TFIPOST English
TFIPOST Global
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
    पार्टी दफ्तर समझ रखा है क्या, अखिलेश की मस्जिद में मीटिंग पर BJP ने उठाया सवाल ​

    पार्टी दफ्तर समझ रखा है क्या? अखिलेश की मस्जिद में मीटिंग पर BJP ने उठाया सवाल ​

    आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण

    आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण

    कांग्रेस को ITAT का झटका, 199.15 करोड़ रुपये के इनकम टैक्‍स छूट में राहत नहीं, जानें क्या हैं कारण

    कांग्रेस को ITAT का झटका, 199.15 करोड़ रुपये के इनकम टैक्‍स में राहत नहीं, जानें क्या हैं कारण

    "जगदीप धनखड़ लंबे चौड़े जाट हैं, तबीयत कैसे खराब हो सकती है", जानें उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर क्या बोले कांग्रेसी

    “जगदीप धनखड़ लंबे चौड़े जाट हैं, तबीयत कैसे खराब हो सकती है”?, जानें उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर क्या बोले कांग्रेसी

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को कैबिनेट की मंजूरी, पीएम की यात्रा के दौरान होगा हस्ताक्षर

    भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को कैबिनेट की मंजूरी, पीएम की यात्रा के दौरान होगा हस्ताक्षर

    बिजनेस का पलायन: 2011 से अब तक पश्चिम बंगाल छोड़ गईं 6,688 कंपनियां, जानिए क्या है वजह?

    बिजनेस का पलायन: 2011 से अब तक पश्चिम बंगाल छोड़ गईं 6,688 कंपनियां, जानिए क्या है वजह?

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    दुनिया के रियलटाइम भुगतान सिस्टम वीजा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा भारत का UPI: IMF

    दुनिया के रियलटाइम भुगतान सिस्टम वीजा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा भारत का UPI: IMF

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    सितंबर तक IAF से रिटरायर हो जाएंगे मिग-21 लड़ाकू विमान, जानें कौन लेगा इनकी जगह

    सितंबर तक IAF से रिटायर हो जाएंगे मिग-21 फाइटर जेट, जानें कौन लेगा इनकी जगह?

    भारतीय सेना को अमेरिका से मिला पहला अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, हिंडन एयरबेस पर हुआ स्वागत

    भारतीय सेना को अमेरिका से मिला पहला अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, हिंडन एयरबेस पर हुआ स्वागत

    तिरुअनंतपुर में खड़ा ब्रिटिश फाइटर जेट

    अंतत: उड़ने को तैयार हुआ ब्रिटिश फाइटर जेट F-35, जानें कब जाएगा वापस

    चीन की सीमा से सटे 'सब-सेक्टर नॉर्थ' (SSN) तक त्वरित और सुरक्षित आवागमन होगा सुनिश्चित (FILE PHOTO)

    चीन की सरहद पर भारत की रणनीतिक बढ़त, नवंबर 2026 तक तैयार होगा नया ‘सैन्य मार्ग’

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    ‘ऑनर किलिंग’ का वो मामला, जिसने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है

    ‘ऑनर किलिंग’ का वो मामला, जिसने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है

    चिकन खाने के ‘हमले’ पर भारत का जवाब: KFC के बाहर गूंजा ‘हरे कृष्णा’

    चिकन खाने के ‘हमले’ पर भारत का जवाब: KFC के बाहर गूंजा ‘हरे कृष्णा’

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    अब तक आजाद नहीं हो सकीं आजाद की अस्थ्यिां, पांच दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश

    आज तक आजाद नहीं हो सकीं “आजाद” की अस्थ्यिां, पांच दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश

    ड्रूज़ समुदाय (Photo - The National News)

    इस्लाम से निकले ड्रूज़ समुदाय की कहानी जो करता है पुनर्जन्म में विश्वास; इन्हें बचाने के लिए इज़रायल ने किए सीरिया में हमले

    आरएसएस के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया

    वैज्ञानिक और शिक्षक से सरसंघचालक तक: प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य ‘रज्जू भैया’ की प्रेरक जीवनयात्रा

