भारत में कैसे कर्ज लेना बनता गया त्योहार, इससे तुरंत छुटकारा पाने की है आवश्यकता

एक वक्त में कर्ज लेना बुरा माना जाता था, आज ‘लोन फेस्टिवल’ हो रहे हैं!

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Source- TFIPOST.in

हम सभी के जिंदगी में कुछ ना कुछ सपने होते है, जिन्हें पूरा करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। परंतु जब पैसों की कमी होती है, तो लोग लोन के माध्यम से उन सपनों को पूरा करने में लग जाते है। परंतु देखा जाए तो हमारी भारतीय संस्कृति में लोन यानी कर्ज लेने की परंपरा को कभी बढ़ावा देने की बात नहीं थी। पहले के जमाने में लोग कर्ज को एक बहुत बड़े बोझ की तरह देखते थे। चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों ना हो जाए, वे जितना मुमकिन हो कर्ज लेने से बचते थे, झिझकते थे। बहुत ही ज्यादा जरूरी हो जाए तब ही लोग कर्ज लेने का विचार करते थे। वहीं, अगर किसी को मजबूरी में कर्ज लेना भी पड़ जाए, तो वे हमेशा ही इसके बोझ तले दबे रहते थे। इसे जल्द से जल्द चुकाने का प्रयास करते थे। मन में हमेशा इस तरह के विचार रखते थे कि उनके सिर पर कर्ज है। पहले कर्ज लेने को सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाता था।

परंतु आज के समय में क्या हो रहा है। बदलते समय के साथ हम भारतीय भी स्वयं को पूरी तरह पश्चिमी रहन-सहन के हिसाब से ढालते चले जा रहे है। पश्चिमी जगत की परंपराओं की तरफ तेजी से भाग रहे है और अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ रहे है। बदलते वक्त, बदलते हालातों के साथ भारत में लोन कल्चर को बढ़ावा देना शुरू हो गया है। वर्तमान के समय की बात की जाए तो कर्ज यानी लोन लेना एक त्योहार की तरह हो गया है। आज के समय में आप देखेंगे तो हर चीज के लिए लोन मिलना बेहद ही आसान हो गया है। बस कुछ समय तक ईएमआई चुकाओ और इसके जरिए आप हर वो चीज ले सकते है, जिसे खरीदना आपका सपना है।

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पहले तो केवल बैंकों या कुछ कंपनियों द्वारा ही लोगों को कर्ज दिया जाता था। परंतु आज खासतौर पर शहरों में देखेंगे कि कैसे सड़कों पर टेंट वगैरह लगाकर लोगों को कर्ज लेने के लिए आकर्षित किया जाने लगा है। आज के समय में तो ऐसे कई ऐप्स तक आ गए है, जिनके माध्यम से बेहद ही आसानी से कर्ज लिया जा सकता है। आज से कुछ वर्ष पहले तक लोग केवल बड़े-बड़े कामों के लिए ही कर्ज लेते थे। जैसे शादी के लिए कर्ज लिया जाता था, घर खरीदने के लिए या फिर पढ़ाई के लिए। परंतु आज तो छोटी-छोटी चीजों के लिए लोग कर्ज लेने लगे हैं। अगर लोगों को 10 हजार रुपये का फोन भी खरीदना होगा तो वे इसे भी कर्ज के माध्यम से लेना अधिक पसंद करते है। इस तरह से देश में कर्ज कल्चर को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है।

तो ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या कर्ज की इस परंपरा को बढ़ावा देना सही है? आज के समय में कर्ज को जिस तरह एक त्योहार की तरह बढ़ाया जा रहा है, उस पर लगाम नहीं लगनी चाहिए? देखा जाए तो कर्ज लेने से कई तरह के नुकसान होते है। कर्ज लेकर लोग एक तरह से फंस जाते है। वे महीनों या फिर सालों तक कर्ज चुकाने में लगे रहते है, ऐसे में लोगों के लिए बचत करना मुश्किल हो जाता है। मान लीजिए आपने भारी भरकम कर्ज लिया हुआ है और इस बीच आपको कोई बहुत जरूरी अन्य चीज खरीदनी पड़ जाए तो? क्या आपके लिए कर्ज चुकाते हुए इसे खरीदना संभव हो पाएगा?

