यूक्रेन को अब तक समझ जाना चाहिए कि ‘दबाव रणनीति’ भारत पर काम नहीं करेगी

भारत के विरुद्ध जेलेंस्की का हर 'षड्यंत्र' होगा विफल

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राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की जिद ने यूक्रेन को पूरी तरह बर्बाद करके रख दिया। रूस के छेड़े गए युद्ध के कारण यूक्रेन तबाही के भयंकर दौर का सामना कर रहा है। फरवरी से जारी इस जंग के चलते हजारों की संख्या में सैनिक समेत आम लोग अब तक मारे जा चुके है। युद्ध के कारण यूक्रेन के तमाम शहर मलबे में तब्दील हो चुके हैं।

यह राष्ट्रपति जेलेंस्की की विफलता है

यूक्रेन ने अब तक भले ही युद्ध में अपनी हार स्वीकार ना की हो। परंतु देखा जाए तो हकीकत यही है कि युद्ध में उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। रूस ने उसे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया और यह यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की विफलता का ही परिणाम है कि वो स्वयं के देश को भीषण तबाही से बचाने में कामयाब नहीं हो पाए और इन सबके बावजूद अपनी जिद पर अड़े रहे। इन सभी कारणों से जेलेंस्की के नेतृत्व की क्षमता पर सवाल खड़े होने लगे हैं। ऐसे में जेलेंस्की स्वयं की गलतियों का दोष दूसरों पर लगाकर उनको बलि का बकरा बनाने के प्रयास में जुटे हैं।

दरअसल, हाल ही में जेलेंस्की ने भारत समेत पांच देशों में तैनात यूक्रेन के राजदूतों को बर्खास्त करने का फैसला लिया। यूक्रेनी राष्ट्रपति की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार इन देशों में भारत समेत जर्मनी, चेक गणराज्य, हंगरी और नॉर्वे शामिल रहे, जिससे यूक्रेन ने अपने राजदूतों को हटाने का निर्णय लिया। यूक्रेन ने राजदूतों की बर्खास्तगी का कोई विशेष कारण नहीं बताया। राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने इसे एक सामान्य राजनयिक प्रक्रिया के तौर पर संदर्भित किया। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि इन राजनियकों को कोई नयी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी या नहीं।

रूस के हमले का सामना कर रहे जेलेंस्की लगातार यूक्रेन की सहायता करने के लिए गुहार लगा रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने देश के राजनयिकों से भी यह आग्रह किया था कि वो दुनियाभर में यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सैन्य सहायता जुटाए। अब ऐसा माना जा रहा है कि मिशन में फेल होने के कारण ही जेलेंस्की ने अपने राजदूतों को हटा दिया। बता दें कि यूक्रेन ने इगोर पोलिखा को वर्ष 2014 में अपना राजदूत बनाकर भारत भेजा था।

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रूस के विरुद्ध जाने के लिए भारत पर काफी दबाव बनाया गया

देखा जाए तो भारत उन देशों में शामिल रहा, जिसने युद्ध को लेकर किसी का समर्थन नहीं किया और न  तो भारत रूस के पक्ष में रहा और न ही यूक्रेन के समर्थन में। इसके विपरीत भारत लगातार युद्ध को रोकने और बातचीत के माध्यम से पूरे विवाद को सुलझाने के प्रयास करता रहा। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर रूस के विरुद्ध जाने के लिए काफी दबाव बनाया गया, परंतु भारत झुका नहीं और अपने रूख पर अडिग रहा। संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ पेश किए गए प्रस्तावों का भी भारत की तरफ से समर्थन नहीं किया गया। इसके अलावा पश्चिमी देशों के विरोध के बाद भी युद्ध के बीच अपने हितों को ध्यान में रखकर रूस से तेल समेत अन्य उत्पाद खरीदता रहा। यूक्रेन की तरफ से कई बार मांग की गयी कि भारत युद्ध रोकने के लिए रूस पर दबाव बनाए। लेकिन भारत ने हर बार अपने हितों को सर्वोपरि बताया।

हालांकि अब अगर यूक्रेन यह सोच रहा है कि वो भारत में नया राजदूत भेजकर युद्ध के प्रति भारत के रूख को बदलने का प्रयास करेगा, तो यह असंभव है। क्योंकि अगर अमेरिका समेत पश्चिमी देश मिलकर भारत के रवैये को बदलने में कामयाब नहीं हो पाए, तो यूक्रेन के लिए भी ऐसा कर पाना नाममुकिन है।

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वैसे देखा जाए तो यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की युद्ध में अपनी विफलता छिपाने के लिए दूसरों पर दोष मड़ने के प्रयासों में लगे हुए है। उन्होंने युद्ध के दौरान समर्थन हासिल नहीं करने की वजह से राजदूतों को बलि का बकरा बनाकर उनको उनके पद से हटा दिया। परंतु देखा जाए तो यह जेलेंस्की की विफलता है कि वो संघर्ष के दौरान अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं जुटा पाए। पहले भी जेलेंस्की ने कई बार अपनी गलतियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने के प्रयास किए है। उन्होंने अपने जासूस प्रमुख पर रूस के साथ मिले होने का आरोप लगाया था। परंतु जेलेंस्की को यह समझना चाहिए कि दूसरों पर दोष मढ़ना कमजोरों की निशानी होती है। यही कारण है कि वो इस पूरे युद्ध के दौरान बेहद ही कमजोर स्थिति में दिखे और केवल सबके सामने समर्थन देने के लिए गिड़गिड़ाते और इमोशनल कार्ड ही खेलते नजर आए। इन्हीं वजहों से युद्ध में जेलेंस्की के नेतृत्व क्षमता सवालों के घेरे में है।

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