पटेलों ने अमेरिका के बर्बाद मोटेल उद्योग पर कब्जा करके कैसे उन्हें ‘पोटेल उद्योग’ बना दिया?

यह किस्सा है हमारे गुजराती पटेल भाईयों का, जिन्हें कभी युगांडा से भगाया गया था।

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Source- TFIPOST.in

टीएफ़आई प्रीमियम में आपका स्वागत है। “लाला – ओल्ड स्कूल हो या न्यू स्कूल, सबके सिलेबस में एक सब्जेक्ट कॉमन होता है, प्रॉफ़िट और वो मेरा फेवरिट सब्जेक्ट है।” कभी सोचते होंगे न आप कि घर से दूर, घर वाली फीलिंग मिले? यदि ऐसा सच में किसी जगह प्राप्त हो, तो? अक्सर विदेशों में विशेषकर अमेरिका में आपने मोटल के सिद्धांत के बारे में सुना है, परंतु क्या आपने ‘पोटेल’ के बारे में कभी सुना है? क्या कभी सोचा है कि ये शब्द अस्तित्व में कैसे आया? ये कथा अमेरिका में बसे एक ऐसे समुदाय की, जिसने अपनी उद्यमिता से न केवल संसार को चकित कर दिया, अपितु सम्पूर्ण संसार को व्यवसाय का ककहरा भी पढ़ाया। ये कथा है हमारे गुजराती पटेलों की, जिन्हें कभी युगांडा से भगाया गया, परंतु शीघ्र ही अमेरिका के मोटल पर अपना वर्चस्व जमाया।

अमेरिका में गुजरातियों के मोटल बिजनेस

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका के जितने भी मोटल (राह में पड़ने वाले होटल) हैं, उनमें से 60 प्रतिशत से भी अधिक का स्वामित्व गुजरातियों के पास हैं, जिसमें भी 70 प्रतिशत से अधिक का स्वामित्व केवल पटेल समुदाय के अंतर्गत आता है। परंतु ये सब प्रारंभ कैसे हुआ?

अमेरिका में गुजरातियों के मोटल व होटल बिजनेस की शुरुआत 1940 से हुई थी। इस दशक में अहमदाबाद के कानजीभाई देसाई ने अमेरिका में प्रथम होटल खोला। कानजीभाई की सफलता के बाद अन्य गुजरातियों ने भी धीरे-धीरे होटल बिजनेस में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए और आज अमेरिका के हर दूसरे मोटल का मालिक गुजराती ही है। इसमें भी सबसे ज्यादा वर्चस्व गुजराती पटेलों का है। पवन ढींगरा नामक एक लेखक ने ‘लाइफ बिहाइंड द लॉबी: इंडियान अमेरिकन मोटल ऑनर्स एंड द अमेरिकन ड्रीम्स’ पुस्तक में विस्तार से लिखा है कि किस तरह गुजरातियों ने अमेरिका के मोटल बिजनेस पर कब्जा कर लिया।

परंतु प्रारंभ में ये व्यवसाय उतना भी सफल नहीं था, और भारतीय प्रवासियों को अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों के समक्ष काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। परंतु एक महत्वपूर्ण बदलाव आया 70 के युग में। तब गुजरातियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र था युगांडा, जो एक समय पर केन्या से भी अधिक ‘समृद्ध’ था। परंतु शीघ्र ही यहाँ पर इस्लामिक तानाशाह ईदी आमीन ने नियंत्रण स्थापित कर लिया, जो न केवल क्रूर था, अपितु खुलेआम आतंकियों को शरण देता था। उसके राज में युगांडा किसी नरक से कम नहीं था और व्यवसाय प्रेमी गुजरातियों के लिए ये असह्य था। ऐसे में लगभग 80,000 एशियाई प्रवासियों को युगांडा से निकलना पड़ा, जिसमें कम से कम एक चौथाई तो अवश्य ही गुजराती समुदाय से रहे होंगे और ये संख्या कभी कम नहीं हुई।

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आप व्यवसाय और गुजराती को अलग-अलग रख सकते हो, परंतु गुजराती में से व्यवसाय को अलग नहीं कर सकते। अब युगांडा से निष्कासित भारतवंशी, विशेषकर पटेल समुदाय कहां जाते? वे वापस भारत तो लौट नहीं सकते थे, क्योंकि तब वह समाजवाद की बेड़ियों में जकड़े हुये थे, न ही वे हाथ पर हाथ धरे बैठना चाहते थे, तो उन्होंने अमेरिका में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय किया। अब उनके मस्तिष्क में प्रश्न आया– किस क्षेत्र में निवेश किया जाए, जहां जोखिम कम हो, परंतु लाभ अधिक से अधिकतम? अब आप मानें या नहीं, परंतु पटेल समुदाय में एक विशेष बात है– ये संकट के समय सबको एकजुट करने में जितने सक्षम होते हैं, उतनी एकजुटता बहुत कम लोगों में होती है। ऐसे में इन्हें अपने भाग्योदय का मार्ग दिखा मोटल उद्योग में, जिसे आम भाषा में सराय व्यवसाय भी कह सकते हैं।

