PM मोदी ने साबित कर दिया बदलाव के लिए ‘हार्वर्ड’ नहीं ‘हार्ड वर्क’ की आवश्यकता होती है

परिवर्तन जमीन पर दिखता है.

Harvard vs Hard Work

Source- TFI

सुशासन तभी संभव है जब सरकार पारदर्शिता की ओर संकल्पित हो। एक समय था जब सरकार बंद दरवाजों में नीति निर्माण कर देश में लागू कर दिया करती थी। यह कितना गलत था और कितना सही वो इससे प्रदर्शित होता है कि योजनाएं बन जाती थी पर उनका लेश मात्र भी लाभ देश की जनता को नहीं मिलता था। लेकिन वर्ष 2014 के बाद सच में बहुत कुछ बदल गया। जहां एक ओर आज़ादी के बाद पहली बार एकमुश्त जनधन योजना के तहत देशवासियों के खाते खुले और उन खातों का सीधा लाभ लाभार्थियों को मिल सके उस दिशा में सरकार की ओर से कदम बढाए गए। वहीं, दूसरी ओर QUANTITY छोड़ QUALITY पर ध्यान केंद्रित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने यह सिद्ध कर दिया कि वास्तव में भारत में “हार्वर्ड” से ज्यादा “हार्ड वर्क” काम आता है।

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दरअसल, भारत आजादी के बाद भी पिछड़ा रहा क्योंकि सत्ताधीश राजनीति का उपयोग नहीं उपभोग करते रहे। यही कारण रहा कि योजनाएं बनती गई और धरातल पर उतरने के बजाय धरा में ही समा गई। पीएम मोदी ने एक बार अपने संबोधन में कहा था कि हार्वर्ड से भी ज्यादा हार्ड वर्क महत्वपूर्ण होता है। इसी बात को पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में कई योजनाओं ने चरितार्थ कर दिया जिसमें “आधार” में आ रही समस्याओं को दुरुस्त करने की बात से लेकर कांग्रेस के कार्यकाल में आई कई योजनाओं में आमूलचूल परिवर्तन के साथ मूर्त रूप देना भी शामिल था। भले ही आधार जैसी योजना कांग्रेस के शासनकाल में आई पर उसपर असल काम और खामियों को इसी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सही किया गया।

इस कमी को सुधारने से पहला लाभ “जन धन योजना” के लाभार्थियों को हुआ क्योंकि बैंक से सीधा आधार को लिंक करने की प्रक्रिया से पारदर्शिता को बढ़ावा मिला। बाद में फिर चाहे किसी भी योजना का पैसा आना हो, पेंशन आनी हो या कोई भी सरकार की ओर से प्रदान की जा रही आर्थिक मदद हो, सीधा बैंक में पहुंचनी शुरू हो गई। बीच के बिचौलिए, दलाल और चोरों का खात्मा इसी “हार्ड वर्क” नीति का सबसे बड़ा उदाहरण है।

इसके बाद भारत को मिले डिजिटल इंडिया ने जिस प्रकार तंत्र को जनता के लिए सुलभ किया उसका कोई सानी नहीं है। 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आधिकारिक तौर पर डिजिटल इंडिया लॉन्च किया। भारत को एक सशक्त डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए सरकार का प्रमुख कार्यक्रम महत्वाकांक्षी भी था। वर्ष 2015 तक केवल 19% आबादी इंटरनेट से जुड़ी थी और केवल 15% लोगों के पास मोबाइल की पहुंच थी लेकिन इस कार्यक्रम ने दुनिया में भारत के स्थान की सार्वजनिक कल्पना में एक स्पष्ट बदलाव किया

देश जिस दिशा में जा रहा था डिजिटल इंडिया आने से उसकी दिशा बिल्कुल बदल गई। आधार की संवैधानिकता पर सवाल उठाने वाली कई असफल याचिकाओं से लेकर भारत की डिजिटल यात्रा में अड़चनों का एक बड़ा किरदार इसकी उन्नति में रहा है। यह डिजिटल इंडिया का ही कमाल था जो कोरोना महामारी में आरोग्य सेतु जैसा ऐप भारत के जन-जन के लिए बचाव का सारथी बना।

यह सत्य है कि दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि “सरकार 1 रुपया भेजती है तो लोगों तक 15 पैसे पहुंचते हैं।” उसके बाद भी कई बार इस बयान का जिक्र हुआ करता था पर पीएम मोदी के शासनकाल में इस मिथक को तोडा गया और आज किसान सम्मान निधि हो, वृद्धा पेंशन हो या अन्य कोई भी आर्थिक सहायता हो, एक क्लिक से संबंधित व्यक्ति को बिना एक पैसा कटे पूरी की पूरी राशि उनके बैंक अकाउंट में पहुंच जाती है। यही तंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह कोई हार्वर्ड का पढ़ा व्यक्ति उच्चस्थ पद पर आसीन नहीं है उसके बावजूद सरकार हार्ड वर्क की नीति के साथ झंडे गाड़ रही है। वैसे भी हार्वर्ड और कहां-कहां से पढ़कर आने वाले कांग्रेसी नेताओं और मंत्रियों ने जनता के लिए क्या और कितना काम किया यह तो पूरा देश ही जानता है! खैर मौजूदा समय में मोदी सरकार की नीतियां देश की जनता को राहत पहुंचा रही हैं और यह निश्चित रूप से हार्ड वर्क का ही प्रतिफल है जिसका कोई तोड़ नहीं है।

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