इस तरह 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है भारत

ये 5 सेक्टर करेंगे पीयूष गोयल के सपने को साकार!

Piyush Goyal

SOURCE TFIPOST

भारत आज हर क्षेत्र में विकास के नये आयामों को छू रहा है। कोरोना महामारी के दौर में और रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भी भारत की अर्थव्यवस्था आज कई विकसित देशों से बेहतर स्थिति में नजर आ रही है। भारत के आर्थिक पुनरुद्धार के नायक पीयूष गोयल ने अगले कुछ दशकों में भारत को आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने की क्षमता पर अपना विश्वास व्यक्त किया है। पीयूष गोयल ने हाल ही में बड़ा बयान देते हुए अगले 30 सालों में भारत की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का भरोसा जताया है।

बीते दिनों दिए गए अपने एक बयान में पीयूष गोयल ने कहा था कि आज भारत वैश्विक बाजार के सभी सेक्टर में अपना कब्जा जमाना चाहता है। गोयल के अनुसार भारत अगर चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि के आधार पर हर साल 8 फीसदी की दर से विकास करता है तो अर्थव्यवस्था 9 वर्षों में दोगुनी हो जाएगी। वर्तमान के समय में देश की अर्थव्यवस्था तकरीबन 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, अगले 9 वर्षों में 6.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंचने की संभावना है।

पीयूष गोयल ने आगे कहा कि आज से 18 साल बाद हमारी अर्थव्यवस्था करीब 13 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगी और 27 साल बाद 26 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगी। ऐसे में हम सभी उम्मीद कर सकते हैं कि आगे आने वाले 30 साल में देश की अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की होगी।

देखा जाए तो वर्तमान के समय में भारत में अच्छा कारोबारी माहौल है। इस समय विदेशी कंपनियों की भारत में कारोबार करने के लिए दिलचस्पी बढ़ती हुई दिख रही है। कई कंपनियां अपने कारखाने स्थापित करने के लिए भारत में आ रही हैं। हालांकि, 30 साल एक बहुत ही लंबा समय है और पहले से स्थापित तरीकों के साथ सकल घरेलू उत्पादन (GDP) बढ़ाने से काम नहीं चलने वाला। इसके लिए बदलाव की जरूरत है और भारत पांच क्षेत्रों में चमत्कार करके अपने इस लक्ष्य को हासिल कर सकता है। आइए उन क्षेत्रों की बात करते हैं।

सेमीकंडक्टर तकनीक

सेमीकंडक्टर चिप्स को इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों का दिमाग भी कहा जाता है। आपके मोबाइल फोन से लेकर कंप्यूटर, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक वाहनों तक इन सब में इनका उपयोग किया जाता है। दुनिया के तमाम विकसित देशों में इस समय सेमीकंडक्टर चिप्स के प्रभुत्व स्थापित करने की होड़ मची हुई है। देखा जाए तो विश्व में फिलहाल एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप बनाने वाले देशों में ताइवान सबसे आगे है। सेमीकंडक्टर की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अकेले ताइवान की 63 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ताइवान की TSMS दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर का निर्माण करने वाली कंपनी है। दूसरी तरफ चीन की नजरें जिस तरह से ताइवान पर है वो अमेरिका की चिंता का मुख्य कारण बना हुआ है। भविष्य में अगर चीन, ताइवान पर कब्जा करने में कामयाब हो जाता है तो उसके हाथ में दुनिया की सबसे उन्नत चिप फैक्ट्रियां आ जाएंगी, जिसका सीधा असर अमेरिका पर भी होगा।

ऐसे में सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर और सशक्त बनने की जरूरत है। आज के समय में देश सेमीकंडक्टर के आयात पर निर्भर है। भारत सरकार इसी आयात पर निर्भरता को कम करने के प्रयासों में जुटी है। इसी के चलते मोदी सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर वाली इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियों के निर्माण के लिए 2,30,000 करोड़ रुपये से अधिक का प्रोत्साहन दिया गया। इसके अलावा पीएलआई योजना के तहत विदेशी कंपनियों द्वारा चिप बनाने के लिए 1.53 लाख करोड़ रुपये के निवेश का योगदान दिया गया। इजराइल की ISMC लैब कर्नाटक के संयंत्र में 3 बिलियन डॉलर का निवेश कर रही है।

सरकार को यह समझ आ गया है कि भारत को अगर विश्व गुरु बनने की ओर आगे बढ़ना है तो निश्चित रूप से इसके लिए सेमीकंडक्टर क्षेत्र में महारत हासिल करनी होगी। इसके बाद दुनिया की कोई भी ताकत भारत को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती है, इसीलिए सरकार भी इस क्षेत्र पर फोकस कर रही है। वर्ष 2026 तक भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के 64 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद जतायी गयी है। साथ ही 2026 तक भारत में सेमीकंडक्टर की खपत 80 अरब डॉलर को पार कर जाएगी ऐसी संभावना है।