    हजारों साल पहले भी हमारे पास थी अपनी नौसेना, नया नहीं है समुद्री क्षेत्र में हमारा आधिपत्य

    नया नहीं है समुद्री क्षेत्र में भारत का आधिपत्य, हजारों साल पहले भी हमारे पास थी अपनी नौ सेना

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    कैंपस हॉस्टल से कामिकेज ड्रोन: भारतीय सेना को युद्ध के लिए तैयार ड्रोन इस तरह पहुंचा रहे बिट्स के दो छात्र

    20 वर्षीय छात्रों ने हॉस्टल में बनाया 300 km/h की रफ्तार वाला कामिकेज़ ड्रोन, अब सेना करेगी इस्तेमाल

    भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का अगला चरण तय, अगस्त में होगी बैठक

    भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का अगला चरण तय, अगस्त में होगी बैठक

    ‘कोहली का वीडियो…RCB की ज़िद’: बेंगलुरु भगदड़ मामले में कर्नाटक सरकार ने टीम को ठहराया ज़िम्मेदार

    ‘कोहली का वीडियो…RCB की ज़िद’: बेंगलुरु भगदड़ मामले में कर्नाटक सरकार ने टीम को ठहराया ज़िम्मेदार

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
tfipost.in
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
    पार्टी दफ्तर समझ रखा है क्या, अखिलेश की मस्जिद में मीटिंग पर BJP ने उठाया सवाल ​

    पार्टी दफ्तर समझ रखा है क्या? अखिलेश की मस्जिद में मीटिंग पर BJP ने उठाया सवाल ​

    आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण

    आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण

    कांग्रेस को ITAT का झटका, 199.15 करोड़ रुपये के इनकम टैक्‍स छूट में राहत नहीं, जानें क्या हैं कारण

    कांग्रेस को ITAT का झटका, 199.15 करोड़ रुपये के इनकम टैक्‍स में राहत नहीं, जानें क्या हैं कारण

    "जगदीप धनखड़ लंबे चौड़े जाट हैं, तबीयत कैसे खराब हो सकती है", जानें उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर क्या बोले कांग्रेसी

    “जगदीप धनखड़ लंबे चौड़े जाट हैं, तबीयत कैसे खराब हो सकती है”?, जानें उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर क्या बोले कांग्रेसी

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को कैबिनेट की मंजूरी, पीएम की यात्रा के दौरान होगा हस्ताक्षर

    भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को कैबिनेट की मंजूरी, पीएम की यात्रा के दौरान होगा हस्ताक्षर

    बिजनेस का पलायन: 2011 से अब तक पश्चिम बंगाल छोड़ गईं 6,688 कंपनियां, जानिए क्या है वजह?

    बिजनेस का पलायन: 2011 से अब तक पश्चिम बंगाल छोड़ गईं 6,688 कंपनियां, जानिए क्या है वजह?

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    दुनिया के रियलटाइम भुगतान सिस्टम वीजा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा भारत का UPI: IMF

    दुनिया के रियलटाइम भुगतान सिस्टम वीजा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा भारत का UPI: IMF

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    सितंबर तक IAF से रिटरायर हो जाएंगे मिग-21 लड़ाकू विमान, जानें कौन लेगा इनकी जगह

    सितंबर तक IAF से रिटायर हो जाएंगे मिग-21 फाइटर जेट, जानें कौन लेगा इनकी जगह?

    भारतीय सेना को अमेरिका से मिला पहला अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, हिंडन एयरबेस पर हुआ स्वागत

    भारतीय सेना को अमेरिका से मिला पहला अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, हिंडन एयरबेस पर हुआ स्वागत

    तिरुअनंतपुर में खड़ा ब्रिटिश फाइटर जेट

    अंतत: उड़ने को तैयार हुआ ब्रिटिश फाइटर जेट F-35, जानें कब जाएगा वापस

    चीन की सीमा से सटे 'सब-सेक्टर नॉर्थ' (SSN) तक त्वरित और सुरक्षित आवागमन होगा सुनिश्चित (FILE PHOTO)

    चीन की सरहद पर भारत की रणनीतिक बढ़त, नवंबर 2026 तक तैयार होगा नया ‘सैन्य मार्ग’

