मोहम्मद ज़ुबैर पर शेखर गुप्ता ने की ‘मन की बात’, लिबरलों ने ‘गुप्ता जी’ की लंका लगा दी

ये क्या! लिबरलगणों में जूतम पैजार होने लगी, ‘वफादार’ गुप्ता जी ठेले जा रहे हैं

Shekhar Gupta

भारत के दो गुट में सबसे सहिष्णु यदि राइट विंग है तो सबसे असहिष्णु लिबरल गुट दिखायी पड़ता है। हालिया प्रकरण इसका जीवंत उदाहरण है। दरअसल, “द प्रिंट” स्वयं को पत्रकारिता का ध्वजवाहक मानता है लेकिन उसकी वास्तविकता सभी को पता है। कितनी खबरें तथ्यात्मक होती हैं और कितनी कहानियां बुनकर डाली जाती हैं वो देश की सबसे बड़ी फैक्ट चैकिंग मशीनरी “प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो” हर माह दिखा ही देती है। PIB के फैक्ट चैकिंग का मूल ध्येय सरकार की नीतियों और योजनाओं के बारे में गलत सूचना और फेक कंटेंट का प्रसार करने वालों पर नकेल कसने का होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे द प्रिंट के सर्वेसर्वा शेखर गुप्ता की बखिया उन्हीं का लिबरल गुट उधेड़ रहा है जिसकी शह लेकर आज तक वो अपना एजेंडा चला रहे थे। आज लिबरल गुट के लिए शेखर गुप्ता संघी, बिकाऊ और सरकार के गुर्गे हो गए हैं।

शेखर गुप्ता की बखिया उधेड़ रहा है उन्हीं का गुट

दरअसल, मोहम्मद ज़ुबैर मामले में “द-प्रिंट” के संस्थापक शेखर गुप्ता ने एक लेख में लिखा कि “क्या होगा अगर आपने मुझसे पूछा कि क्या मुझे ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद जुबैर से कोई शिकायत है? मैं आपको तीन उत्तर दूंगा। नहीं, नहीं, और हाँ।” बस यही NO, NO, YES शेखर गुप्ता की जीवन में चरस की तरह घुल गया, और यह चरस घोली शेखर गुप्ता सरीखे उन सभी लिबरल और वामपंथी गुटों ने जो अब तक “द प्रिंट” की चरणवंदना करते थे और आज एक NO, NO, YES के चक्र में सभी बिफर गए।

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वामपंथी और लिबरल गुट की हालत खराब है

ज्ञात हो कि मोहम्मद ज़ुबैर के कारनामों पर शेखर गुप्ता द्वारा लिखे लेख में जिस बात के लिए Yes कहा गया उस पर शेखर गुप्ता की टांग खिंचाई यह दर्शाती है कि एक बार के लिए राइट विंग के भीतर मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं पर उनमें कभी मनभेद नहीं होता, वहीं वामपंथी और लिबरल गुट की हालत ऐसी है कि एक इंच भी उनकी वैचारिक दृष्टि से बाहर हुए तो वो उस गुट से “गुट निकाला” दे देते हैं। शेखर ने यह लिखा कि “ज़ुबैर द्वारा मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना गलत था, नूपुर शर्मा का बयान और उसके विरुद्ध चल रहा आंतरिक द्वंद्व भारत तक ही सीमित रहता तो बेहतर था।” शेखर गुप्ता के इसी एक बिंदु के चक्कर में वो अब अपने गुट के लिए नासूर बन चुके हैं।

यह हास्यास्पद है कि यह गुर्गे तब कहां चले जाते थे जब NDTV जैसे चैनलों में बैठकर मंत्रिपरिषद तय हुआ करते थे। यह तब कहां चले जाते थे जब देश में घोटालों की बाढ़ आयी होती थी और तब इसकी तथाकथित पत्रकारिता पर ताले क्यों जड़ जाते थे। यह मात्र इसलिए होता है क्योंकि दूसरे की थाली में हमेशा घी ज़्यादा ही दिखता है की तरह अपनी गलती किसी को कभी दिखती ही नहीं है।

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शेखर गुप्ता द्वारा किए गए ट्वीट के लिए उन्हें अब सरकार का दलाल, पिट्ठू, संघी और विभिन्न संज्ञाओं से लादा जा रहा है। सरकार के पैसों पर चल रहा है, बिकाऊ है यह ऐसी तमाम बातें और टिप्पणियां इस लेख के प्रतिकार स्वरुप ट्विटर और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर आम रूप से दिख रही हैं। इससे यह तो सिद्ध हो गया कि वामपंथी समूह कितने असहिष्णु हैं और कितने विधर्मी। इन सभी का शेखर गुप्ता पर यूं चढ़ जाना इस बात का प्रमाण है कि अब सरकार को घेरने में असफल होने के बाद इनकी आपसी सिरफुटव्वल का सीज़न आ गया है और यह आर्थिक तंगी के उस मुहाने पर हैं जहां पैसा आ नहीं रहा, धंधा चल नहीं रहा तो आओ मिलकर अपने साथियों को ही गरियाया जाए।

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