हालांकि देखा जाए तो उपयुक्त लक्ष्य को हासिल करने में समस्याएं भी बहुत हैं। उनमें से एक समस्या है पर्यावरण पर प्रभाव है। इससे भूजल और वायु प्रदूषण बढ़ता है, इसके लिए बड़ी मात्रा में पानी की भी आवश्कता होती है। अकेले ताइवान के TSMC को प्रति दिन 156,000 टन पानी की जरूरत होती है। साथ ही सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए व्यवस्था बनाना भी जरूरी है। इन सबके अलावा भारत को अपनी क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए बड़े पैमाने पर अपने कार्यबल को कुशल बनाने की अवश्यकता है।

कृषि का आधुनिकीकरण

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य वर्धित (GVA) में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़कर 20.2 प्रतिशत हो गया है। इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्र में रोजगार के आंकड़ों में भी बढ़ोतरी होती हुई दिखी है। डेटा मंथन करने वाली वेबसाइट स्टेस्टा के अनुसार इस सेक्टर में 2017 में 145.66 मिलियन लोग भारत में कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हर साल 1.5 मिलियन लोग कृषि सेक्टर से जुड़ रहे हैं और वित्त वर्ष 2021 में कृषि क्षेत्र ने 151.79 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान किया।

परंतु आज के समय में कृषि में आधुनिकीकरण का अभाव है। देखा जाए तो अधिकतर विकसित देशों में कृषि से जुड़ा 90 प्रतिशत काम मशीनीकरण पर होता है, जिसकी तुलना में फिलहाल भारत में केवल 45 से 50 प्रतिशत ही काम मशीनों से किया जाता है। तकनीक की कमी के कारण इसका असर कृषि उत्पादन पर भी पड़ता है। कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते वर्ष 2018 में भारत को 14 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। इसके अतिरिक्त 55 फीसदी जंगल में आग लगने की संभावना होती है जो हमारे कृषि क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी समस्या है।

इन सभी समस्याओं का एक ही समाधान है आधुनिकीकरण। ब्लॉकचेन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ड्रोन और उपग्रह का उपयोग करके न केवल कृषि क्षेत्र में कुशल फसल उत्पादन और उत्पादन में वृद्धि में मदद करेंगे बल्कि इससे कृषि क्षेत्र में अनावश्यक रोजगार पर भी अंकुश लग सकता है। प्रोत्साहन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए 1 लाख करोड़ का फंड जारी किया गया था। इसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देना था। वहीं FDI निवेश भी इस सेक्टर में बढ़ रहा है।

अंतरिक्ष तकनीक

आम तौर पर हर देश का अंतरिक्ष क्षेत्र सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। परंतु एक समय के बाद इन देशों ने निजी कंपनियों को भी मौका दिया और फिर आया अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था। आज के समय में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का अनुमान वर्ष 2020 तक तकरीबन 447 बिलियन डॉलर है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी केवल 2 प्रतिशत ही है। रॉकेट और सैटेलाइट लॉन्च करने के अतिरिक्त हम इस मोर्चे पर कुछ विशेष नहीं करते दिख रहे हैं। वर्तमान में अंतरिक्ष की मांग मिट्टी के प्रकार, मौसम आदि चीजों पर नजर रखने की भी है। परन्तु अंतरिक्ष विभाग अपने दम पर हर मांग को पूरा कर पाने के सक्षम नहीं है।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार कुछ बदलाव लेकर आयी है। 2019 में, अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार के लिए न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की स्थापना की गयी थी। साथ ही निजी कंपनियों के लिए भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना के उपयोग को आसान बनाने के लिए सरकार ने IN-SPACE भी लॉन्च किया था। मोदी सरकार अंतरिक्ष क्षेत्र को एफडीआई के लिए खोलने के तौर-तरीकों की रूपरेखा तैयार करने के अंतिम चरण में है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत के वाणिज्यिक स्पेसटेक की बाजार में हिस्सेदारी 77 अरब डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है। 101 स्टार्टअप कंपनी इस दिशा में काम कर रही हैं लेकिन, सरकारी और निजी दोनों को इस पर अभी और अधिक काम करने की आवश्यकता है।

