UNSC के बदलते समीकरण के बीच भारत कर रहा है यथार्थवाद का अनुसरण

बुलंदियों की ओर अग्रसर है भारत !

bhaarat

Source- TFIPOST.in

भारत कई समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है जिसके लिए भारत ने ब्राज़ील, जापान और जर्मनी के साथ मिलकर  जी-4 ग्रुप का गठन किया है जिसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्यता हासिल करना है।

संयुक्त राष्ट्र परिषद 15 सदस्यों से बनी है

पांच स्थायी सदस्य: चीन, फ्रांस, रूसी संघ, यूनाइटेड किंगडम (फ्रांस) और संयुक्त राज्य अमेरिका, और दस गैर-स्थायी सदस्य महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।

गैर स्थाई सदस्य हैं: अल्बानिया, ब्राजील, गैबॉन, घाना, भारत, आयरलैंड, केन्या, मेक्सिको, नॉर्वे और संयुक्त अरब अमीरात

ऐसे में बीजिंग में मास्को के दूत एंड्री डेनिसोव ने ग्लोबल पीस फोरम में कहा कि रूस भारत और ब्राजील के स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल होने के पक्ष का समर्थन करने को तैयार है लेकिन जापान और जर्मनी को कोई सहायता रूस से नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि रूस व्यापक सहमति के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार के पक्ष में है, जिससे अफ्रीकी, एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों के अनुपातिक प्रतिनिधित्व में वृद्धि सुनिश्चित हो सके।

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रूस की नाराज़गी केवल जापान और जर्मनी से ही नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और उन अन्य पश्चिमी देशों से भी है जिन्होंने रूस के यूक्रेन पर सैन्य अभियान चलाने के बाद रूस की आलोचना करते हुए उस पर कड़े प्रतिबन्ध लगाए। अब रूस अंतराष्ट्रीय मंच पर उन सभी देशों के विउद्ध खड़ा होने की तैयारी कर रहा है जिन्होंने उसका विरोध किया। जहाँ भारत ने तटस्थ रुख अपनाते हुए न तो रूस की निंदा की और न ही इसका समर्थन किया वहीं दूसरी तरफ जर्मनी और जापान ने पश्चिमी देशों के साथ मिलकर रूस की बहुत निंदा की।

हालाँकि भारत को जर्मनी और जापान का साथ छोड़ने के पीछे की सलाह का एक कारण यह भी है कि इन देशों का विरोध केवल रूस ही नहीं बल्कि दूसरे देश भी करेंगे।

जापान–  यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, और संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में जापान की उम्मीदवारी का समर्थन करते हैं लेकिन इसे अपने दो निकटतम पड़ोसियों, चीन और दक्षिण कोरिया के कड़े विरोध का सामना करना पड़ता है। इन दोनों देशों के विरोध का कारण है कि जापान ने विश्व युद्ध के बाद कई चीन और कोरिया के नागरिकों और सैनिको को बंदी बनाकर न केवल प्रताड़ित किया बल्कि उनपर कई भयावने एक्सपेरिमेंट भी किये।  जैविक हथियार परीक्षण से लेकर  विविसेक्शन तक शिशुओं, बच्चों, महिलाओं और पुरुषों पर किया। हालाँकि आज तक जापान ने अपने कृत्यों को स्वीकारते हुए क्षमा नहीं मांगी है जिस कारण से दोनों देश इसके विरुद्ध हैं और अब रूस भी जापान के विरोध में खड़ा है।

जर्मनी– जहाँ फ्रांस और यूके UNSC में जर्मनी की स्थाई सदस्यता का समर्थन करते हैं वहीं इसके विपरीत इटली और नीदरलैंड इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि फ्रांस और ब्रिटेन के बाद जर्मनी के तीसरे यूरोपीय सदस्य बनने के बजाय परिषद में एक सामान्य यूरोपीय संघ (ईयू) की सीट होनी चाहिए। हालाँकि पहले रूस भी जर्मनी के पक्ष में था लेकिन अब रूस भी जर्मनी के विरोध में खड़ा है।

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हालाँकि ब्राज़ील और खासकर भारत के UNSC में होने से किसी को कोई आपत्ति नहीं और रूस ने तो दोनों देशों के समर्थन में बोलने की बात भी कह दी है। रूसी सलाह व्यावहारिक है और अच्छी भी। अगर भारत को सीट मिलती है तो यह रूस के लिए भी फायदेमंद होगा क्योंकि भारत हमेशा तटस्थ रहता है और रूस के खिलाफ कोई प्रचार नहीं करता है, भारत निष्पक्ष है इसलिए रूस चाहता है कि भारत जैसा देश UNSC में उसके साथ हो। तो यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या भारत को जापान और जर्मनी से हटकर केवल ब्राज़ील के साथ मिलकर या फिर अकेले ही UNSC में स्थाई सदस्यता के लिए लड़ना चाहिए या फिर जी- 4 का हिस्सा रहकर ही सदस्यता हासिल करनी चाहिए?

यदि भारत को संयुक्त राष्ट्र में वीटो के साथ स्थाई सदस्यता मिल जाती है तो भारत को निम्न लाभ होंगे:

वीटो की शक्ति:

रूस के अनुसार, जर्मनी और जापान कभी भी UNSC तक नहीं पहुंचेंगे, इसलिए इन दोनों देशों के साथ बैठकर भारत को अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। ऐसे में भारत सरकार का और खासकर भारत के विदेश मंत्रालय का क्या निर्णय होगा यह देखने वाली बात होगी।

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