हाल ही में कई महत्वपूर्ण लोगों को राज्यसभा की शपथ दिलवायी गयी और कुछ नये लोगों को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया यानी नामांकित किया गया। इनमें विभिन्न क्षेत्रों में देश के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करने वाली जानी मानी हस्तियां शामिल हैं, जैसे कि ओलंपिक धाविका पीटी ऊषा, धर्मस्थल मंदिर प्रशासक वी हेगड़े, बाहुबली एवं RRR जैसे प्रभावशाली फिल्मों के रचयिता केवी विजयेन्द्र प्रसाद एवं संगीतकार आर ज्ञानथेसिकन को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया।
आर ज्ञानथेसिकन, ये कौन हैं?
आर ज्ञानथेसिकन, ये कौन हैं? इस नाम को आप भले ही न जानते हों, परंतु इनके उपनाम को न सुना हो तो विश्वास मानिए, आपको भारतीय सिनेमा के बारे में ज्ञान रखने या सिनेमा के बारे में कुछ बोलने का कोई अधिकार नहीं है। ए आर रहमान हो सकते हैं एक उत्कृष्ट संगीतकार, परंतु भारत के संगीत के लिए वास्तविक पारखी नजर यदि कोई रखते हैं तो वे हैं इलैयाराजा, जिनका मूल नाम है आर ज्ञानथेसिकन और इनका राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत होना बहुत कुछ कहता है।
वो कैसे? राज्यसभा के बनने के 70 साल बाद जाकर सरकार ने पहली बार अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति को कलाकार श्रेणी में राज्यसभा में मनोनीत किया है। संगीत सम्राट इलैयाराजा कोई मामूली कलाकार नहीं हैं, 7,000 से ज्यादा धुनें उन्होंने बनायी हैं और कई विदेशी प्रशंसक उन्हें ‘संगीत का मोज़ार्ट’ भी कहते हैं। उनकी देशव्यापी ख्याति है और उनके राज्यसभा में होने से संसद और राज्यसभा का ही मान बढ़ेगा।
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इलैयाराजा का जन्म 1943 में तमिलनाडु के मदुरै जिले के पास ही पन्नईपुरम के गांव में हुआ था। उनके बड़े भाई पावलर वरदराजन एक प्रमुख दलित-कम्युनिस्ट नेता थे और उन्हीं के जरिए वह छोटी उम्र से ही राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए। जब वे अपने भाइयों के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक बैठकों में शामिल हुए तब उनका परिचय संगीत से हुआ था।
कहते हैं कि जब इलैयाराजा तमिल सिनेमा में काम खोजने के लिए तत्कालीन मद्रास गए, तो उन्होंने कुछ राजनीति को अपने काम में शामिल कर लिया। कइयों के अनुसार, इलैयाराजा ने अपने संगीत से एक बड़े वर्ग की अपेक्षाओं को पूरा किया है, क्योंकि उनके सुनने वालों में अधिकतम कामगार, मजदूर वर्ग और ग्रामीण जनता भी सम्मिलित है”।
हालांकि, जब उन्होंने फिल्म उद्योग में प्रवेश किया, तो उनके संगीत में कम्युनिस्ट स्वर थे, परंतु वे विशुद्ध वामपंथी नहीं थे। जब वामपंथियों के ‘आराध्य’, पेरियार रामास्वामी पर फिल्म की घोषणा हुई तो इलैयाराजा से संगीत के लिए बात हुई। उस समय DMK सरकार का शासन था, जो इस फिल्म को स्पष्ट तौर पर बढ़ावा दे रही थी। परंतु इलैयाराजा ने स्पष्ट तौर पर मना कर दिया और कहा, “मेरे संगीत में सरस्वती का वास है और जिसे ईश्वर में ही विश्वास न हो, उसपर बनी कृति के लिए मैं अपना संगीत क्यों व्यर्थ में दूँ?” ऐसा साहस विरले ही किसी में होता है।
प्रस्तावना में इलैयाराजा ने क्या लिखा?
इसके अतिरिक्त हाल ही में जब आंबेडकर एंड मोदी: रिफॉर्मर्स आइडियाज, परफॉर्मर्स इम्प्लीमेंटेशन किताब का विमोचन हुआ, तो उसकी प्रस्तावना में इलैयाराजा ने लिखा: ‘डॉक्टर बीआर आंबेडकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही कठिनाइयों से गुजरे और समाज के सामाजिक रूप से अक्षम वर्गों के लोगों के सामने आने वाली बाधाओं के खिलाफ़ सफल हुए हैं. दोनों ने सामाजिक संरचनाओं को करीब से देखा और उन्हें खत्म करने का काम किया. दोनों व्यावहारिक पुरुष हैं जो केवल विचार अभ्यास के बजाय कार्यवाही में विश्वास करते हैं.’
उन्होंने आगे कहा कि उनकी सरकार की ओर से लाए गए तीन तलाक विरोधी कानून जैसे महिला समर्थक कानून और लिंगानुपात बढ़ाने के लिए चलाया गया ऐतिहासिक ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ आंदोलन सामाजिक परिवर्तन लेकर आए हैं। ये कुछ ऐसा है जिस पर डॉ बी.आर. आंबेडकर को गर्व होता”।
बस फिर क्या था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अंबेडकर की तुलना करने पर वामपंथी बिदक गए और उन्होंने जमकर इलैयाराजा को तीखी प्रतिक्रियाएं दीं, यह जानते हुए भी कि इलैयाराजा पिछड़े वर्ग से हैं और कई वर्षों तक कम्युनिस्ट पार्टी को अपनी सेवाएं तक दे चुके हैं। कुछ तो यहां तक तंज कसने लगे कि ये सब वे एक राज्यसभा सीट के लिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें ए आर रहमान की भांति ऑस्कर नहीं मिला।
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लेकिन इलैयाराजा ने भी अपने विचारों पर अडिग रहते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वह अपना बयान नहीं बदलेंगे। इसी बीच इलैयाराजा के बचाव में कई बीजेपी नेता समर्थन में सामने आए हैं। तमिलनाडु भाजपा के प्रभावशाली के अन्नामलाई ने आक्रामक रुख अपनाते हुए बोला, “जो भी इलैयाराजा के विचारों से कुपित हैं, वे सत्ता के भूखे हैं, परंतु डीएमके का यह ईकोसिस्टम हमारे प्रख्यात संगीतकार के आवाज को कुचल नहीं पाएगा”।
अब इलैयाराजा को जिस प्रकार से राज्यसभा की सदस्यता से मनोनीत किया गया है, उससे स्पष्ट होता है कि न केवल योग्य लोगों को सम्मानित किया जाएगा, अपितु भारत में ‘कैंसल कल्चर’ का ख्याल रखने वाले को लात मारकर खदेड़ा जाएगा।
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