भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से कैसे बचाया?

कोरोना के दौरान भारत ने ऐसा क्या किया जो दुनिया के दूसरे देश नहीं कर पाए।

Indian Economic

कोरोना के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति कही जाने वाली अमेरिका की अर्थव्यवस्था डूब रही है। अमेरिका पर मंदी का ख़तरा मंडरा रहा है, अमेरिका की मंदी की चर्चाएं हर तरफ हो रही हैं। अमेरिकी सरकार के पैर फूल रहे हैं, अमेरिकियों के पैर फूल रहे हैं। दूसरी तरफ चीन की स्थिति और ज्यादा नाज़ुक है, चीन दो-दो मुसीबतों से एक साथ लड़ रहा है और एक भी मुसीबत से बाहर नहीं निकल पा रहा है।

जिस चीन में कोरोना पैदा हुआ था, वहां अभी तक कोरोना पर काबू नहीं पाया जा सका है। इसके साथ ही उनकी वैक्सीन पर निरंतर सवाल उठ रहे हैं। कोरोना से न निपट पाने वाले चीन की आर्थिक स्थिति भी बर्बाद है। हमारे सामने वो तस्वीरें आ चुकी हैं जिनमें हमने देखा कि लोग अकाउंट से पैसे तक नहीं निकाल पा रहे हैं।

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किन आर्थिक नीतियों को अपनाकर बचा रहा भारत?

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि भारत ने कोरोना से स्वयं को कैसे बचाया? भारत ने किन आर्थिक नीतियों को अपनाया जोकि उसके लिए वरदान साबित हुईं? कैसे इतनी बड़ी महामारी से लड़ने के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है? आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत ने कोरोना महामारी के दौरान ऐसी कौन-सी नीतियां अपनाईं जिनकी  वज़ह से भारत की अर्थव्यवस्था डगमगाई ज़रूर लेकिन डूबी नहीं।

भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने ट्विटर पर एक थ्रेड में इसे समझाया है।

आइए, हम आपको सभी बिंदुओं को विस्तार से समझाते हैं।

दूसरे देशों ने चाहे वो विकासशील देश हो या फिर विकसित देश, इन देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मांग बढ़ाने पर विशेष बल दिया। वहीं दूसरी तरफ भारत ने डिमांड और सप्लाई दोनों पर ध्यान केंद्रित किया। इसके साथ ही भारत ने इस तथ्य को भी जल्दी स्वीकार कर लिया कि कोरोना महामारी खाद्य सप्लाई पर नकारात्मक असर डालेगी।

इसी दौरान केंद्र सरकार ने और भी कई महत्वपूर्ण निर्णय किए। सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कितना खर्च किया जाए इस पर दोबारा विचार किया। सप्लाई चेन को मजबूती देने के लिए सरकार ने कई संरचनात्मक सुधार किए, इसके साथ ही सरकार ने विशेष क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन योजना यानी इन्सेंटिव स्कीम की शुरुआत की। इसी से तय हुआ कि कोरोना महामारी के दौरान भारत के खाद्य क्षेत्र पर ज्यादा प्रभाव न पड़े।

कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार का एक तरफ ध्यान सप्लाई चेन को दुरुस्त रखने पर, उत्पादन को कम न होने देने पर था, वहीं दूसरी तरफ सरकार यह भी निश्चित कर रही थी कि लोग भूखे न रहें और वो पूरी तरह से खर्च करना बंद न कर दें। इसके लिए सरकार तीन मुख्य एजेंडों को लेकर आगे बढ़ी-

