रैपिडो ने कैसे ध्वस्त की ओला-उबर की बादशाहत?

दो बड़े खिलाड़ियों को पछाड़कर रैपिडो ने मार्केट पर कब्जा कैसे किया?

Rapido wipes Ola Uber

Source- TFIPOST HINDI

भारत की बेंगलुरू बेस्ड बाइक-टैक्सी (Bike-Taxi) सेवाएं देने वाली कंपनी ‘रैपिडो’ अंतरराष्ट्रीय कंपनी उबर और भारतीय कंपनी ओला को पछाड़ते हुए लोगों के बीच काफी तेजी से अपनी जगह बना रही है। ‘राइड सोलो’ नारे के साथ इस रेस में उतरी रैपिडो की शुरुआत नवंबर 2015 में हुई जब इसके तीनों संस्थापक-  पवन गुंटुपल्ली, ऋषिकेश एसआर और अरविंद संका ने एक ऐसी ट्रांसपोर्टेशन सर्विस खोलने का विचार बनाया जो  वाहन निवेश के मामले में ओला और उबर से अलग हो, बेहतर हो और अधिक लोगों तक पहुंच सके। वे कुछ ऐसा चाहते थे जो छोटी दूरी की यात्रा और आम लोगों के लिए भरोसेमंद, सुविधाजनक और किफायती हो क्योंकि ओला, उबर में मुख्य रूप से गाड़ियां ही चलती हैं। ऐसे में वे कभी भी नियमित रूप से सभी के लिए सस्ते नहीं होंगे। इसके अलावा प्रमुख शहरों में ट्रैफिक की स्थिति दिनों-दिन बदतर होती जा रही है। ऐसे में उन्हें कुछ ऐसा चाहिए था जिसका खर्च मध्यम वर्गीय लोग भी आसानी से नियमित रूप में वहन कर सकें। साथ ही बड़े शहरों में ट्रैफिक जैसी समस्याओं से बचने के लिए उन्होंने चार पहिये की गाडी के बजाये मोटरसाइकिल जैसे दोपहिया वाहन को उपयोग में लाने की रणनीति तैयार की।

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ओला-उबर के बाजार में जमा लिया अपना वर्चस्व

कहते हैं कि व्यापार जब मार्केट के ऊपर निर्भर हो तो अपने मुनाफे से पहले ग्राहक की जरूरत पर ध्यान देना चाहिए, अगर ग्राहक खुश तो आपका बिज़नेस खुश। यहीं काम रैपिडो के संस्थापकों ने भी किया। उन्होंने बिना सोचे-समझे इस मार्केट में कूदने के बजाये पहले लोगों की ज़रूरतों को समझा और यह उसी का फल है कि वर्ष 2015 में शुरू किये उनके इस व्यवसाय ने गत वर्ष 2021 तक राजस्व में 12.5 गुना वृद्धि हासिल कर ली।

रैपिडो ने अपने प्लान पर काम करते हुए उन लोगों को काम पर रखा जिनके पास दोपहिया वाहन थे। उन्होंने अपनी कंपनी का कैप्टन नाम से एक ऐप बनाया जो दोपहिया मालिकों को कंपनी के साथ अपनी जानकारी को पंजीकृत करने और सत्यापित करने की अनुमति देता है। भारत के कई माध्यम वर्गीय परिवार ऐसे हैं जो गाड़ी नहीं खरीद सकते लेकिन दोपहिया वाहन लगभग भारत के हर घर में मौजूद हैं। इसी के कारण कई लोग रैपिडो से जुड़े क्योंकि यह उनके लिए कुछ एक्स्ट्रा पैसे कमाने का अच्छा साधन बनकर उभर सकता था और उनकी यह सोच सही भी साबित हुई। आज रैपिडो देश भर के 90 से अधिक शहरों में संचालित होता है और उन शहरों के भीतर और आसपास के विभिन्न स्थानों की यात्रा करवता है।

हालांकि, ओला और उबर ने भी अपनी सवारी में दोपहिया वाहन शामिल किए हैं लेकिन आज भी उनकी लिस्ट में सबसे ऊपर गाड़ी को ही महत्व दिया जाता है। इसके अलावा रैपिडो ने उस समय दोपहिया वाहन की शुरुआत की जब उसके टक्कर में कोई नहीं था और अपनी बेहतरीन सोच और दूरदर्शिता से उसने बाज़ार के बड़े हिस्से पर अपनी पकड़ बना ली, जिसमें ओला और उबर आज भी काफी पीछे हैं। रैपिडो के साथ जुड़ना बाइक चालकों के लिए इसलिए भी फायदेमंद रहा क्योंकि ओला, उबर के विपरीत उन्हें इसके लिए कोई महंगी गाड़ी नहीं खरीदनी पड़ी। उनके पास जो दोपहिया वाहन थे उन्हीं के साथ वे रैपिडो का हिस्सा बनने में समर्थ थे। आज भी काफी ज्यादा संख्या में लोग अपनी कमाई हेतु रैपिडो पर निर्भर हैं।

रैपिडो कैसे पैसे कमाता है?

रैपिडो के रेवेन्यू मॉडल को दो हिस्सों में बांटा गया है- कमीशन आधारित, B2C कमीशन

कमीशन आधारित – कंपनी अपने ऐप के जरिये कप्तान (ड्राइवर) और यात्री को मिलवाती है। इस सवारी से ड्राइवर जितना भी पैसा कमाता है उसका 80% ड्राइवर रखता है जबकि 20% कंपनी कमीशन के रूप में लेती है।

B2C कमीशन – कंपनी यहां B2C लॉजिस्टिक्स प्रदान करके पैसा कमाती है। अर्थात् लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं को उनके माल की डिलीवरी में सहायता करके।

इस समय जहां ओला और उबर भारत में अपना वर्चस्व बनाये रखने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं वहीं, दूसरी ओर रैपिडो इन्हें कड़ी टक्कर देते हुए द्रुत गति से आगे बढ़ता जा रहा है। रैपिडो ने बाइक के साथ-साथ अब ऑटो सेवाएं प्रदान करने का काम भी शुरू कर दिया है। अब  रैपिडो का लक्ष्य है कि उसके प्लेटफॉर्म पर 1 मिलियन कप्तान (ड्राइवर) हिस्सा बनें और 10 मिलियन ग्राहकों तक रैपिडो की पहुंच हो। जिस तरह से रैपिडो इतना सोच समझकर आगे कदम बढ़ा रहा है यह हैरान करने वाली बात नहीं होगी यदि आने वाले कुछ वर्षों में रैपिडो अपना यह लक्ष्य भी प्राप्त कर ले।

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