भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। प्राचीन भारत में कई आविष्कार हुए। दुनिया में ऐसी कई चीजें है, जो विश्व को भारत की ही दी गई देन है। परंतु दुख इस बात का है कि पश्चिम द्वारा भारत से इसका श्रेय छीना गया। पश्चिम ने हमेशा यही दिखाने के प्रयास किए विश्व में जितने भी आविष्कार हुए सारे उनके द्वारा ही किए गए। पश्चिम ने प्राचीन भारत के महत्व को कम करने की कोशिश की। यहीं कारण है कि प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिकों ने कौन-से बड़े आविष्कार किए।
आज के समय में मेडिकल क्षेत्र बहुत तरक्की कर चुका है। लगभग हर बीमारी का इलाज आज के वक्त में संभव है। शरीर का कोई कटा अंग जोड़ना हो या फिर चेहरे को सुंदर बनाना हो इसके लिए तमाम तरह की सर्जरी आज के वक्त में की जाती है। यह जाहिर तौर पर मेडिकल क्षेत्र की ही उपलब्धि है।
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सर्जरी के जनक के रूप में जाना जाता है
आपको शायद यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सर्जरी की कला प्राचीन भारत की ही विश्व को दी गई सबसे बड़ी देन में से एक है। महर्षि सुश्रुत ने आज से करीब चार हजार वर्ष पूर्व ही दुनिया को आधुनिक चिकित्सा सिखा दी थी। महर्षि ने ‘सुश्रुत संहिता’ नाम से अपनी एक किताब लिखी थीं, जिसमें उन्होंने कठिन से कठिन ऑपरेशन के तमाम तरीके बता दिए थे। अपनी किताब में महर्षि ने एक हजार से भी अधिक बीमारियों, सैकड़ों औषधीय पौधों और सर्जरी करने के तरीकों के बारे में लिखा है। यही कारण है कि उन्हें दुनिया का पहला सर्जन माना जाता है।
परंतु इन सबके बावजूद हमारे में से अधिकतर लोग ऐसे होंगे जो महर्षि सुश्रुत के बारे में जानते नहीं होंगे। इसके पीछे की वजह है कि हमें इसके बारे में कभी पढ़ाया नहीं जाता। अगर पढ़ाया जाता है तो वो है गलत इतिहास। ऐसा ही कुछ केरल में भी हो रहा है। केरल स्टेट बोर्ड में कक्षा नौवी में सोशल साइंस की किताब में फादर ऑफ सर्जरी को लेकर अलग ही बातें बच्चों को पढ़ाई जा रही है। इस किताब में एक अरब मुस्लिम अबू अल कासिम अल जहरावी को सर्जरी का जनक बताया जा रहा है, जो कि मदीना में पैदा हुए थे। इस पर विवाद भी हुआ, बावजूद इसके आज भी केरल के बच्चे वही गलत इतिहास पड़ रहे है।
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महर्षि सुश्रुत 300 प्रकार की सर्जरी के ज्ञाता थे
सच्चाई यह है कि वो महर्षि सुश्रुत थे, जिन्हें शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। दुनिया की पहले प्लास्टिक सर्जरी आज से तीन हजार वर्ष पूर्व काशी में की गई थी। उस दौरान एक व्यक्ति अपनी कटी हुई नाक लेकर महर्षि सुश्रुत के पास आया था। महर्षि ने व्यक्ति को पहले नशीला पदार्श पिलाकर बेहोश किया, जिससे कि उसको दर्द ना हो। फिर इसके बाद उन्होंने उसके माथे से त्वचा का हिस्सा लिया और पत्ते के माध्यम से नाक का आकार समझाकर और टांके लगाकर नाक बनाकर जोड़ दी। सुश्रुत संहिता में 184 अध्याय है, जिसमें 1120 बीमारियों के बारे में बताया गया है। 700 औषधि पौधों का जिक्र इसमें किया गया है। सुश्रुत संहिता में 12 प्रकार के फ्रैक्चर और 7 तरह के डिस्लोकेशन यानी हड्डी के खिसकने के बारे में भी समझाया गया है।
महर्षि सुश्रुत की सर्जरियों में से नाक और कान की सर्जरी इसमें प्रमुख थी। आंखों की सर्जरी में उन्होंने महारथ हासिल कर रखी थीं। सर्जरी के माध्यम से बच्चे का जन्म हो या फिर बेहोश करने के लिए सही डोज का ज्ञान, वो इन सबके बारे में भी अच्छे से जानते थे। सुश्रुत संहिता के अनुसार महर्षि सुश्रुत सर्जरी के लिए 125 अलग प्रकार के सर्जिकल उपकरणों का प्रयोग करते थे। वे चाकू, सुझ और चिमटे को उबालकर इस्तेमाल किया करते थे। बिना एक्सरे के ही वो यह पता लगा सकते थे कि शरीर के किस हिस्से में कौन-सी हड्डी टूटी है और ऐसे ही वो ऑपरेशन करके जोड़ भी देते थे। महर्षि सुश्रुत अपने शिष्यों को सर्जरी सिखाने के लिए फल, सब्जियों के मोम के पुतलों का प्रयोग किया करते थे। बाद में शवों से उन्होंने स्वयं सर्जरी सीखी और फिर अपने शिष्यों को भी सिखाई थी।
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मॉडर्न मेडिकल साइंस के जानकार मानते हैं कि विश्व को आज से 400 साल पूर्व ही सर्जरी के बारे में पता लगा था। परंतु यह भी हकीकत है कि महर्षि सुश्रुत ने कई हजार साल पहले ही इस काम को करके दिखा दिया था। भले ही अब तक हम सच से अनजान थे, क्योंकि हमारे इतिहास से जुड़ी यह बातें या तो बताई नहीं जाती या फिर गलत बातें पढ़ाकर हमें आज तक भ्रमित करने के प्रयास हुए। परंतु अब समय आ गया कि हम अपने इतिहास के बारे में जानें कि हमारा प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कितने महान थे, जिन्होंने कई शानदार आविष्कार किए। साथ ही अपने बच्चों और अन्य लोगों को भी हमारे प्राचीन भारत की विरासत से परिचित कराएं।
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