  1. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के द्वारा भारत सरकार ने देश के करीब 8 करोड़ लोगों तक दाल और चावल पहुंचाए। सरकार ने जो इतना अनाज लोगों के बीच बांटा इससे सरकार के खजाने के ऊपर कोई आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ा। दरअसल, सरकार जो मुफ्त अनाज बांट रही थी वो वही अनाज था जो भारत सरकार खाद्य सुरक्षा को देखते हुए संरक्षित करती है।
  2. इसके साथ ही सरकार ने दूसरा बड़ा और महत्वपूर्ण कदम यह उठाया कि ज़रूरतमंद लोगों के खातों में सीधा पैसा भेजा। सरकार ने इसके लिए आधार कार्ड का इस्तेमाल किया और उन 400 मिलियन खातों का भी इस्तेमाल किया जिन्हें 2014 के बाद प्रधानमंत्री जनधन खाता योजना के अंतर्गत खोला गया था।
  3. इसके साथ ही सरकार ने देखा कि बहुत से लोगों के पास बैंक गारंटी देने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन उन्हें बैंक से पैसे लेने की सख्त आवश्यकता है, ऐसे में भारत सरकार ने इन लोगों की गारंटी ली।

यह कदम इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि वित्तीय क्षेत्र उधार लेने वाले का क्रेडिट स्कोर बनाता है। ऐसे में जब उधार लेने वाले की गारंटी सरकार स्वयं लेती है तो उसकी क्रेडिबिलिटी पर कोई संशय नहीं बचता है। इसमें भी कोई शंका नहीं है कि कर्ज लेने वाले को अपनी क्रेडिट हिस्ट्री अच्छी बनाए रखने के लिए वक्त पर कर्ज वापस करना पड़ता है लेकिन एक बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जो जानते हैं कि सरकार ने उनकी गारंटी ली है इसलिए वो कर्ज नहीं लौटाते हैं।

सरकार की गारंटी पर लोन देते के वक्त भी विशेष ध्यान रखा गया। इस बात पर विशेष बल दिया गया कि जिसे वास्तव में इसकी ज़रूरत है उसी को मिले। इस तरह सरकार ने 100 रुपये सीधे देने के बजाय कर्ज पर गारंटी देने का रास्ता अपनाया। इससे यह तय हुआ कि जब अर्थव्यवस्था ढर्रे पर जाएगी उस वक्त सरकार को गारंटी पर बहुत कम खर्च करना पड़ेगा।

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ऋण माफी का लाभ अमीर किसानों को ही हुआ

अब इस नीति की तुलना 2008-09 में जीएफसी के बाद जो नीति अपनायी गयी उससे करके देखिए। उस वक्त किसानों की ऋण माफी की गयी थी जिसका लाभ अमीर किसानों को ही हुआ। सप्लाई चेन में रुकावट हुई थी इसके साथ ही करीब-करीब डेढ़ वर्ष के लिए डबल डिजिट में इन्फ्लेशन था। अगर कोरोना के दौरान भी भारत ने इसी तरह की प्रतीकात्मक नीति अपनाई होती तो इन्फ्लेशन करीब-करीब 20 फीसदी हो सकता था और निश्चित तौर पर यह डेढ़ वर्ष से ज्यादा वक्त के लिए होता। इसके साथ ही सप्लाई चेन पूरी तरह से बर्बाद हो जाती और इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ अमीरों को ही मिलता।

वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भारत ने वही किया था जोकि कोरोना संकट के दौरान दुनिया ने किया। सरल शब्दों में कहें तो यह नीति अपना लेना कि डिमांड बढ़ाते जाओ, इस तरह बढ़ाओ मानो कल यानी भविष्य कुछ है ही नहीं लेकिन कोरोना के दौरान भारत स्पष्ट नीति और साहसिक निर्णय कर पाने के कारण बिल्कुल अलग तरह से लड़ाई लड़ रहा था।

इस तरह, डिमांड साइड को समझकर, उसके लिए कदम उठाकर और सप्लाई चेन को निर्बाध बनाकर केंद्र की मोदी सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहतर स्थिति में खड़ा कर दिया। इस तरह एक बात और साफ है कि भारत सरकार ने दूसरे देशों की अपेक्षा कोरोना के दौरान अर्थव्यवस्था को बेहतरीन तरीके से संभाला।

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