भारत के दो गुट में सबसे सहिष्णु यदि राइट विंग है तो सबसे असहिष्णु लिबरल गुट दिखायी पड़ता है। हालिया प्रकरण इसका जीवंत उदाहरण है। दरअसल, “द प्रिंट” स्वयं को पत्रकारिता का ध्वजवाहक मानता है लेकिन उसकी वास्तविकता सभी को पता है। कितनी खबरें तथ्यात्मक होती हैं और कितनी कहानियां बुनकर डाली जाती हैं वो देश की सबसे बड़ी फैक्ट चैकिंग मशीनरी “प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो” हर माह दिखा ही देती है। PIB के फैक्ट चैकिंग का मूल ध्येय सरकार की नीतियों और योजनाओं के बारे में गलत सूचना और फेक कंटेंट का प्रसार करने वालों पर नकेल कसने का होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे द प्रिंट के सर्वेसर्वा शेखर गुप्ता की बखिया उन्हीं का लिबरल गुट उधेड़ रहा है जिसकी शह लेकर आज तक वो अपना एजेंडा चला रहे थे। आज लिबरल गुट के लिए शेखर गुप्ता संघी, बिकाऊ और सरकार के गुर्गे हो गए हैं।
Do I have a complaint with Mohd Zubair of Alt News? Here’s why I have 3 answers: No, No & Yes
This week's #NationalInteresthttps://t.co/EBolI9JuYD
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) July 9, 2022
शेखर गुप्ता की बखिया उधेड़ रहा है उन्हीं का गुट
दरअसल, मोहम्मद ज़ुबैर मामले में “द-प्रिंट” के संस्थापक शेखर गुप्ता ने एक लेख में लिखा कि “क्या होगा अगर आपने मुझसे पूछा कि क्या मुझे ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबैर से कोई शिकायत है? मैं आपको तीन उत्तर दूंगा। नहीं, नहीं, और हाँ।” बस यही NO, NO, YES शेखर गुप्ता की जीवन में चरस की तरह घुल गया, और यह चरस घोली शेखर गुप्ता सरीखे उन सभी लिबरल और वामपंथी गुटों ने जो अब तक “द प्रिंट” की चरणवंदना करते थे और आज एक NO, NO, YES के चक्र में सभी बिफर गए।
Do I think Shekhar Gupta is an A$$HOLE? Yes, Yes & YES https://t.co/YC7FFzd2ZI
— Drunk Journalist (@drunkJournalist) July 10, 2022
और पढ़ें- कॉमन-सेंस? वो क्या होती है? The Print की पत्रकार ज्योति मल्होत्रा का इससे कोई संबंध नहीं है
वामपंथी और लिबरल गुट की हालत खराब है
ज्ञात हो कि मोहम्मद ज़ुबैर के कारनामों पर शेखर गुप्ता द्वारा लिखे लेख में जिस बात के लिए Yes कहा गया उस पर शेखर गुप्ता की टांग खिंचाई यह दर्शाती है कि एक बार के लिए राइट विंग के भीतर मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं पर उनमें कभी मनभेद नहीं होता, वहीं वामपंथी और लिबरल गुट की हालत ऐसी है कि एक इंच भी उनकी वैचारिक दृष्टि से बाहर हुए तो वो उस गुट से “गुट निकाला” दे देते हैं। शेखर ने यह लिखा कि “ज़ुबैर द्वारा मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना गलत था, नूपुर शर्मा का बयान और उसके विरुद्ध चल रहा आंतरिक द्वंद्व भारत तक ही सीमित रहता तो बेहतर था।” शेखर गुप्ता के इसी एक बिंदु के चक्कर में वो अब अपने गुट के लिए नासूर बन चुके हैं।
I have a problem with Shekhar Gupta's take on Zubair – Yes Yes and Yes
— Ashwin Mushran (@ashwinmushran) July 10, 2022
Unfortunately @ShekharGupta is dependent for funds on Biocon and Biocon officials have been arrested for bribery by the CBI. https://t.co/lF2kD3zq7O
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) July 11, 2022
यह हास्यास्पद है कि यह गुर्गे तब कहां चले जाते थे जब NDTV जैसे चैनलों में बैठकर मंत्रिपरिषद तय हुआ करते थे। यह तब कहां चले जाते थे जब देश में घोटालों की बाढ़ आयी होती थी और तब इसकी तथाकथित पत्रकारिता पर ताले क्यों जड़ जाते थे। यह मात्र इसलिए होता है क्योंकि दूसरे की थाली में हमेशा घी ज़्यादा ही दिखता है की तरह अपनी गलती किसी को कभी दिखती ही नहीं है।
I work as a investigative journo I don’t have billions from land/lal Dora deals & my former editor @ShekharGupta in his zeal to suck up to @narendramodi branded me a “Modi hater” after I got the @RSF_inter prize for courage for investigation I am a troll”
— Swati Chaturvedi (@bainjal) July 10, 2022
And, here is the Guha reprimand for @ShekharGupta after he included him in his hit job “Modi haters” to suck up to @PMOIndia GUPTA’s editorial standard dropped Guha name. Painted a target on my back for Modi to attack pic.twitter.com/rB4TrSbxHu
— Swati Chaturvedi (@bainjal) July 10, 2022
और पढ़ें- ‘सच से कोसों दूर’, रूसी राजदूत ने The Print की पत्रकारिता शैली को किया उजागर
शेखर गुप्ता द्वारा किए गए ट्वीट के लिए उन्हें अब सरकार का दलाल, पिट्ठू, संघी और विभिन्न संज्ञाओं से लादा जा रहा है। सरकार के पैसों पर चल रहा है, बिकाऊ है यह ऐसी तमाम बातें और टिप्पणियां इस लेख के प्रतिकार स्वरुप ट्विटर और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर आम रूप से दिख रही हैं। इससे यह तो सिद्ध हो गया कि वामपंथी समूह कितने असहिष्णु हैं और कितने विधर्मी। इन सभी का शेखर गुप्ता पर यूं चढ़ जाना इस बात का प्रमाण है कि अब सरकार को घेरने में असफल होने के बाद इनकी आपसी सिरफुटव्वल का सीज़न आ गया है और यह आर्थिक तंगी के उस मुहाने पर हैं जहां पैसा आ नहीं रहा, धंधा चल नहीं रहा तो आओ मिलकर अपने साथियों को ही गरियाया जाए।
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