रणबीर कपूर ने सिद्ध कर दिया कि क्यों बॉलीवुड का कुछ नहीं हो सकता है

'बॉलीवुड गैंग' का ‘हिंदू फोबिया’ ख़त्म नहीं हुआ !

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Source- TFIPOST.in

देखो भई, बड़े बुजुर्गों ने कहा है, जब आपकी लंका लगी हुई हो, तो प्रयास कीजिए कि अपने कर्मकांड सुधारें और अपनी छवि सुधारें, ये नहीं कि अपने ही हाथों से अपने उद्योग की मटियामेट करें। परंतु अपने रणबीर कपूर के वर्तमान विचारों को देखकर ऐसा नहीं लगता।

हाल ही में ‘शमशेरा’ के प्रोमोशन के दौरान मीडिया से वार्तालाप करते हुए रणबीर कपूर ने बताया कि क्यों उनके पिता, दिवंगत अभिनेता ऋषि कपूर पीरियड फिल्म करने से उन्हे रोकते थे।

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रणबीर के अनुसार

मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि कभी ऐसी फिल्म मत करना जिसमें तुमको धोती पहनने की जरूरत पड़े क्योंकि ये चलती नहीं हैं। हमेशा कॉमर्शियल फिल्में करना” इस सोच के लिए ऋषि कपूर को 21 तोपों की सलामी मिलनी चाहिए। इनके हिसाब से जो भी पीरियड फिल्म करता है, वो फ्लॉप है। उस लॉजिक से तो दक्षिण भारत की समस्त फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरनी चाहिए थे, ‘बाहुबली’ जैसे फिल्मों को हिन्दी भाषी क्षेत्र में एक दमड़ी नहीं कमानी चाहिए थी, और ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ यानि RRR को सुपर फ्लॉप होना चाहिए था।

कुछ नया नहीं अब रणबीर के पास

अब बात जब धोती की उठी ही है, तो उस हिसाब से तो फिर सनी देओल की ‘घातक’ और ‘अर्जुन पंडित’ भी सुपर फ्लॉप होनी चाहिए थी, जहां उन्होंने अपनी मूल संस्कृति और परिधानों से कोई समझौता नहीं किया था। परंतु इन फिल्मों ने तब सुपरहिट/ब्लॉकबस्टर का स्टेटस कमाया था, और ये दोनों तो कमर्शियल फिल्में भी थी। सीधे सीधे क्यों नहीं बोलते, कि आपके पास अब जनता को परोसने के लिए कुछ भी नया नहीं रह गया है?

परंतु ये बॉलीवुड की कोई अभी की बीमारी नहीं है। पिछले कई दशकों से बॉलीवुड इसी महामारी से ग्रसित है, परंतु व्यवसायीकरण के अंधी दौड़ में लगा हुआ है ये उद्योग न केवल अपनी आँख और कान दोनों बंद किये हुए हैं, अपितु अब जो नवीनीकरण को गलती से भी थोड़ा बहुत बढ़ावा देने की रीति हुआ करती थी, वो भी अब बंद हो चुकी है।

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बॉलीवुड अभी तक जागा नहीं

कभी देश भर में अपने ऊटपटाँग दृश्यों और अतार्किक एक्शन के लिए हास्य का पर्याय बने दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग ने अब बहुभाषीय सिनेमा के रूप में विकसित होकर अब भारतीय दर्शकों को एक अलग ही लोक दिखा रहा है। जो दर्शन ‘बाहुबली’ से प्रारंभ हुए, वो अब ‘KGF’, ‘RRR’, ‘Major’, ‘Rocketry’, ‘Vikram’ जैसे फिल्मों के माध्यम से अब जनता को एक स्पष्ट संदेश दे रहे हैं – मनोरंजन के नाम पर आपको जो चाहिए, सब मिलेगा।

और बॉलीवुड? उनके पास है ‘शमशेरा’, जिसे प्रथम दृष्टि में देखो तो लगेगा कि वाह, आखिर कुछ टक्कर का आइटम, पर ट्रेलर को ढंग से देखो, तो मन में आए – इससे अच्छा ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ ही दोबारा देख लेखते। ऊंची दुकान, फीका पकवान का वास्तविक प्रमाण क्या है, ‘शमशेरा’ से बेहतर आपको शायद ही कोई समझा पाए। वही पुराने घिसे पिटे प्लॉट, मनीष मल्होत्रा के अति आधुनिक कॉस्टयूम, ऐसे कई दृश्य जिन्हे देख ‘KGF’ के प्रशंसक तलवारें देख लें, और अभी तो हमने मेन विलेन, दारोगा शुद्ध सिंह की चर्चा भी नहीं की है।

अभी हाल ही में हमने देखा था कि कैसे तापसी पन्नू जैसी अभिनेत्री मिताली राज के विचारों तक को स्वीकार नहीं कर पा रही थी, जबकि वे उसी के किरदार को सिल्वर स्क्रीन पर निभा रही हैं, और वहीं दूसरी ओर अब रणबीर महोदय ने स्पष्ट किया है कि कैसे उनके पिता को भारतीय संस्कृति से घृणा रही हैं। मानना पड़ेगा बॉलीवुड, तेरी हिपोक्रेसी का कोई जवाब नहीं।

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