ख़तरनाक है टिश्यू पेपर का इस्तेमाल, अब इसे कबाड़ में फेंकने का वक्त आ गया है

हमें दोबारा से अपनी हाथ धुलने की परंपरा की ओर, गमछा संस्कृति की ओर लौटना होगा

tissue paper

SOURCE- TFIPOST.in

जब आपको अपना चेहरा साफ करने या खाना खाने के बाद हाथ पोंछने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता हो, तो क्या आप कपड़े का उपयोग करेंगे या फिर टिश्यू पेपर का? आज का जैसा माहैल है उस परिदृश्य से तो अधिकतर लोगों का उत्तर होगा टिश्यू पेपर। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वाकई में टिश्यू का इस्तेमाल अच्छा है?

बाजार में कई प्रकार के टिश्यू पेपर उपलब्ध हैं

‘टिश्यू’ एक फ्रांसीसी शब्द है जिसका अर्थ है कपड़ा। टिश्यू हालांकि कभी भारतीय परम्परा का हिस्सा नहीं था लेकिन आज भारत के पश्चिमीकरण के चलते यह हर भारतीय घर में नज़र आने लगा है। अब तो पश्चिमीकरण होते भारत की मांग पूरा करने के लिए बाजार में कई प्रकार के टिश्यू पेपर उपलब्ध हैं। जिनमें शौचालय के लिए हाइजीनिक टिश्यू पेपर, चेहरा साफ़ करने और मेकअप हटाने के लिए अलग टिश्यू पेपर, बच्चों के लिए बेबी वाइप्स, रसोई में सफाई और हाथ सुखाने के लिए पेपर टॉवल, गिफ्ट,  क्राफ्टवर्क, केक बॉक्स या मिठाई के डब्बे पैक करने के लिए रैपिंग टिश्यू, रेस्ट्रॉन्ट और होटल में पेपर नैपकिन और टॉयलेट के लिए तो टॉयलेट पेपर है ही।

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, 63% उत्तरदाताओं ने कहा कि उनका मानना है कि टिश्यू पेपर तौलिये की तुलना में अधिक स्वच्छ है और किसी भी दिन कपड़े के तौलिये के बजाय टिश्यू पेपर को प्राथमिकता देंगे। एक औसत अमेरिकी हर साल टिश्यू पेपर के लगभग 21000 रोल का उपयोग करता है।

जब कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गई थी तो उस समय अमेरिका में टॉयलेट पेपर्स और टिश्यू वाइप्स को लेकर लोगों के बीच हुए झगड़े तो सभी को याद होंगे ही जो मन में यह सवाल भी पैदा करते हैं कि क्या वाकई में दुनिया का टिश्यू पेपर पर इतना आश्रित होना सही है? टिश्यू पेपर जिसे लोग यह सोचकर अपना रहे हैं कि टिश्यू पेपर हमारे जीवन स्तर में सुधार और स्वच्छता ला रहा है, यह कितना सही है?  इस पर ध्यान देना होगा।

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इस डिस्पोजेबल नैपकिन टिश्यू के उपयोग के जितने फायदे नहीं उससे अधिक नुकसान हैं:-

भारत में हमेशा से उन नियमों का पालन किया गया है और अपनी दिनचर्या को कुछ इस तरह से ढाला गया है कि मानव और प्रकृति एक साथ रह सकें। मानव के कारण वातावरण को कोई नुकसान न पहुंचे। साथ ही स्वच्छता का ध्यान भी रखा जाता था इसी कारण भारत में इतिहास में कहीं भी टिश्यू पेपर का वर्णन नहीं मिलता क्योंकि यह कभी भारत की संस्कृति का हिस्सा था ही नहीं। भारत में खाना खाने के बाद हाथ पानी से धोये जाते हैं और फिर किसी गमछे या रुमाल से हाथों को पोंछा जाता है। लेकिन अब लोग टिश्यू को उपयोग में लाने पर जोर देने लगे हैं।

भारत में बच्चों पर कभी भी केमिकल से लदे बेबी वाइप्स का उपयोग नहीं किया जाता था बल्कि पानी और कपडे से शिशु के शरीर को साफ़ किया जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जब से बेबी वाइप्स मार्केट में आये हैं लोग बिना सोचे समझे इनका इस्तेमाल कर रहे हैं और अनजाने में अपने बच्चे को चर्म रोग का न्योता दे रहे हैं। जिन महिलाओं या लड़कियों को कील मुंहासों की शिकायत हो या फिर जिनकी चेहरे की त्वचा बहुत संवेदनशील हो उन लिए मेकअप हटाने वाले टिश्यू और भी अधिक नुकसान देते हैं।

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आज जिस तरह लोग टिश्यू पेपर पर बिना कारण इतना आश्रित होते जा रहे हैं उन्हें इसके द्वारा होने वाले नुकसान को समझना होगा। साथ ही यह भी समझना होगा कि टिश्यू पेपर से अब पानी-रुमाल और गमछे का समय आ गया है। भारत स्वच्छता के जैसे नियम पहले पालन करता था उसे एक बार फिर उसी जीवनशैली की ओर मुड़ने की आवश्यकता है क्योंकि वही जीवन जीने का सही तरीका है।

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