RRR को ऑस्कर प्रमाण की आवश्यकता नहीं लेकिन फिर भी क्यों इसका नॉमिनेशन होना चाहिए?

RRR ने वास्तविक भारत को दिखाया है, जोकि धारावी से इतर है!

RRR PIC

Source- Google

RRR ऐसी फिल्म है जिसे देख कर मन ही नहीं भरता और अब यह शनै शनै भारत का प्रतीक भी बनते जा रही है जिसे दुनिया भर से प्रेम और स्नेह मिल रहा है। कहते हैं प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती एवं जनता के प्रेम से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं है और यही RRR को भरपूर मिल रहा है। रूस, जापान, कनाडा, अमेरिका आप किसी भी देश में चले जाईए, हर जगह इसकी जयजयकार हो रही है। लोग इसके प्रभावशाली इफेक्ट, इसकी कथा और इसके प्रभाव से काफी अभिभूत हैं। यूं कहा जाए तो एस एस राजामौली की RRR ‘कंप्लीट एंटरटेनमेंट पैकेज’ है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे RRR को ऑस्कर के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है परंतु फिर भी इसके नॉमिनेशन की आवश्यकता क्यों है।

और पढ़ें: RRR में अपने नकारात्मक चित्रण से चिढ़े अंग्रेज, तो क्या आरती उतारते?

दुनिया में हो रही है RRR की जयकार

जिस प्रकार से इस फिल्म की वैश्विक स्तर पर तारीफ हो रही है और लोग इसका अभिनंदन कर रहे हैं, इसमें केवल चंद प्रशंसक ही नहीं हैं अपितु बड़े से बड़े फिल्मकार और यहां तक कि ऑस्कर विजेता फिल्मकार और पटकथा रचने वाले कलाकार तक इस फिल्म की शैली से अभिभूत हैं। वे इस बात से चकित हैं कि जो रचना रचने में वे अरबों खरबों फूंक देते हैं, वह केवल 72 मिलियन डॉलर में कैसे तैयार हो गई? ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ यानी ‘RRR’ को प्रदर्शित हुए लगभग 4 माह हो चुके हैं परंतु उसकी प्रसिद्धि में तनिक भी कमी नहीं आयी है। क्या रूस, क्या जापान, क्या अमेरिका, हर जगह इसकी लोकप्रियता व्याप्त है। बड़े से बड़े लेखक, ऑस्कर विजेता निर्देशक तक इसके स्क्रीन प्ले की प्रशंसा के पुल बांधते नहीं थक रहे।

इसी बीच प्रसिद्ध अमेरिकी फिल्म ‘ग्रेमलिन्स’ के निर्देशक जो डानते (Joe Dante) ने इस फिल्म की प्रशंसा के पुल बांधते हुए इस पर भी प्रकाश डाला कि कैसे इस फिल्म ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के काले दिनों पर प्रकाश डालने का “साहसिक प्रयास” किया है। परंतु यही एकमात्र उपलब्धि नहीं है। ‘गांधी’, ‘सलाम बॉम्बे’ या ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ की तुलना में इस फिल्म को अति नारीवाद के नारे नहीं लगाने पड़े, न ही वोक संस्कृति को नमन करना पड़ा और तुष्टीकरण तो नाममात्र की भी नहीं थी परंतु फिर भी हॉलीवुड के बड़े से बड़े कलाकार इसकी चर्चा करने को विवश हैं। क्या Oscar विजेता आर्टिस्ट, क्या निर्देशक, क्या VFX कलाकार, सभी इसकी जयजयकार कर रहे हैं और न इसके लिए भारत की गरीबी बेचनी पड़ी, न गांधीगिरी करनी पड़ी, न इसके लिए भारत को भूखे नंगों के देश के रूप में दिखाना पड़ा, सभी जगह RRR के साथ-साथ भारत की जय जयकार भी हो रही है।

तुम्बाड जैसी बेहतरीन फिल्म को नहीं मिला सम्मान

ऐसे में यदि ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ कोरियाई फिल्म ‘पैरासाइट’ की भांति केवल विदेशी श्रेणी में सीमित न रहकर मुख्य श्रेणी की फिल्मों से दो दो हाथ करे और भारत का नाम वैश्विक स्तर पर हर वैश्विक फिल्म फेस्टिवल में रोशन करे तो तनिक भी चकित मत होइएगा। इसके लिए हमें फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया के बैसाखियों पर निर्भर होने की आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि उनकी प्राथमिकता होती है ‘एकलव्य’, ‘बर्फ़ी’, ‘गली बॉय’ जैसी फिल्में भेजना, जो न केवल कॉपिड हो अपितु भारत की छवि भी वैश्विक स्तर पर खराब करे। गली बॉय को ऑस्कर में भेजने पर सवाल उठें थे ज्यूरी अध्यक्ष अपर्णा सेन ने कहा था कि “इस फिल्म की समग्र कलात्मक योग्यता और इसकी बढ़ती लोकप्रियता की अपील की वजह से इस तय जूरी ने ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए सबसे योग्य फिल्म ‘गली ब्वॉय’ को ही समझा था, जो कि एक अनिवार्य रूप से लोकप्रिय पुरस्कार है।“

ऐसे ही लोगों के कारण हमारी एक फिल्म ऑस्कर में जाते जाते रह गई, जिसका नाम था ‘तुम्बाड’। राही अनिल बार्वे द्वारा निर्देशित और अभिनेता एवं निर्माता सोहम शाह द्वारा निर्मित यह फिल्म देखकर कौन कहता कि ये मात्र 5 करोड़ में बनी थी। इसके इफ़ेक्ट्स और इसकी कथा देखकर आप कहेंगे कि भाई किस लोक में आए हैं हम? यह फिल्म विनायक नामक व्यक्ति के लालच पर केंद्रित है जो अपनी तृप्ति के लिए तुम्बाड़ नामक वाड़ा (mansion) में स्थित हस्तर के खजाने से अपने लिए कई बार सोने के सिक्के चुराता है। मराठी लोक कथाओं से प्रेरित यह फिल्म अपने आप में भारतीय सिनेमा के सबसे उत्कृष्ट फिल्मों में से एक मानी जाती है जिसे उचित सम्मान नहीं मिला। सोचिए, अगर यह फिल्म ‘गली बॉय’ जैसे निकृष्ट फिल्म के स्थान पर ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व करती फिर क्या होता?

सच कहें तो RRR जैसे फिल्म को ऑस्कर या किसी अन्य वैश्विक फिल्म पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है। मौजूदा समय में वैश्विक समर्थन और पाश्चात्य जगत के कुछ ठेकेदारों की जलन ही इस फिल्म को प्रकाश दिखाने के लिए पर्याप्त है परंतु यदि यह आगे चलकर वैश्विक स्तर पर शौर्य प्राप्त करे तो चकित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह उसी योग्य है।

और पढ़ें: RRR से मंत्रमुग्ध हुआ पश्चिम, ऑस्कर विजेता रेसूल पूकुटी के पेट में दर्द क्यों हो रहा है?

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version