बताओ जरा, गजब निर्दयी है अपना भारत, कोई ऐसा करता है क्या। जब मन में आए अमेरिका को हड़का दिया, जब मन किया चीन को थूर दिया और UN, पाकिस्तान को धोना तो रोज़ का नाश्ता पानी हो गया है। अभी WTO पर भारत ने अपना भौकाल क्या जमाया अब इससे भी अमेरिकी बिरादरी को समस्या है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे भारत ने एक दांव में अमेरिका को नन्हे मुन्हों की भांति बिलखने पर विवश कर दिया है और कैसे वह एक महाशक्ति कम और एक ‘सड़कछाप’ नौटंकी अधिक प्रतीत होता दिख रहा है।
असल में लगभग एक दर्जन अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडन को एक पत्र लिखते हुए अनुरोध किया कि वो WTO पर दबाव बनाए ताकि वे भारत समर्थक उन नीतियों के विरुद्ध एक्शन ले सकें, जो अमेरिका के लिए हानिकारक है। अच्छा जी, क्या हानिकारक है भैया? अमेरिका के अनुसार भारत की रणनीति बेहद खराब और बकवास है क्योंकि वह कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक हैं और इससे अमेरिका के किसानों एवं जागीरदारों को काफी नुकसान हो रहा है।
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बस, चोरी पकड़ी गई इनकी! मतलब आपके अनुसार व्यवसाय नहीं होगा, तो सारा संसार अन्यायी, अत्याचारी, कपटी, कलंकी और बनराकस। सुनिए बाइडन महोदय, वैसे भी आपकी अवस्था अब राजनीति के लायक रह नहीं गई है, आप स्वयं में ‘रोबोटिक्स’ के मामले में मनमोहन सिंह को टक्कर दे रहे हैं! ऐसे में अब आपको अपने दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए।
वास्तव में WTO के मंच पर जिस प्रकार से भारत अपने विषय पर अड़ा रहा, उससे प्रारंभ में प्रतीत हुआ कि कुछ नहीं होगा परंतु विजय भारत की ही हुई और पराजय WTO तथा पश्चिमी जगत में स्थित उसके आकाओं की हुई। कुछ ही समय पूर्व संपन्न WTO सम्मेलन में भारत को अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की मानें तो भारत की सभी महत्वपूर्ण मांगों पर विकसित देशों को हामी भरनी पड़ी है।
अभी कुछ ही समय पूर्व पीयूष गोयल ने इसी सम्मेलन में डिजिटल एक्सपोर्ट पर कस्टम ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव भी रखा था। उनका कहना था कि डिजिटल एक्स्पोर्टस पर भी कस्टम ड्यूटी लगाई जाए ताकि जिस राजस्व पर अब तक केवल बिग टेक और कुछ चुनिंदा देशों का वर्चस्व था उसका लाभ ‘विकासशील और उभरते हुए देशों को भी मिले।’ दूसरे शब्दों में पीयूष गोयल का एजेंडा स्पष्ट था – अकेले अकेले क्या मजे लूट रहे हो, हमें भी हमारा हिस्सा दो। एक देश कर से बचे और दूसरे देशों को छोटे उत्पादों पर भी भारी कर देना, ये भेदभाव नहीं चलेगा।
यही बात मत्स्यपालन के परिप्रेक्ष्य में भी लागू हुई और न चाहते हुए भी WTO को भारत की अधिकतम मांगों को मानना ही पड़ा। अब इसी की कुंठा अमेरिकी प्रशासन में स्पष्ट दिखाई दे रही है, जो उसके सांसदों के पत्र के माध्यम से निकलकर सामने आई है। परंतु शायद वे भूल रहे हैं कि भारत का रवैया अब उनके लिए क्या है। दांव तो पीयूष गोयल ने WTO में चला था पर चोट और दर्द अमेरिका को लगी और ऐसी लगी है कि वह अभी तक बिलबिला रहा है। वह चाहता है कि WTO उसकी सुने और भारत पर कार्रवाई करे। अब WTO करे न करे ये उसकी इच्छा पर अमेरिका का वही हाल है – न घर का रहा, न घाट का!
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