कहा जाए तो भारत में अधिकतर लोग ऐसे हैं जिनके पास प्राइवेट नौकरी है। प्राइवेट नौकरी में भविष्य हर वक्त खतरे में रहता है। किसकी नौकरी कब चली जाए, कहा नहीं जा सकता। अगर किसी की नौकरी अचानक चली जाए और उस पर लाखों का कर्ज हो तो जरा सोचिए, उसके लिए हालात कितने मुश्किल बन जाएंगे? कर्ज चुकाना कितना कठिन हो जाएगा? खासतौर पर कोविड के समय में हमें देखने मिला था कि कितने लोगों के रोजगार पर संकट आ गया। लॉकडाउन के कारण महीनों तक लोग घर बैठे रहे। उन्हें सैलरी तक नहीं मिली। बड़ी संख्या में लोगों के नौकरी तक चली गई। अब जब कमाई ना हो तो ऐसे हालातों में कर्ज चुकाना हर किसी के लिए बेहद मुश्किल हो जाता है।

लोन देने वाली कंपनियां आज के समय में लोगों को लुभाने के लिए तरह-तरह के ऑफर लेकर आती है। जैसे कि जीरो प्रतिशत पर लोन देना हो या अन्य स्कीम। इस तरह के ऑफर के प्रति लोग आसानी से आकर्षित हो जाते है। ऐसे में कुछ लोग तो वे चीजें तक खरीद लेते है, जिसकी शायद उन्हें उतनी जरूरत ही नहीं होती। वे यह सोचते है कि बस कुछ महीनों अपनी कमाई का कुछ हिस्सा ही तो देना पड़ेगा और ऐसे करके वो अनावश्यक चीजें खरीद लेते है। इससे हम जरूरत से ज्यादा उपभोक्तावादी बन जाते है।

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कर्ज लेने के बाद व्यक्ति इसके बोझ तले दबे रहते है। दिमाग में हमेशा कर्ज चुकाने की बातें चलती रहती है। वहीं कभी स्थिति ऐसी आ गई कि लोग कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाए तो ऐसे में उनका जीना मुश्किल कर दिया जाता है। संपत्ति जब्त होने तक का खतरा बना रहता है। वहीं कुछ लोग तो कर्ज के कारण इस कदर परेशान हो जाते है कि वे आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम तक उठाने के लिए मजबूर हो जाते है। ऐसी खबरें हमें निरंतर सुनने को मिलती ही रहती है कि कर्ज ना चुका पाने के कारण किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली।

फरवरी 2022 में ही केंद्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय अपराध क्राइम ब्यूरों (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर संसद में जानकारी दी थी कि तीन वर्षों (2018, 2019 और 2020) में देशभर में 25 हजार से भी अधिक लोगों ने बेरोजगारी, कर्ज और दिवालियापन के कारण आत्महत्या की। आंकड़ों के अनुसार इन तीन वर्षों के भीतर देश में बेरोजगारी की वजह से 9140 लोगों ने आत्महत्या, जबकि दिवालिया होने और कर्ज के चलते 16,091 लोगों ने अपनी जान दे दी। वर्ष 2020 में देश में 5,213 लोगों ने कर्ज में तंग आकर सुसाइड की थी, यानी प्रति दिन 14 लोगों ने इस कारण आत्महत्या की। इससे जरा कल्पना कीजिए कि कर्ज के जाल में फंसना कितना खतरनाक हो सकता है?

इन कारणों से योजना के साथ कर्ज लेना बेहद ही आवश्यक हो जाता है। कर्ज तब लेना चाहिए, जब बेहद जरूरी हो और व्यक्ति इस बात के लिए आश्वस्त हो कि वो इसे चुकाने में वर्तमान और भविष्य दोनों में समर्थ रहेगा, चाहे हालात कैसे भी क्यों ना बन जाए। इसके अलावा कर्ज को एक त्योहार की तरह मनाए जाने से रोकने की भी आवश्यकता है। छोटी-छोटी चीजों के लिए आजकल जिस तरह से कर्ज लिया जा रहा है उस पर लगाम लगनी चाहिए।

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