वर्ष 1999 के न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में कहा गया है कि ‘अगर आप किसी इंटरस्टेट हाइवे पर रुकते हैं और किसी सस्ते सराय को ढूंढ रहे हो तो इसकी उम्मीद काफी है कि जो सराय आपको मिलेगा वह भारतवंशियों से जुड़ा होगा।’ यॉर्क यूनिवर्सिटी के एक बिजनेस स्कूल के निदेशक वी रघुनाथ के मुताबिक, वर्ष 2015 में अमेरिका में पटेल समुदाय की जनसंख्या 2,57,000 थी। जबकि अमेरिका के टॉप 500 सरनेम में पटेल की रैंकिंग 174 है। इसी का अनुमोदन करते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया के लेख में बताया गया, “गुजरात के गांवों शहरों के विकास में कई सालों से वे महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं, अपना नाम खुद बनाया है, सराय चलाते हैं। अमेरिका की मोटल इंडस्ट्री में लगभग 22,000 होटल और मोटल के मालिक भारतीय हैं, जो कि लगभग 128 अरब डॉलर का है। इनमें से 70 प्रतिशत के मालिक गुजराती हैं और उनमें 75 प्रतिशत पटेल हैं।”

परंतु ये संभव कैसे हुआ? उदाहरण के लिए मान लीजिए तब किसी आम मोटेल में रात में रुकने का दाम 20 डॉलर था, परंतु न उतनी सुविधाएँ होती थी और न ग्राहक संतुष्ट हो पाता था। यहीं पर पटेलों ने अपना गुजराती दिमाग लगाया। सबसे सस्ते दर पर सबसे उच्चतम सेवा। जो काम 20 डॉलर में भी न हो पाए, उससे कहीं अधिक सेवाएं आपको किसी भी पटेल मोटल पर उपलब्ध होती, चाहे वो भोजन होता, वातानुकूलित कक्ष होता, स्वच्छ बाथरूम इत्यादि, और कीमत मात्र 2-5 डॉलर, जिसे सुन कोई भी यात्री का मुंह खुला का खुला रह जाए और राजू भाई के जुबानी – “पैसा ही पैसा होगा”!

अमेरिका में आधे मोटल के मालिक भारतीय हैं

इसी की पुष्टि करते हुए एक समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटेल मोटल का उदाहरण देते हुए अमेरिका में भारतवंशी समुदाय से वार्तालाप कर हुए बताया, “आप होटल मोटल पटेल वाला के तौर पर जाने जाते हैं। जब भी आपके होटल या मोटल में कोई अतिथि आता है तो आप टीवी पर भारत के बारे में क्यों नहीं कुछ स्लाइड चलाते हैं। अतिथि जब टीवी खोलेंगे तो वे देख सकेंगे कि भारत क्या है? देश जब तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है, तब वे भी योगदान करें। कम से कम पांच गैर भारतीय परिवारों को भारत भ्रमण के लिए प्रेरित करें। अगर आप भारत में एक रुपया भी निवेश नहीं करें और सिर्फ इतना ही करें तो देश के लिए यह बड़ी सेवा होगी।”

प्रतिष्ठित स्मिथसोनियन पत्रिका में 2014 के एक लेख में बताया गया था कि अमेरिका में लगभग आधे मोटल के मालिक भारतीय मूल के अमेरिकी हैं और उनमें से 70 फीसदी पटेल हैं। अमेरिका के 80 प्रतिशत मोटल इंडस्ट्री पर गुजरात के पटेलों का ही वर्चस्व है। इस समय अमेरिका में लगभग 17 हजार होटल व मोटल के मालिक गुजराती ही हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा गुजराती पटेलों की संख्या है। अमेरिका में बसने वाले पटेल आर्थिक रूप से बहुत मजबूत माने जाते हैं। आज स्थिति यह हो चुकी है कि अब इस सफल नीति के बारे में वैश्विक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में केस स्टडीज तक निकाले जा रहे हैं।

इसी कारणवश अब अमेरिका के मोटेल्स को लोग ‘Potels’ भी बोलने लगे हैं, तो कुछ लोग कुंठा में इसे ‘Patel Motel Cartel’ की संज्ञा देने लगे हैं। परंतु इससे एक बात स्पष्ट होती है – भारतीय जैसे भी हो, यदि आप उनके हाथ में संसाधन दे, तो वे जग का विनाश नहीं करेंगे, अपितु उसे एक बेहतर और समृद्ध स्थान बनाने में अपना भरपूर योगदान देंगे, जैसा वे अमेरिका में कर रहे हैं।

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