अमेरिका भारत का मित्र दिखता है लेकिन क्या ऐसा है भी?

अमेरिका का वास्तविक सच जान लीजिए!

amerika

Source- TFIPOST.in

राजनीती के दो उसूल होते हैं। पहला राजनीती में कोई किसी का दोस्त नहीं होता। दूसरा किसी पर भी भरोसा करना लेकिन अमेरिका पर कभी नहीं। एक बार को सूर्य देव पश्चिम से निकलना तय कर लेंगे लेकन अमेरिका अपनी दोमुंही बातें और चालें कभी नहीं छोड़ेगा। इसके उदाहरण अमेरिका कई बार दे चुका है।

भारत की ओर बढ़ते अमेरिका के कदम

पिछले कुछ महीनों में संयुक्त राज्य अमेरिका के कई ऐसे फैसले सामने आये हैं जो भारत के हित में हैं। इन्हीं फैसलों में से एक था कि अमेरिका का भारत को CAATSA छूट प्रदान करने के लिए तैयार होना, जो तुर्की और उनके नाटो सहयोगी को नहीं मिल सका। इसके अलावा, यह जेट इंजन प्रौद्योगिकी के विकास में भारत की सहायता करके भारत के आत्मनिर्भर अभियान में भाग लेने के लिए भी तैयार है।

केवल इतना ही नहीं बाइडेन जो अपने कंजर्वेटिव मीडिया द्वारा चीन समर्थक माने जाते हैं उनके प्रशासन ने बार-बार संकेत दिया है कि यदि भारत और चीन के बीच में युद्ध की स्थिति पैदा होती है तो अमेरिका भारत का समर्थन करेगा। हालाँकि, भारत ने धन्यवाद कहते हुए विनम्रतापूर्वक इसके लिए मना ही कर दिया है क्योंकि भारत को आज भी वह समय याद है जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1971 के युद्ध के दौरान हिंद महासागर में यूएसएस एंटरप्राइज भेजकर पाकिस्तान को भारत के खिलाफ राजनयिक और सैन्य सहायता प्रदान की थी। खैर, भारत ने भले ही अमेरिका की किसी भी तरह की सहायता के लिए न कह दिया हो लेकिन अमेरिका का रवैया बताता है कि उसकी रूचि इन दिनों भारत में कितनी अधिक बढ़ रही है।

लेकिन, क्या जो दिखता है वही सच होता है? क्या अमेरिका वास्तव में चाहता है कि भारत आगे बढे और तरक्की करे? या फिर इन सबके पीछे उनकी कोई और ही मंशा है? इसके बारे में और गहराई से जानने के लिए एक बार भारत के पड़ोसी देशों और उनसे अमेरिका के रिश्तों पर नज़र डालते हैं।

और पढ़ें: भारत ने अमेरिका की ‘चौधराहट’ निकाल दी है, अब सोच-समझकर रिपोर्ट जारी करेगा US

अमेरिका और पाकिस्तान

जब से बाइडेन सत्ता में आए हैं, उन्होंने पाकिस्तान की सहायता की हर कोशिश की है। जहाँ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान के ‘सैन्य ढाँचे’ पर अपनी पकड़ मजबूत की थी ताकि वहां से अलगाववादी पैदा न हों। बाइडेन इन असामाजिक तत्वों को समाज में पनपने के लिए हर सहायता प्रदान कर रहे हैं। पाकिस्तान को फंडिंग केवल चीन से ही नहीं बल्कि अमेरिका से भी मिलती रहती है। इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान में एफडीआई के नंबर एक स्रोत के रूप में उभरा है। एक ऐसा देश जहाँ दिनों-दिन महंगाई बढ़ रही है, ईंधन की कमी के कारण लोग परेशान हैं और विकास के नाम पर केवल जर्जर बुनियादी ढांचे हैं उस देश में बाइडेन ने अमेरिकी कंपनियों से निवेश करने को कहा है। इतना ही नहीं, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को आईएमएफ धन की पुनः उपलब्धता की सुविधा भी प्रदान की है।

जैसे कि आर्थिक मदद पर्याप्त नहीं थी, तो अमेरिकियों ने पाकिस्तान के लिए और अधिक आतंकवादी पैदा करना आसान बना दिया है। कैसे? बाइडेन प्रशासन की बदौलत पाकिस्तान जल्द ही FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर हो जाएगा। इससे पाकिस्तान के लिए अधिक धन प्राप्त करना और आतंकवाद को बढ़ावा देना आसान हो जाएगा।

और पढ़ें: रूसी तेल खरीदने से रोकने के लिए अमेरिका अब भारत के सामने भीख मांग रहा

नेपाल और श्रीलंका में हस्तक्षेप

भारत के दो अन्य पडोसी देश हैं जिनपर इस अमेरिका की रूचि पाकिस्तान के बराबर दिख रही है। चीन की नीति का इस्तेमाल करते हुए इस साल फरवरी में अमेरिका ने नेपाल में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता दी। इतना ही नहीं, अमेरिका भी नेपाल के साथ सैन्य समझौता करने की कोशिश कर रहा है। इसका प्रभाव नेपाल और भारत के बीच घटते व्यापार में साफ़ नज़र आ रहा है।

श्रीलंका वह दूसरा देश है जिसे अमेरिका अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहा है। पहले तो अमेरिका ने श्रीलंका में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देकर आज उस देश को भूखो मरने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया और अब इस देश को अपने पक्ष में लाने के लिए कई प्रकार के सहायता अभियान के साथ खड़ा हो गया है। अगर ध्यान दिया जाये तो पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका ये सभी देश चीन के प्रभाव में हैं। अमेरिका इस समय डरा हुआ है क्योंकि चीन एक सुपरपावर बनकर उभरने का हर संभव प्रयास कर रहा है। अमेरिका को डर है कि कहीं उसका दबदबा ख़त्म न हो जाये। ऐसी स्थति में केवल भारत है जो चीन का डटकर मुकाबला कर रहा है। ऐसे में, यदि भारत अमेरिका के साथ मिल जाता है तो अमेरिका के लिए चीन से निपटना आसान हो जायेगा।

भारत ही एक ऐसा देश है जो अमेरिका के चीन को रोकने के सपने में सहयोग कर सकता है। हालाँकि कुछ लोग इस समय भी अमेरिका के भारत के प्रति झुकाव को उसकी दरयादिली मानते हैं लेकिन सौभाग्यवश इस बार की सरकार राजनीती के दोनों नियम अच्छे से समझती है। यही कारण है कि वह जानती है कि अमेरिका पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह कब पीठ में छुरा घोंप दे कोई नहीं जानता।

और पढ़ें: भारत के अभूतपूर्व विकास से अमेरिका स्तब्ध है

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version