘शाबाश मिट्ठू’ को ही ले लीजिए। ये फिल्म मिताली राज के ऊपर थी, जो भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व खिलाड़ी और पूर्व कप्तान थी। अब ये कोई इतनी भी रोचक कथा नहीं थी परंतु बनाई जा सकती थी। सारे किए कराए पर एक व्यक्ति ने पानी फेर दिया। स्वयं मुख्य अभिनेत्री तापसी पन्नू ने।

उदाहरण के लिए एक रियलिटी शो पर अपने फिल्म शाबाश मिट्ठू’ के प्रोमोशन हेतु अभिनेत्री तापसी पन्नू और पूर्व क्रिकेटर मिताली राज दोनों ही आए थे। इस दौरान जब उनसे पूछा गया कि पीएम मोदी के साथ उनका वार्तालाप कैसा था, तो सबको चौंकाते हुए मिताली राज ने कहा, जब हम 2017 के वर्ल्ड कप के बाद वापस आए थे। उस वक्त जिस तरह से एयरपोर्ट पर हमारी रिसेप्शन हुई है और हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें टाइम दिया। हर एक लड़की को उन्होंने नाम से पहचाना। हर लड़की के सवाल का जवाब दिया” और अभी तो हमने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ और ‘हसीना पारकर’ पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की है।

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तो हम कैसे मान ले कि जो बॉलीवुड हमारे देश के नायकों को ढंग से न्याय देने में भी आनाकानी करता हो। वह ऐसे विचित्र और विकट व्यक्तित्व को बिना लाग लपेट के सिल्वर स्क्रीन पर आत्मसात कर सकता है? हम कैसे मान ले कि जिस बॉलीवुड को एक काल्पनिक फिल्म ‘शमशेरा’ में भी जातिवाद का विष घुसेड़ने की खुजली थी। वह मधुबाला के जीवन को बिना एजेंडे के दिखा सके? क्या हमने नहीं देखा कि सरदार उधम सिंह के जीवन पर बनी ‘सरदार उधम’ का क्या परिणाम निकला? तो क्या हम साउथ से अभिनेत्रियाँ खोजे? पता नहीं, ये तो भविष्य के गर्भ में होगी, परंतु यदि वे मधुबाला के विचित्र व्यक्तित्व और उनके जीवन को निष्पक्षता से आत्मसात कर सके, तो क्या समस्या है?

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