देसी एल्गोरिथम को मजबूत बनाना

उपरोक्त सभी क्षेत्र एल्गोरिथम के बिना अधूरे हैं। एल्गोरिथम ही है जो अंतरिक्ष यान को अन्य ग्रहों तक ले जाता है, एल्गोरिथम ही है जो कृषि का आधुनिकीकरण करता है। ध्यान देना होगा कि एआई और मशीन लर्निंग भविष्य हैं। एक अनुमान है कि अगर सही तरीके से इसका उपयोग किया जाए, तो डेटा और एआई 2025 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में 450-500 बिलियन डॉलर का योगदान दे सकते हैं। खुदरा, स्वास्थ्य सेवा, उपभोक्ता सामान और एग्रीटेक सहित कुछ अन्य लोगों को इनसे अत्यधिक लाभ होने की संभावना है। लंबी अवधि की भविष्यवाणी अधिक आशाजनक है।

PC: Economic Times

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लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि 2004-14 के बर्बाद दशक के कारण भारत की शुरुआत देर से हुई है। हम खुरचन से अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहे हैं। 2019 तक, भारत में प्रति 10,000 औद्योगिक श्रमिकों पर केवल 4 रोबोट थे, जबकि वैश्विक औसत 126 था।

सरकार अपनी तरफ से जिम्मेदारी निभा रही है। ओसाका में जी20 बैठक के दौरान पीएम मोदी ने डिजिटल इकोनॉमी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर जोर दिया। उनकी रणनीति 5 ‘आई’ पर निर्भर करती है जो समावेश, स्वदेशीकरण, नवाचार, बुनियादी ढांचे में निवेश और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए खड़ा है।

चीन को दुनिया के विनिर्माण केंद्र के रूप में बदलने के लिए, हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, ब्लॉकचेन एआर, वीआर, आईओटी, सुपरकंप्यूटिंग, मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग और 3डी प्रिंटिंग में दक्षता विकसित करनी होगी। इसके अलावा डेटा स्थानीयकरण समय की मांग है। हमें अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के नियंत्रण में प्रत्येक डेटा एल्गोरिथम की आवश्यकता है, तभी स्थानीय स्तर पर पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिल पाएगा।

मैन्युफैक्चर करने वाली मशीनों की मैन्युफैक्चरिंग

यदि कोई ऐसा क्षेत्र है जो लाखों कुशल और अर्धकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के साथ-साथ मेक-इन-इंडिया को आंतरिक बना सकता है, तो वह है विनिर्माण क्षेत्र है। वर्तमान में, हम दुनिया के विनिर्माण उत्पादन में केवल 2 प्रतिशत का योगदान करते हैं। भारत ने पहले ही अपने 31 बिलियन डॉलर के विनिर्माण उत्पादन का 10 प्रतिशत कब्जा कर लिया है जो कोविड-19 के बाद चीन से बाहर चला गया। भारत का विनिर्माण क्षेत्र सालाना 500 अरब डॉलर जोड़ने के लिए तैयार है।

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विनिर्माण तभी उत्पादन कर सकता है जब उसे पूंजीगत सामान उपलब्ध कराया जाए। इसका अपना एक उद्योग है जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8 प्रतिशत योगदान देता है। मशीनरी और उपकरण जैसे इनपुट प्रदान करने वाले क्षेत्र के कारण अर्थव्यवस्था पर इसका गुणक प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि यह क्षेत्र अकेले 1.4 मिलियन प्रत्यक्ष और 7 मिलियन अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। दुखद है कि 2019 तक, हमारे पूंजीगत सामान का केवल 60 प्रतिशत घरेलू उत्पादन से पूरा किया गया था। प्रौद्योगिकी और कुशल जनशक्ति में कम निवेश से यह क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

इसे बढ़ाने के लिए सरकार ने इस क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई (आरबीआई के माध्यम से) जैसी कुछ पहल की है। इस सेक्टर में नौकरशाही के आकार में कटौती एक और ऐसा ही बड़ा बदलाव है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय पूंजीगत वस्तुओं को नुकसान न पहुंचाने के लिए उचित सावधानी बरतते हुए एफटीए पर भी हस्ताक्षर किए जा रहे हैं। भारत का लक्ष्य 2025 तक पूंजीगत वस्तुओं में 7.5 लाख करोड़ का कारोबार करना है। अगर किसी तरह, हम इसे हासिल करने में सक्षम हैं, तो यह कुल सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण हिस्सेदारी को बढ़ाएगा।

पीयूष गोयल द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के पास सब कुछ है। भारत के पास आज  मजबूत आर्थिक बुनियाद और राजनीतिक इच्छाशक्ति है। साथ ही एक युवा कार्यबल का होना एक अतिरिक्त उपलब्धि है। अगर किसी तरह हम असफल हो जाते हैं तो इसके लिए केवल हम ही दोषी हैं।

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