सिलप्पतिकारम: ये है संगम युग की अनूठी प्रेम कहानी

एक अनूठी प्रेम कहानी जिसे एक 'पायल' ने बना दी 'दुखद प्रेम कहानी'

History of Kannaki

सिलप्पतिकारम सबसे पुराना तमिल महाकाव्य है, यह 5,730 पंक्तियों की एक कविता है। यह महाकाव्य एक साधारण जोड़े, कन्नगी और उनके पति कोवलन की एक दुखद प्रेम कहानी को कहता है। यह महाकाव्य बहुत प्राचीन है, इस महाकाव्य के पात्रों का उल्लेख संगम साहित्य में किया गया है जिसके रचयिता राजकुमार से भिक्षु बने इलांगो अडिगल हैं जिन्होंने इस महाकाव्य को संभवत: 5वीं या 6वीं शताब्दी में लिखा था।

सिलप्पतिकारम में अंकित है एक दुखद प्रेम कहानी

सिलप्पतिकारम- दो शब्दों का एक संयोजन है, “सिलंबु” (पायल) और “आदिकारम” (के बारे में कहानी)। इसलिए यह एक “कहानी जो एक पायल के इर्द-गिर्द केंद्रित है” का अर्थ देती है। इस कविता को आज भी संगीत और नाटक के साथ प्रस्तुत किया जाता है.

सिलप्पाटिकरम काव्य की शुरुआत होती है चोल साम्राज्य के एक समृद्ध बंदरगाह शहर से जहां कन्नगी और कोवलन नाम का एक नवविवाहित जोड़ा रहता है जिनका वैवाहिक जीवन सुखी और आनंदमय है. फिर समय बीतता है और कोवलन की मुलाकात मतावी (माधवी) से होती है जो एक वेश्या थी। कोवलन माधवी की सुंदरता पर मोहित हो जाता है और अपनी पत्नी कन्नगी को छोड़ वह माधवी के साथ रहने लगता है। दिन-रात वह अपनी सारी धन-सम्पदा माधवी पर लुटाने लगता है।

पति के इस तरह परस्त्री के साथ चले जाने से कन्नगी का दिल टूट जाता है, लेकिन एक पतिव्रता स्त्री की भांति वह इस दुःख में अपना संयम नहीं खोती और अपने पति के लौट आने का इंतजार करती है। चोल साम्राज्य में वर्षा के देवता, इंद्र का उत्सव मनाया जाता था। इस उत्सव में कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं जिनमें से एक थी गायन प्रतियोगिता। इस प्रतियोगिता में कोवलन भाग लेता है और एक महिला के बारे में एक कविता गाता है जिसने अपने प्रेमी को चोट पहुंचाई। तब माधवी एक ऐसे पुरुष के बारे में गीत गाती है जिसने अपने प्रेमी को धोखा दिया था। उन दोनों के गीत में मानो एक   दूसरे के लिए एक संदेश छिपा था। कोवलन को लगता है कि माधवी उसे ताना मार उसका उपहास कर रही थी।

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माधवी से नाराज़ होकर वह उसे छोड़ देता है, कोवलन बेसहारा हो चूका था। ऐसे में अब वह अपनी पत्नी  कन्नगी के पास लौटता है और कन्नगी के सामने अपनी गलती कबूल करता है। कन्नगी उसे बताती है कि उसके दिए धोखे ने कन्नगी के मन को कितनी ठेस पहुंचाई है लेकिन वह फिर भी उसे माफ़ कर देती है और उसे स्वीकार लेती है। अब वे दोनों वहां से निकलकर किसी नये शहर में जाकर जीवन की नयी शुरुआत करने का निर्णय लेते हैं और उनका यह फैसला उन्हें पंड्या साम्राज्य के मदुरै ले आता है।

नयी जगह पर नयी शुरुआत करने वे दोनों आ तो गए थे लेकिन कोवलन अपनी सारी संपत्ति माधवी पर उड़ा चुका था और अब वह दरिद्र और बेसहारा था। उसके पास कोई नया काम शुरू करने के लिए एक पैसा भी नहीं था। ऐसे में कन्नगी अपने पति को जीवन के पुनर्निर्माण के लिए प्रोत्साहित करती है और उसे अपनी एक पायल बेचने के लिए दे देती है जिससे कि नया कारोबार शुरू करने के लिए प्रारंभिक पूंजी जुटा सकें।

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महाकाव्य के केंद्र में रही एक पायल

अगले दिन, कोवलन एक सुनार को पायल बेचने के लिए शहर के लिए निकलता है। उसे एक सुनार मिलता है, जो उसे तुरंत रुकने के लिए कहता है और राजा के पहरेदारों के पास जाता है। उस सुनार ने रानी की पायल चुरा ली थी और यह देखकर कि कन्नगी की पायल रानी की तरह लग रही थी, उसने राजा को बताया कि कोवलन ने रानी की पायल चुरा ली है। रानी अपनी पायल चोरी होने के बाद बहुत दुखी थी और बार-बार चोर को पकड़ उसे दण्डित करने के लिए राजा को विवश करने लगी। जैसे ही सुनार का सन्देश राजा तक पहुंचा उसने अपनी रूठी रानी को खुश करने के लिए बिना सोच-समझे और बिना कोवलन की पूरी बात सुने उसे सीधा फांसी देने का आदेश दे दिया।

