RRR में गांधी और नेहरू को भाव न देने के पीछे एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है

राजामौली के पिता ने लिबरलों का धागा खोल दिया

RRR Vijayandra

Source- TFI

RRR फिल्म में भारत के स्वतंत्रता संग्राम को चित्रित करते हुए गांधी और नेहरू से ऊपर सरदार पटेल की भूमिका को दिखाया गया जिसे लेकर लिबरलों ने जमकर बवाल मचाया था। इस पर कई तरह के सवाल भी उठे थे। लिबरलों का कहना था कि स्वतंत्रता संग्राम को चित्रित करते हुए गांधी और नेहरू की भूमिका को अनदेखा कैसे किया जा सकता है, वो भी तब जब असहयोग आंदोलन अपने शिखर पर था और कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व सिर चढ़कर बोलकर रहा था। पर यदि आप भी इस बात को नहीं समझ पाए तो फिर आप RRR की अंतर्कथा को ही नहीं समझ पाए। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे RRR में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की चर्चा करते हुए भी जानबूझकर गांधी और नेहरू की भूमिका को अनदेखा किया गया जिसके पीछे इसके लेखक का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है।

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RRR को प्रदर्शित हुए 3 माह हो चुके हैं परंतु उसकी चर्चा देश विदेश में हो रही है और इस बात से सबसे अधिक कुपित तो हमारी वामपंथी बिरादरी है क्योंकि वे इस बात को नहीं पचा पा रही है कि कोई फिल्म बिना देश को नीचा दिखाए, बिना देश की संस्कृति का अपमान किये, बिना भारतीयों का उपहास उड़ाये आखिर इतनी लोकप्रिय कैसे हो सकती है। ऊपर से जले पर मानो नमक छिड़कते हुए इस फिल्म ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन के असली नायकों अल्लुरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम को नमन किया अपितु लाला लाजपत राय जैसे प्रखर देशभक्त को भारत का असल राष्ट्रवादी नेता भी स्वीकारा।

परंतु कथा यहीं पर खत्म नहीं होती। इस फिल्म में आप स्पष्ट देख सकते हैं कि क्रांति के प्रतीक के रूप में कांग्रेसी ध्वज नहीं अपितु 1907 का अभूतपूर्व ‘वन्दे मातरम’ ध्वज उपयोग में लाया गया जिसे सर्वप्रथम मैडम भीकाजी कामा और फिर बाद में वीर सावरकर एवं अन्य क्रांतिकारियों ने प्रचलित किया। इसके अतिरिक्त न तो इस फिल्म में गांधी का कोई उल्लेख हुआ न ही जवाहरलाल नेहरू का और जब फिल्म के अंत में भारत के वीर क्रांतिकारियों का उल्लेख हुआ तो ‘शोले’ गीत में गुजरात के प्रतीक के रूप में गांधी नहीं, सरदार वल्लभभाई पटेल को चुना गया।

इसके पीछे फिल्म के लेखक वी विजयेन्द्र प्रसाद का रुख स्पष्ट था कि वे उन लोगों से कोई नाता नहीं रखना चाहते थे जिनके कारण इस देश का सरेआम अपमान हुआ और ये देश खंड-खंड हुआ। एक साक्षात्कार की क्लिप कई दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें उन्होंने गांधी और नेहरू को भारत की दुर्दशा के लिए दोषी बताते हुए कहा है कि “जब अंग्रेज़ भारत छोड़कर जाने वाले थे, उस समय 17 PCC (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) थी। गांधी तब स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख थे तो अंग्रेज़ों ने उन्हें कांग्रेस पार्टी से प्रधानमंत्री बनाने के लिए एक प्रमुख व्यक्ति चुनने को कहा। गांधी ने उन 17 पीसीसी को बुलाया और किसी एक को प्रधानमंत्री के रूप में चुनने के लिए कहा।”

तब गांधी ने कहा था कि “प्रधानमंत्री बनने के लिए खादी पहनना काफी नहीं है, शिक्षा जरूरी है, विदेशी राष्ट्रों से बात करना जरूरी है, इसलिए मेरी पसंद नेहरू हैं।” गांधी ने 17 पीसीसी से अपनी पसंद के व्यक्ति का नाम लिखने को कहा, पर आपको पता है परिणाम क्या था? 15 कमेटियों ने सरदार पटेल को चुना, 1 वोट खाली गया और 1 ने आचार्य जेबी कृपलानी को वोट दिया। नेहरू को एक भी वोट नहीं गया। अगर गांधी को लोकतंत्र का तनिक भी सम्मान होता तो वह निर्विरोध सरदार पटेल को देश का प्रधानमंत्री बनने देते। किन्तु उन्होंने पटेल से शपथ दिलवाई कि वे नेहरू को ही प्रधानमंत्री बनवाएंगे और वे उनके रहते कभी इस पद पर दावा नहीं करेंगे!

सोचिए, जो व्यक्ति एक अयोग्य, कपटी और धूर्त व्यक्ति के लिए इस हद तक जा सकता है, वो वास्तव में क्या क्या कर सकता है। ऐसे में RRR में गांधी और नेहरू की भूमिका को शामिल न कर वी विजयेन्द्र प्रसाद ने स्पष्ट बताया है कि उनके लिए केवल राष्ट्र सर्वोपरि है और ये केवल संयोग नहीं हो सकता है कि इसी समय उन्हें राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनीत भी किया गया है।

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