अहमद पटेल तो गुजर गए लेकिन ‘चाटुकारिता के कई साक्ष्य’ छोड़ गए

गांधी परिवार के 'दास' रहे अहमद पटेल का वह 'स्याह पक्ष' जिसे नहीं जानते होंगे आप

sonia gandhi

यूं तो दिवंगत हो चुके नेताओं का कोई राजनीतिक सरोकार नहीं रह जाता है पर कई बार कुछ नेता अहमद पटेल जैसे भी होते हैं जो अपनी मृत्यु उपरांत भी चर्चाओं और विशेषकर नकारात्मक चर्चाओं का केंद्र बने रहते हैं। अब वर्तमान परिदृष्य में गांधी परिवार के प्रत्येक चिट्ठों का एकमात्र गवाह रहे अहमद पटेल का नाम सुर्खियों में हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे एक अहमद पटेल ने पूरी कांग्रेस पर एकछत्र राज किया, सोनिया गांधी को “सुपर पीएम” बनाया और जाते-जाते भी वो अपने किए एक काण्ड की अमिट छाप छोड़ गए।

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इंदिरा गांधी की अनुकंपा से राजनीति में आए

दरअसल, इंदिरा गांधी की अनुकंपा से राजनीति में आए और वहां से चलकर कांग्रेस के तारणहार के रूप में कार्य करने तक अहमद पटेल की कई कहानियां राजनीतिक बाज़ार में चलती रहती हैं पर वास्तव में अहमद पटेल के कर्मकांडों की संख्या का कोई सानी नहीं है। अहमद पटेल उस तरह के राजनेता हैं जिसके हाथ बेलगाम शक्ति और पार्टी में पैठ और पहुंच के साथ एक लो-प्रोफाइल बैकरूम रणनीतिकार वाली छवि प्राप्त है। पटेल यूपीए सरकार के सत्ता से बाहर होने से पूर्व भाजपा के सहयोगियों को तोड़ने में काफी कामयाब रहे।

गुजरात से आठ बार के सांसद, कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव और सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव होने से लेकर-पटेल ने पार्टी के भीतर कई बड़े निर्णय लिए। पिछले चार दशकों में वह 2004 में कांग्रेस पार्टी की जीत, 2008 के अविश्वास प्रस्ताव को जीतने और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की 2009 में वापसी सहित सभी प्रमुख मील के पत्थर के बड़े सेनानी रहे।

ज्ञात हो कि जब राजीव गांधी ने 1984 में प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभाला तो उन्होंने अरुण सिंह, अहमद पटेल और ऑस्कर फर्नांडीस को संसदीय सचिव के रूप में उनकी सहायता के लिए नियुक्त किया। 1991 में राजीव गांधी के निधन के बाद एक क्षणिक चरण के लिए पटेल ने अपनी प्रमुखता खो दी, लेकिन एक साल बाद और मजबूत होकर उभरे जब उन्हें पार्टी के तिरुपति सत्र के दौरान सबसे अधिक वोट मिले। इसके बाद अहमद पटेल की पूछ बढती चली गयी, कांग्रेस में कद बढ़ने के साथ ही उनका दायरा भी बढ़ता चला गया।

प्रमुख समस्या निवारक रहे पटेल

इंदिरा के बाद राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी के लेफ्ट हैंड बन चुके अहमद पटेल 2004 और 2014 के बीच यूपीए सरकार के शासन के दौरान, सरकार और पार्टी के बीच प्रमुख समस्या निवारक, समन्वयक और अनुवादकों में से एक थे। उन्होंने ही सोनिया गांधी को किस प्रकार काम करना है, कब कैसे निर्णय लेने हैं सबका भान करा अपने पद को जस का तस बनाए रखा। आम बोल चाल की भाषा में इसे चापलूसी ही कहा जाता है जिसका अहमद पटेल ने 110 प्रतिशत अनुसरण किया।

