गायक सिद्धू मूसेवाला के मरणोपरांत गीत ‘एसवाईएल’ से 31 साल बाद एक बार फिर सुर्खियों में आए आतंकवादी बलविंदर सिंह जट्टाना का नाम अब केवल गाने तक ही सीमित नहीं रह गया है. हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में स्थित केंद्रीय सिख संग्रहालय में आतंकवादी बलविंदर सिंह जट्टाना की तस्वीर प्रदर्शित करने का फैसला किया है। SGPC जो पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में गुरुद्वारों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है उसके अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने 6 जुलाई को कार्यकारी समिति की बैठक के दौरान घोषणा की कि बलविंदर सिंह जट्टाना की तस्वीर सेंट्रल सिख संग्रहालय में प्रदर्शित की जाएगी क्योंकि वह “एक बहादुर संघर्षरत सिख थे जिन्होंने पंजाब के पानी के संरक्षण के लिए सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) का विरोध किया था।” बलविंदर सिंह जट्टाना वह आतंकवादी था।
जिसने खालिस्तान समर्थक समूह- बब्बर खालसा के अन्य उग्रवादियों के साथ मिलकर 1990 में चंडीगढ़ में विवादित सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण की निगरानी कर रहे दो सरकारी अधिकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिसके कारण पंजाब में सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना का निर्माण कार्य उस समय रोक दिया गया था। बाद में 1991 में पंजाब में एक पुलिस मुठभेड़ के दौरान BKI उग्रवादी को मार गिराया गया। बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई), जिसे बब्बर खालसा के नाम से जाना जाता है, एक आतंकवादी संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य एक स्वतंत्र सिख देश खालिस्तान बनाना है। यहाँ हैरानी की बात यह है कि कैसे एसजीपीसी एक खालिस्तानी समर्थक और आतंकवादी की तस्वीर को सिख संग्रहालय में लगाने की इजाज़त दे सकती है. लेकिन यह पहली बार तो नहीं जब कमेटी ने ऐसा कोई निर्णय लिया हो जिसने उसके खालिस्तान के प्रति झुकाव को न दर्शाया हो.
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क्या है बीकेआई?
बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई), जिसे बब्बर खालसा के नाम से जाना जाता है, एक आतंकवादी संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य एक स्वतंत्र सिख देश खालिस्तान बनाना है। इसके समर्थक इसे एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में देखते हैं। बब्बर खालसा को आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। यह भारत की आजादी के बाद से सबसे पुराना और सबसे संगठित सिख आतंकवादी संगठन है। अल्ट्रा ग्रुप को इसका नाम उग्रवादी संगठन “बब्बर अकाली” से मिला, जो 1920 के दशक में ब्रिटिश शासन के दौरान सक्रिय था। हालाँकि बीकेआई कथित तौर पर कनाडा और यूके सहित कई देशों में काम करता है लेकिन यह आईएसआई के संरक्षण में पाकिस्तान में सबसे अधिक सक्रिय है।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर एसजीपीसी प्रमुख ने भिंडरावाले को बताया ‘शहीद’
यह पहली बार नहीं है जब एसपीजीसी ने कोई ऐसा विवादित फैसला किया हो जो पूरे सिख समुदाय की मंशा पर सवाल खड़े कर दे। इससे पहले 6 जून को, एसजीपीसी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38 वीं वर्षगांठ पर आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले को “शहीद” कहा था। शीर्ष गुरुद्वारा निकाय के प्रमुख ने कहा, “हमने उन महान शहीदों को याद किया। साथ ही, हमारे अत्यंत सम्मानित 20 वीं शताब्दी के संत बाबा शहीद जरनैल सिंह भिंडरावाले खालसा और बाबा अमरीक सिंह। हमारा समुदाय उन्हें हमेशा याद रखेगा। जिस तरह से उन्होंने सेनाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी और शहादत हासिल की उसके लिए उन्हें याद करते हुए आज हम यहां उनकी याद में एकत्र हुए हैं।”
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क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार?
1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा मिशन था। उस समय इंदिरा गाँधी के शासनकाल में पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन के उदय के कारण कानून और व्यवस्था संकट में थी, इसी का समाधान इंदिरा गांधी का सुझाया ऑपरेशन ब्लू स्टार था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत हरमंदिर साहिब परिसर (स्वर्ण मंदिर) में हथियार जमा कर रहे सिख आतंकवादियों को हटाने का आदेश दिया गया।
यह ऑपरेशन जो 1984 में 1 जून से 8 जून तक अमृतसर में चला इसका उद्देश्य विशेष रूप से सिख नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले को खत्म करना था, जिन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त परिसर को अपने कब्जे में ले लिया था। आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, पूरे ऑपरेशन के दौरान सेना के कम से कम 83 जवान और 492 नागरिक मारे गए। इस दौरान स्वर्ण मंदिर में स्थापित पवित्र सिख ग्रंथ की प्रति को फायरिंग में निशाना बनाया गया। ऑपरेशन ने न केवल पूरे सिख समुदाय को नाराज कर दिया, बल्कि यह पीएम इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के पीछे का कारण भी कहा जाता है।
पंजाब के मुख्यमंत्री की हत्या करने वाले का चित्र भी पूजित
इससे पहले, 16 जून को, एसजीपीसी ने सिपाही से बीकेआई आतंकवादी बने दिलावर सिंह के चित्र का अनावरण किया था, जो 31 अगस्त, 1995 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या करने के लिए एक आत्मघाती हमलावर बन गया था। पंजाब के पूर्व पुलिस अधिकारी दिलावर सिंह ने अपनी कमर के चारों ओर विस्फोटकों की एक बेल्ट बांधी थी और 31 अगस्त, 1995 की शाम को पंजाब सिविल सचिवालय में तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह और 16 अन्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
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