उपराष्ट्रपति रहते हुए हामिद अंसारी करते थे यह काम, कच्चा चिठ्ठा सबके सामने है

मोहम्मद हामिद अंसारी का झूठ उन पर ही भारी पड़ गया!

Hamid Ansari

कहते हैं कि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए वो ज्यादा दूर तक नहीं चल पाता। भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी के संदर्भ में यह कथन सोलह आने सच साबित होता है। अब तक स्वयं को अबोध बालक और मासूम दिखाने का प्रयास करने वाले मोहम्मद हामिद अंसारी को अब उन्हीं के झूठ ने पटखनी दे दी है।

हामिद अंसारी के सामने प्रश्नों का अंबार

हामिद अंसारी का पर्दाफाश होने के साथ ही यह भी सिद्ध हो गया है कि कैसे आतंकपरस्त पाकिस्तान के गुर्गों को इस देश में बुलाया जाता था और कैसे वो गुर्गे यहां से संजीदा जानकारी लेकर जाते थे। नुसरत मिर्ज़ा से हामिद अंसारी के संबंधों की कहानी सरेआम होने के बाद हामिद अंसारी के सामने प्रश्नों का अंबार खड़ा हो गया था। अंसारी को कुछ नहीं सूझ रहा था तो उन्होंने पूरा ठीकरा यूपीए सरकार पर फोड़ दिया। लेकिन इसके बाद जो तथ्य सामने आए हैं वो और ज्यादा डराने वाले हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे हामिद अंसारी का झूठ तो पकड़ा ही गया है साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि माननीय अंसारी जी ने उस जासूस के साथ एक बार नहीं बल्कि दो बार मंच साझा किया था।

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दरअसल, पाकिस्तानी पत्रकार के भेष में घूम रहे जासूस नुसरत मिर्ज़ा ने यह स्वीकार किया है कि उसने 2010 में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के निमंत्रण पर एक सेमीनार में भाग लिया था। उसने आगे स्वीकार किया है कि भारत से जानकारी लाकर उसने ISI को दी थी। इसके बाद से मोहम्मद हामिद अंसारी सवालों के घेरे में हैं। अपने बचाव में उन्होंने कहा था कि यह उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं था और न ही उन्होंने किसी को निमंत्रित किया था। उन्होंने इसका पूरा ठीकरा आयोजकों पर फोड़ दिया। यहीं उन्होंने ग़लती कर दी, गलती क्या अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। दरअसल, अब कार्यक्रम के आयोजक डॉ आदिश अग्रवाल ने इस मामले पर एक विस्तृत बयान जारी किया है।

डॉ आदिश अग्रवाल ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से क्या कहा?

डॉ आदिश अग्रवाल ने गुरुवार (14 जुलाई) को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि उक्त कार्यक्रम 2010 में 11-12 दिसंबर के बीच नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार आयोजित किया गया था। “तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सम्मेलन में भाग लिया था, लेकिन नुसरत मिर्जा न तो आमंत्रित थे  और न ही उन्होंने इसमें भाग लिया था। यहां तक कि नुसरत मिर्जा ने भी अपने इंटरव्यू में इस कॉन्फ्रेंस का जिक्र नहीं किया है।
प्रेस रिलीज में आगे बताया गया है कि उपराष्ट्रपति सचिवालय के निदेशक अशोक दीवान ने मुझसे कहा था कि उपराष्ट्रपति चाहते हैं कि पाकिस्तानी पत्रकार नुसरत मिर्जा को भी सम्मेलन में आयोजित किया जाए। आयोजकों ने जब उनकी बात नहीं मानी तो अशोक दीवान ने इसको लेकर नाराजगी व्यक्त की। इसके साथ ही दीवान ने आयोजकों से कहा कि हामिद अंसारी को इस बात का बुरा लगा है कि पाकिस्तानी पत्रकार को नहीं बुलाया गया इसलिए अब वो एक घंटे की बजाय 20 मिनट ही कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे।

इस बात को समझने में अधिक मुश्किल नहीं होगी कि कैसे मोहम्मद हामिद अंसारी इस बात से नाराज थे कि पाकिस्तानी पत्रकार जोकि जासूस था उसे क्यों नहीं बुलाया गया।

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यह तो कुछ भी नहीं है, प्रेस रिलीज में आगे बताया गया है कि जामा मस्जिद यूनाइटेड फोरम ने 27 अक्टूबर, 2009 को आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस आयोजन में हामिद अंसारी तो मौजूद थे ही उनके साथ ही पाकिस्तानी पत्रकार जोकि जासूस था नुसरत मिर्जा वो भी मौजूद था। नीचे दिए गए ट्वीट में लगे चित्र को ध्यान से देखिए, सामने तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी बैठे हैं जबकि कोने में एक तरफ स्टेज पर  ही पाकिस्तानी जासूस नुसरत मिर्जा बैठा है।

इस पूरे घटनाक्रम से एक बात बिल्कुल साफ है कि उपराष्ट्रपति रहते हुए हामिद अंसारी न केवल अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पाकिस्तानी जासूस को भारत में बुलवाने का दबाव डालते थे बल्कि इन सभी से पहले से परिचित भी थे।

तभी तो बार-बार उसे अपने कार्यक्रमों में बुलाते थे, ऐसे में हामिद अंसारी के लिए सवाल अभी भी बाकी हैं। मोहम्मद हामिद अंसारी को बताना होगा कि उस पाकिस्तानी जासूस से उनके क्या संबंध थे?

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