यह शर्म की बात है कि नालंदा विश्वविद्यालय जैसी प्रतिष्ठित साइट का विकास के नाम पर शोषण किया जा रहा है

आधुनिकता के नाम पर विरासतों को मिटाना मूर्खता की पराकाष्ठा है

Nalanda University

एक विरासत को बर्बादी की दिशा में धकेला जा रहा है लेकिन लोगों ने चुप्पी साधी हुई है। विरासतों और धरोहरों को संभालने के लिए विभिन्न प्रकार के कदम उठाए जाने चाहिए, लेकिन क्या ऐसा कुछ हो रहा है… नहीं कतई नहीं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर हम किस विरासत की बात कर रहे हैं जिसे बर्बाद करने में सरकारी तन्त्र भी लगा हुआ है। ये कोई और नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और शिक्षण संस्थानों का गर्व रहा नालंदा विश्वविद्यालय है जहां आधुनिकता के नाम पर विरासतों को मिटाया जा रहा है, ऐसा होना देश के लिए सर्वाधिक दुखद स्थिति है।

नालंदा की भव्यता को धब्बा

नालंदा जिसका इतिहास बनने बिगड़ने ध्वस्त होने और पुनर्जीवित होने से जुड़ा है, उस विरासत को खत्म करने के लिए जोर-शोर से काम जारी है और यह हमारे लिए एक शर्म का विषय है। दरअसल, अखिल भारतीय टूर ऑपरेटर्स एसोसिएशन की तरफ से बिहार सरकार को एक अनुरोध भेजा गया है जिसमें कहा गया है कि नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास भूमि की बड़े स्तर पर खुदाई हो रही है जिससे नालंदा की भव्यता को धब्बा लग रहा है। टूर एसोसिएशन का कहना है कि इस मामले में राज्य सरकार को त्वरित कार्रवाई करनी होगी जिससे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता से कोई समझौता न किया जाए।

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नालंदा विश्वविद्यालय में प्राचीन ढांचों का तेजी से विनाश हो रहा है और  प्राचीन अवसंरचनाओं के पुरातात्विक साक्ष्यों को मिटाया जा रहा है जो कि एक दुखद और चिन्ता का विषय है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत राज्य पर्यटन बोर्ड, पर्यटन मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), पटना सर्कल को एक पत्र लिखा गया है कि नालंदा में दो दर्जन से अधिक बौद्ध देशों के लोग राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित स्मारकों में आते हैं और इसका एक ऐतिहासिक गौरव है लेकिन अब यह गौरव नष्ट किया जा रहा है।

टूर एसोसिएशन का कहना है कि वैश्विक स्तर पर यूनेस्को द्वारा घोषित इस धरोहर को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक भी आते हैं लेकिन आधुनिकता के नाम पर हो रहे विकास में इतिहास के अवशेषों को मिटाया जा रहा है जिससे नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता खत्म हो रही है। ABTO एक ऐसी संस्था है जिसमें 650 पर्यटन पेशेवर, यात्रा व्यापार भागीदार, भिक्षु, शिक्षाविद और 25 बौद्ध देशों के परोपकारी सदस्य हैं इसने भी सरकार से नालंदा विश्व धरोहर स्थल और नालंदा विश्व विरासत स्थल के रूप में साइनेज में स्मारक का नाम बदलने का अनुरोध किया है।

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 साइनेज में इसका उल्लेख नालंदा खंडहर के तौर पर किया जाता है

गौरतलब है कि वर्तमान में साइनेज में इसका उल्लेख नालंदा खंडहर के तौर पर किया जाता है। उन्होंने वर्ल्ड हेरिटेज साइट पर एप्रोच रोड, पार्किंग स्पेस, होटल और रेस्तरां, बेहतर टूरिस्ट इंफॉर्मेशन सेंटर और स्मारिका प्लाजा के विकास की भी मांग की है। ABTO के महासचिव कौलेश कुमार ने कहा, “यह दुखद है कि हाल ही में एक सरकारी विभाग द्वारा  की गयी तालाब की खुदाई के दौरान इस क्षेत्र में दफन की गयी कई प्राचीन वस्तुएं नष्ट हो गईं हैं” उन्होंने बताया कि अनेक देशों के पर्यटक नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों और वहां उपलब्ध पुरावशेषों को देखने आते हैं। हर साल लगभग 12 लाख आगंतुक आते हैं।”

जहां खुदाई हुई, वहां से ही अनेकों पुरातात्विक अवशेषों के नष्ट टुकड़े मिले जो कि नालंदा की विरासत के लिए एक झटका है‌। इनमें से कई अवशेषों को मंदिरों में पुनर्स्थापित कर दिया गया है लेकिन अहम बात यह है कि जेसीबी की क्रूर खुदाई में अनेकों अवशेष नष्ट हुए हैं। ऐसे में टूर एसोसिएशन चाहता है कि इस प्रकार के आधुनिकता के प्रयोगों तले नालंदा की विरासत को दफ़न न किया जाए और यहां आने वाले पर्यटकों की भक्ति का भी सम्मान हो और उन्हें यहां सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं जिससे नालंदा में पर्यटन को विस्तार मिले।

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अहम बात यह है कि नालंदा में इतनी बड़ी बर्बादी का अभियान चल रहा है लेकिन किसी को कोई खबर नहीं है जबकि बिहार के मुख्यमंत्री कथित सुशासन बाबू नीतीश कुमार इसी इलाके से आते हैं। राज्य पर्यटन बोर्ड से लेकर केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय और ASI तक बिहार और देश की नष्ट होती इस विरासत पर आंख मूंदे हुए हैं जो कि एक दुखद विषय है जबकि टूर एसोसिएशन जैसे संगठन इसके महत्व को समझ रहे हैं जिसके चलते सरकारों से इस भव्य पुरातात्विक स्थल के संरक्षण की मांग कर रहे हैं।

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