वहीं यही अहमद पटेल पीएम मोदी के धुर-विरोधी थे जो गुजरात में सत्ता के दौरान पीएम मोदी की जबरन आलोचना करने के लिए बदनाम थे। यह कांग्रेस की जड़बुद्धि का परिणाम कहें या वफादारी का इनाम कांग्रेस ने गुजरात में एक राज्यसभा सीट पर चुनाव जीतने के लिए उसने पूरे राज्य में अपनी स्थिति को दांव पर लगा दिया था। इसके बाद उनकी मृत्यु के बात जितना त्रास गांधी परिवार को झेलना पड़ा है वो वाकई सबके सामने है। सोनिया और राहुल गांधी एक प्रकार से अहमद पटेल पर आश्रित हो चुके थे। अहमद पटेल की कोई राय देश विरोध में ही क्यों न रही हो पर गांधी परिवार की नज़र में बस एक ही विचार था कि “न खाता न बही, जो अहमद पटेल कहें वही सही।”

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अग्रणी भूमिका निभाने वाले पटेल ही थे

गुजरात में वर्ष 2002 में जो हुआ सबने देखा। एक अरसे तक तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध तरह-तरह के षड्यंत्र रचे गए, उन्हें टारगेट किया गया, उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ना दी गयी, उनके विरुद्ध दिन-रात ज़हर उगला गया, उन्हें क्या-क्या नहीं बोला गया। पूरा इकोसिस्टम मोदी के पीछे पड़ा था और इसमें अग्रणी भूमिका निभाने वाले और कोई नहीं अहमद पटेल ही थे। इसके बाद पीएम मोदी को मिलती गयी क्लीनचिट ने साबित कर दिया कि कौन वास्तव में षड्यंत्रकारी रहा और कौन बस एक इकोसिस्टम का शिकार।

हालिया एक मामला तीस्ता सीतलवाड़ से जुड़ा हुआ है। 2002 के बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने जो किया वो किसी से छिपा नहीं है। दरअसल, अपने कारनामों की वज़ह से तीस्ता सीतलवाड़ इन दिनों जेल में हैं, लेकिन उन्हें जमानत चाहिए। इसके लिए उन्होंने जमानत याचिका दायर कर दी। जमानत की सुनवाई के दौरान SIT ने कोर्ट में एक एफिडेविट फाइल किया है। इस एफिडेविट में जो लिखा है उसे जानना और उसके मायने समझना आपके लिए बहुत आवश्यक है। SIT ने बताया कि “2002 में गुजरात सरकार का तख्तापलट करने के षड्यंत्र को अंजाम देने की जिम्मेदारी तीस्ता सितलवाड़ पर थी। तीस्ता को इसके लिए अहमद पटेल ने 30 लाख रुपये दिए और 5 लाख रुपये की पहली किस्त दी गयी, इसके बाद 25 लाख की दूसरी किस्त।”

उन दिनों अहमद पटेल, सोनिया गांधी के खासमखास थे। सोनिया गांधी अपने अधिकांश काम अहमद पटेल से ही करवाती थी और इन सब कड़ी को देखा जाए तो यह बिल्कुल साफ है कि गुजरात में राज्य सरकार का तख्तापलट करने का जो षड्यंत्र रचा गया, जिसमें तीस्ता सीतलवाड़ को 30 लाख रुपये दिये गये। इसकी मास्टर माइंड सोनिया गांधी ही थी और मध्यस्त दिवंगत अहमद पटेल थे।

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यह सत्य है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके कर्म ही उसकी पहचान कराते हैं और उन्हीं कर्मों के आधार पर उसको याद किया जाता है। अहमद पटेल निस्संदेह उन दिवंगत आत्माओं में से एक रहे जो बैकडोर पर रहकर षड्यंत्रकारी और प्रपंच करने के लिए उपयोग किए जाते रहे और अहमद पटेल स्वेच्छा से उपयोगिता में अग्रणी भूमिका के साथ आगे बढ़ते चले गए और एक दास की भांति बनकर रह गए। कुछ ऐसा सफर था अहमद पटेल का जो 80 प्रतिशत सुर्ख़ियों से दूर ही रहा और उनकी मृत्यु के बाद सब उजागर होता जा रहा है।

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