कमला हैरिस पर ढोल पीटने वालों को द्रौपदी मुर्मु पर सांप क्यों सूंघ गया?

एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति बनना क्या महिला सशक्तिकरण नहीं है?

Murmu and Kamala Harris

Source- TFIPOST HINDI

दूर का ढोल सुहावन और घर की मुर्गी दाल बराबर,  ये दोनों ही कहावतें भारत के कुछ कथित फेमिनिस्टों के विरुद्ध बिल्कुल फिट बैठती है। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें अमेरिका में भारतीय मूल की महिला के उपराष्ट्रपति बनने से बड़ी खुशी मिलती है लेकिन वहीं भारत के राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करते हुए यदि कोई महिला संघर्षों की कहानी लिखते हुए इतिहास रचती है तो ये लोग उसकी चर्चा तक नहीं करते हैं। यह रवैया इनके दोगलेपन की पराकाष्ठा को प्रतिबिंबित करता है।

दरअसल, देश को अपना 15वां राष्ट्रपति मिल चुका है और 21 जुलाई को आए नतीजों में NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मु ने विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को मात दे दी। यह देश के लिए गर्व का विषय है कि पहली बार कोई आदिवासी महिला देश के राष्ट्रपति का पद संभालेंगी।  वहीं, खास बात यह है कि भाजपा ने सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखते हुए द्रौपदी मुर्मु के नाम का ऐलान किया था जिसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी लाइन से हटकर विपक्षी दलों के विधायकों और सांसदों ने भी मुर्मु के समर्थन में वोट डाला। इसका नतीजा यह हुआ कि मुर्मु ने 60 फीसदी वोटों से विजय हासिल की।

और पढ़ें: आदिवासी द्रोपदी मुर्मु राष्ट्रपति बनीं तो इंडिया टुडे के स्टाफ ने अपनी औकात दिखा दी

अब भले ही राजनीतिक दलों ने पार्टी लाइन से हटकर कदम उठाया लेकिन कई कथित पत्रकार और विचारधारा के गुलाम लोग तो मुर्मु के खिलाफ जहर घोलने से बाज नहीं आए।‌ कथित पत्रकार संजुक्ता बसु ने लिखा कि भाजपा जैसे राज्यपाल तय करती थी पार्टी ने बहुमत के दम पर उसी तरह राष्ट्रपति के तौर पर मुर्मु का नाम तय कर लिया। इसलिए संजुक्ता का कहना था कि जब तक वो मुर्मु का काम नहीं देख लेती तब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगी। अब उन्हें कौन बताए कि दीदी इसी प्रक्रिया से फखरुद्दीन अली अहमद भी चुने गए थे जिन्होंने एक फोन पर रात में बाथटब में बैठे-बैठे आपातकाल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

 

वहीं, भारत के कई पत्रकार और बॉलीवुड के स्वयंभू एक्टिविस्ट जो हर छोटी-छोटी बात पर ट्वीट करते रहे हैं, उन लोगों ने भी द्रौपदी मुर्मु की जीत पर कोई टिप्पणी नही की। कुछ लोगों ने मुर्मु को बधाई दी भी तो एक तरीके से तंज कसा जो कि अजीबोगरीब है। ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि इन्होंने ट्वीट नहीं किया, बधाई नहीं दी तो क्या हो गया? लेकिन खास बात यह है कि ये वो लोग हैं जो कि अमेरिका में भारतीय मूल की नागरिक कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने पर ऐसे उछल रहे थे मानों इनके चाचा की लड़की ही कमला हैरिस हो जिन्हें उपराष्ट्रपति बना दिया गया।

https://twitter.com/RichaChadha/status/1325300606983168001?t=ILnbANCgQQGM9PuLBm5Skg&s=19

 

संजुक्ता बसु से लेकर साक्षी जोशी, बरखा दत्त जैसे पत्रकार हो या तापसी पन्नू से लेकर स्वरा भास्कर, रिचा चड्ढा और अनुराग कश्यप जैसे अभिनेता, इन सभी ने कमला हैरिस की जीत को भारत की बेटी की जीत बताते हुए उनके संघर्षों की कहानी का गुणगान करना शुरू कर दिया था और ट्विटर पर कमला हैरिस की गुणगान की एक बाढ़ सी आ गई थी। वही सभी लोग आज द्रौपदी मुर्मु की जीत पर ऐसे मुंह बनाए बैठे हैं जैसे उनका खिलौना कोई लेकर भाग गया हो।

 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक आदिवासी महिला जिन्होंने अपने परिवार के मृत होने का गम झेलकर सामाजिक कार्यों के लिए खुद को समर्पित किया हो और आदिवासियों के कल्याण के लिए सक्रिय रही हों और आज जब वो राष्ट्रपति बनी तो क्या उनका संघर्ष कमला हैरिस के संघर्ष से कम है? जिसके कारण इन वामपंथियों ने उन्हें बधाई देना भी गंवारा नहीं समझा और खास बात यह कि जिन्होंने बधाई दी उन्होंने भी तंज का जहर ही लपेटा।

ध्यान देने वाली बात है कि विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को केवल इसलिए उम्मीदवार बना दिया था क्योंकि वे मोदी सरकार का विरोध करते थे जबकि एक वक्त तक उनकी विचारधारा भी संघ की ही थी। यह दर्शाता है कि किस तरह से विपक्ष वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुका है और उसे मोदी विरोध करने वाले ही पसंद आते हैं जबकि कई दल बाद में द्रौपदी मुर्मु के समर्थन में दिखे। भले विपक्षी दलों के बीच बाद में मुर्मु को लेकर आम सकारात्मक राय बन गई हो लेकिन समाज के इन कथित प्रगतिवादी लोगों ने मुर्मु के प्रति अपने जहर में तनिक कटौती नहीं की है जो कि इनकी विकृत मानसिकता को प्रदर्शित करता है।

और पढ़ें: उपराष्ट्रपति के चुनाव में ममता बनर्जी फंस क्यों गईं?

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version