सियासत बड़ी निराली है, यहाँ कब कोई अपना सपना बनकर रह जाए कह नहीं सकते। आज की सरकार कल विपक्ष हो सकती है यह तो लोकतंत्र की एक प्रक्रिया है पर चलती सरकार बीच में अस्थिर हो जाए तो मामला विचारणीय हो जाता है। हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में इस अस्थिरता का बोल बोला रहा। इस अस्थिरता का केंद्र गैर भाजपा शासित राज्य झारखंड रहा, जहाँ हेमंत सोरेन के नेतृत्च वाली सरकार चल रही है और साथ ही दल के रूप में कांग्रेस झामुमो के साथ है। अब जब राष्ट्रपति चुनाव का ऐलान हुआ तो यह तय माना जा रहा था कि झामुमो नेतृत्व वाली सरकार के सभी विधायक संयुक्त विपक्ष प्रत्याशी को ही वोट करेंगे पर जैसे ही द्रौपदी मुर्मु को एनडीए ने अपना प्रत्याशी बना दिया तो सारे दांव उलटे पड़ गए, झामुमो ने गठबंधन धर्म को किनारे कर एनडीए प्रत्याशी को वोट डालने के लिए सभी झामुमो विधायकों को निर्देशित किया। झामुमो तक तो ठीक था पर चुनाव वाले दिन कांग्रेस के विधायकों तक ने द्रौपदी मुर्मु को वोट डाल दिया जिसके बाद यह अनुमान लगाया जाने लगा कि, “झारखंड में कुछ बड़ा पक रहा है।”
दरअसल, झारखंड कांग्रेस के एक नेता ने गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद कहा, ”जिसका डर था वही हुआ”। उनका मतलब यह था कि झारखंड की पूर्व राज्यपाल और एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मु के लिए क्रॉस वोटिंग प्रचुर मात्रा में हुई थी। 81 सदस्यीय विधानसभा में हुए 79 वोटों में से एक वोट अवैध पाया गया और एक विधायक खराब स्वास्थ्य के कारण नहीं आ पाए। मतों के आंकड़ों की बात करें तो 70 वोट द्रौपदी मुर्मु के पास गए तो विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को केवल 9 वोट मिले। ज्ञात हो कि, राज्य विधानसभा में झामुमो के 30 विधायक हैं, भाजपा 26 के, कांग्रेस 18 विधायकों के साथ आजसू और निर्दलीय 2 प्रत्येक, और राजद, सीपीआई (एमएल) और एनसीपी 1 प्रत्येक हैं।
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कांग्रेस प्रवक्ता और पार्टी के ‘सशक्तिकरण अभियान’ के संयोजक आलोक दुबे ने कहा, ‘कम से कम नौ वोट मुर्मु के लिए कांग्रेस से आए, ऐसा लगता है। यह चिंता का विषय है और हम इस पर गौर करेंगे।’ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि, ‘राज्य कांग्रेस में हमेशा कुछ न कुछ असंतोष रहा है, लेकिन यह सभी दलों के लिए सच है। लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए, जहां झारखंड में किसी भी समय ऑपरेशन लोटस एक वास्तविकता हो सकती है, इस क्रॉस-वोटिंग का आकलन करने की आवश्यकता है। हालांकि, कुछ कांग्रेस विधायकों ने मुर्मु को वोट दिया होगा क्योंकि व्हिप का कोई प्रावधान नहीं है।’ इसके अलावा, आलोक दुबे ने कहा कि, ‘कांग्रेस के सात विधायक आदिवासी समुदाय से हैं, जिन्होंने मुर्मु को वोट देते समय अवश्य उसी पक्ष के लिए वोट करने का सोचा होगा तो यह एक संभावना भी हो सकती है।’ तो दूसरी ओर कांग्रेस नेता ने कहा कि, “एक प्रमुख कारण है कि शिबू सोरेन ने सभी (झामुमो) सांसदों और विधायकों को द्रौपदी मुर्मु को वोट देने के लिए एक फरमान जारी किया था।”
इससे एक बात तो ये सिद्ध हो गई कि विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के बयान को सबसे अधिक संजीदगी से जिस राज्य ने लिया वो झारखण्ड ही रहा। यशवंत सिन्हा ने अपनी उम्मीदवारी के पहले दिन से अपने पक्ष में वोट डालने के लिए सभी जनप्रतिनिधियों से आह्वान किया था कि वो सभी अपने अंतरात्मा की आवाज सुनकर राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालें। और चुनावों के नतीजों ने यह सिद्ध कर दिया कि एनडीए गठबंधन के साथियों के अलावा विपक्षी साथियों ने भी अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन ली। द्रौपदी मुर्मु को सभी ने वोट करके यह जता दिया कि देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनाने में वो भी अपना योगदान सुनिश्चित करना चाहते हैं।
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वहीं झारखंड में हेमंत सोरेन ने जिस हिसाब से अपने अंतरात्मा की आवाज सुनकर पूरी झामुमो का एकमुश्त वोट मुर्मु को दे दिया बाद में कांग्रेसी विधायकों ने भी ऐसा ही अनुसरण कर अपनी ही पार्टी के निर्देशों को नहीं माना उससे यह तो सिद्ध हो गया कि कल को सत्ता परिवर्तन भी हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। यही कारण है कांग्रेस आलाकमान अब झारखंड में भी “ऑपरेशन लोटस” से डर रही है जो अभी हुआ नहीं है पर आगे होने की पूरी संभावना है।
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