कानून में बदलाव के साथ ही बदल जाएगी SEZs की तस्वीर, घरेलू बाजार की बल्ले-बल्ले

जानिए क्या होगा बदलाव?

nirmala sitharaman

दुनिया का पहला स्पेशल इकोनॉमिक सेल (special economic cell) यानी SEZs 1947 में प्यूर्टो रिको में स्थापित एक औद्योगिक पार्क था जो अमेरिका की मुख्य भूमि से निवेश आकर्षित करने के लिए था। बाद में इसमें कई देश शामिल हुए जिन्होंने आर्थिक विकास को गति देने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए SEZs की अवधारणा के साथ प्रयोग किया। इसने अच्छी सफलता प्राप्त की तो वहीं दूसरे कई देशों ने भी इस नीति को अपनाया जिसमें भारत भी शामिल था। भारत में निर्यात, विनिर्माण और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए SEZs को उपयोग में लाया गया यह सोचकर कि जिस तरह इसने अमेरिका और चीन जैसे देशों में सफलता पायी है वैसे ही सफल परिणाम यह भारत में भी देगा लेकिन नीति उलट गयी।

SEZs अधिनियम 2005 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पारित किया गया था और यह 2006 में लागू हुआ था। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य भारत के निर्यात को बढ़ावा देना था। प्रारंभिक वर्षों में, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, निजी कंपनियों ने भारी निवेश किया और कुछ सफलता भी प्राप्त की। लेकिन फिर नीति संरचना और नौकरशाही लालफीताशाही के कारण, यह निति कमज़ोर पड़ती गयी। SEZs की विफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं।

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भारत में SEZs की स्थापना विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम (2005) के बाद विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने, रोजगार प्रदान करने और निर्यात बढ़ाने के लिए की गयी थी लेकिन अधिनियम के 10 वर्षों के बाद भी SEZs ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया है।

इसके कुछ कारण हैं।

-न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) और लाभांश वितरण कर (DDT) लगाना

-पोर्ट कनेक्टिविटी, सड़कों आदि जैसे बाहरी समर्थन तंत्र की अनुपलब्धता

-विदेशी निवेश अपेक्षित स्तर तक नहीं रहा है।

-SEZs के तहत जमीन का इस्तेमाल रियल एस्टेट सेक्टर द्वारा जमीन हथियाने के लिए किया गया।

-हालांकि बहुत से एसईजेड को ही मंजूरी दी गयी लेकिन उनमें से कुछ ही कार्यरत हैं।

-10 वर्षों में केवल एक मिलियन नौकरियों का सृजन हुआ है जो कि बराबर है।

यह कहना गलत होगा कि एसईजेड पूरी तरह से विफल है। लेकिन जितनी सफलता इसने दूसरे देशों में पायी है उतनी यह भारत में पाने में असफल रहा है। हालांकि, इसमें यदि कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएं तो शायद यह बेहतर परिणाम देगा।

इसी को ध्यान में रखकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट 2022-23 के भाषण में भारत में मौजूदा विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) कानून को एक नये कानून से बदलने का संकेत दिया था। अब हाल ही में आयी खबर के अनुसार अब एसईजेड को व्यापक आर्थिक केंद्रों यानी इकॉनमिक हब में बदलने पर विचार किया जा रहा है।

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इस केंद्र में स्थित औद्योगिक इकाइयों, जिन्हें Development of Enterprise and Service Hubs (DESH) के नाम से जाना जाएगा, इसको अब अपने उत्पाद घरेलू बाजार में बेचने और इन क्षेत्रों के बाहर के लोगों के लिए अनुबंध निर्माण करने की अनुमति दी जा सकती है।

जल्द ही मोदी सरकार विशेष आर्थिक क्षेत्रों की परिचालन संरचना बदलने के मकसद से एक नया विधेयक पेश करने वाली है। इसे डेवलपमेंट ऑफ एंटरप्राइज एंड सर्विस हब (DESH) बिल का नाम दिया गया है। DESH बिल केवल निर्यात को बढ़ावा नहीं देगा बल्कि यदि यह अधिनियम पारित हो जाता है, तो यह अधिनियम SEZs में काम करने वाली कंपनियों को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए और अधिक रोजगार सृजन की अनुमति देगा। ऐसा नहीं है कि पहले कंपनियां घरेलू बाजार में बिक्री नहीं कर सकती थीं, लेकिन उनका निर्यात उनकी घरेलू बिक्री से बहुत कम था।

इस नये बिल से अब कारोबार करना काफी आसान हो जाएगा। बिल के मुताबिक समयबद्ध रेगुलेटरी मंजूरियों के लिए ऑनलाइन सिंगल विंडो पोर्टल होगा। साथ ही इस बिल के तहत अब राज्यों के पास इन आर्थिक क्षेत्रों को लेकर फैसले लेने की अधिक ताकत होगी। अब निर्णय लेने का पूरा अधिकार जो पहले केवल वाणिज्य मंत्रालय तक सीमित था अब राज्यों के पास वही सामान अधिकार होगा। वे माल के आयात या खरीद को मंजूरी देने, माल और सेवाओं के उपयोग की निगरानी करने आदि में सक्षम होंगे।

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