जब बहुत समय बीत गया और कोवलन घर नहीं पहुंचा तो परेशान कन्नगी पति को ढूंढते हुए नगर में पहुंची जहां उसे नगरवासियों से अपने पति की मृत्यु के बारे में पता चला। अपने पति के साथ हुए अन्याय को सुनकर कन्नगी क्रोध में राजमहल की ओर दौड़ती है और खून से लथपथ अपने पति के मृत शरीर को पाती है। पति की मृत देह को देखकर उसके दुःख और क्रोध का बांध टूट जाता है और वह गुस्से में अपनी दूसरी पायल को राजा के सामने फेंकती है। फर्श पर स्पर्श होते ही वह पायल टूट जाती है, जिससे उसके भीतर लगे हुए रत्न सामने बिखर जाते हैं।

राजा को टूटी पायल देखकर तुरंत अपनी गलती का एहसास होता है क्योंकि रानी की पायल में मोती थे, रत्न नहीं। राजा के हाथों बहुत बड़ा अन्याय हुआ था, उसने बिना सोचे समझे एक निर्दोष को मृत्यु दंड दे दिया।

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घोर लज्जा और निराशा में, राजा खुद को मार लेता है और पति की मृत्यु के बाद रानी भी स्वयं को मार लेती है लेकिन  कन्नगी के क्रोध की ज्वाला अभी भी शांत नहीं हुई थी। केवल राजा ही नहीं बल्कि जो सभासद मूकदर्शक बनकर उसके पति की मृत्यु देखते रहे वे भी उतने ही दोषी थे। वे उन सभी को श्राप देते हुए गुस्से में अपने बाएं स्तन को शरीर से चीर कर निकालती है और उसे शहर में फेंक देती है, जिससे कि वह पूरा शहर आग की लपटों में घिर जाता है।

शहर में आग अपने चरम पर पहुंचने लगी और सब कुछ जलाकर ख़ाक करने लगी। शहर की ऐसी गति देख, उसके संरक्षक देवी कन्नगी के सामने प्रकट हुईं और उसे शांत करने का प्रयास किया। कन्नगी को कोवलन के पिछले जन्म की कहानी सुनाते हुए देवी ने बताया कि कोवलन पिछले जन्म में भरत नाम का एक राजा था जिसने एक व्यापारी को जासूस होने के झूठे संदेह में मरवा डाला। कोवलन की यह मृत्यु उसके पिछले जन्म के कर्मों का नतीजा है, इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। कन्नगी शांत तो हुई लेकिन अब उसका दुःख उसके लिए असहनीय हो चुका था। कन्नगी को धीरज बंधाते हुए देवी ने उससे कहा कि 14 दिनों बाद वह अपने पति से मिल पायेगी।

महाकाव्य के तीसरे खंड में क्या है?

महाकाव्य के तीसरे खंड में, दुःख में चूर कन्नगी चेरा क्षेत्र की पहाड़ियों, मुरुगावेल-कुनराम में भटकती है जहां देवी-देवता चेरानाडु में कन्नगी से मिलते हैं और वह भगवान इंद्र के साथ स्वर्ग चली जाती हैं।

वहां कुरवा पहाड़ी लोग कन्नगी की मृत्यु और उसके स्वर्गारोहण के साक्षी बनते हैं। यह घटना जब वे अपने राजा सेनगुट्टुवन को सुनाते हैं तो कन्नगी की दुखद कहानी सुन रानी इतनी प्रभावित हो जाती है कि वह  कन्नगी के सम्मान में एक मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट करती हैं। अपनी रानी की इच्छा पूरी करते हुए राजा तब हिमालय जाते हैं जहां से वे एक विशाल पत्थर लाते हैं और उस पर कन्नगी की छवि तराशी जाती है। कन्नगी के सम्मान में एक भव्य मंदिर बनवाया जाता है और कन्नगी को देवी पट्टिनी कहकर पुकारा जाता है।

सिलप्पादिकारम की कहानी टिकी है एक घरेलू और विनम्र पत्नी कन्नगी पर जो कहानी के अंत में समाज द्वारा किये गए अन्याय के प्रति उसका आक्रोश उसे एक देवी में बदल देता है। पायल जिसने इस कहानी में केंद्रीय भूमिका निभायी वह न केवल कन्नगी के वैवाहिक जीवन और सुहाग की निशानी थी बल्कि उसी को बेचकर वे एक नये जीवन की शुरुआत करने वाले थे और अंत में वह पायल ही थी जिसने इस कहानी को एक दुखद मोड़ दे दिया।

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