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    ‘ऑनर किलिंग’ का वो मामला, जिसने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है

    ‘ऑनर किलिंग’ का वो मामला, जिसने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है

    चिकन खाने के ‘हमले’ पर भारत का जवाब: KFC के बाहर गूंजा ‘हरे कृष्णा’

    चिकन खाने के ‘हमले’ पर भारत का जवाब: KFC के बाहर गूंजा ‘हरे कृष्णा’

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    अमेरिकी सीनेटर ने भारत की अर्थव्यवस्था तबाह करने की दी धमकी, जानें क्या है मामला

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    अब तक आजाद नहीं हो सकीं आजाद की अस्थ्यिां, पांच दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश

    आज तक आजाद नहीं हो सकीं “आजाद” की अस्थ्यिां, पांच दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश

    ड्रूज़ समुदाय (Photo - The National News)

    इस्लाम से निकले ड्रूज़ समुदाय की कहानी जो करता है पुनर्जन्म में विश्वास; इन्हें बचाने के लिए इज़रायल ने किए सीरिया में हमले

    आरएसएस के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया

    वैज्ञानिक और शिक्षक से सरसंघचालक तक: प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य ‘रज्जू भैया’ की प्रेरक जीवनयात्रा

    हजारों साल पहले भी हमारे पास थी अपनी नौसेना, नया नहीं है समुद्री क्षेत्र में हमारा आधिपत्य

    नया नहीं है समुद्री क्षेत्र में भारत का आधिपत्य, हजारों साल पहले भी हमारे पास थी अपनी नौ सेना

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    USOPC का बड़ा फैसला- ट्रम्प के आदेश के बाद ओलंपिक खेलों में ट्रांसजेंडर एथलीटों की एंट्री पर लगी रोक

    कैंपस हॉस्टल से कामिकेज ड्रोन: भारतीय सेना को युद्ध के लिए तैयार ड्रोन इस तरह पहुंचा रहे बिट्स के दो छात्र

    20 वर्षीय छात्रों ने हॉस्टल में बनाया 300 km/h की रफ्तार वाला कामिकेज़ ड्रोन, अब सेना करेगी इस्तेमाल

    भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का अगला चरण तय, अगस्त में होगी बैठक

    भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का अगला चरण तय, अगस्त में होगी बैठक

    ‘कोहली का वीडियो…RCB की ज़िद’: बेंगलुरु भगदड़ मामले में कर्नाटक सरकार ने टीम को ठहराया ज़िम्मेदार

    ‘कोहली का वीडियो…RCB की ज़िद’: बेंगलुरु भगदड़ मामले में कर्नाटक सरकार ने टीम को ठहराया ज़िम्मेदार

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • रक्षा
  • विश्व
  • ज्ञान
  • बैठक
  • प्रीमियम

विभाजन विभीषिका दिवस पर विशेष: अखण्ड भारत एक वास्तविकता

अखण्ड भारत का विचार उतना ही पुराना है, जितना कि सभ्यताओं का इतिहास।

TFI Desk द्वारा TFI Desk
14 August 2022
in मत
Akhand Bharat a Reality, Special Article partition horrors Remembrance Day

Source: Dainik Jagran

Share on FacebookShare on X

पिछले वर्ष पीएम मोदी ने 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया था. आइए, इस दिन अखंड भारत के बारे में विस्तार से समझते हैं.

अखंड भारत का अभिप्राय उस अविभाजित भारत से है प्राचीन काल में जिसका भौगोलिक विस्तार और सांस्कृतिक प्रभाव बहुत विस्तृत था और इसमें वर्तमान समय के अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड इत्यादि देश सम्मिलित थे।

संबंधितपोस्ट

चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर शुरू किया सबसे बड़े बांध का निर्माण, जानिए भारत पर क्या होगा इसका असर

दुनिया के रियलटाइम भुगतान सिस्टम वीजा को पीछे छोड़ आगे बढ़ा भारत का UPI: IMF

अंतत: उड़ने को तैयार हुआ ब्रिटिश फाइटर जेट F-35, जानें कब जाएगा वापस

और लोड करें

अखण्ड भारत का विचार उतना ही पुराना है, जितना कि सभ्यताओं का इतिहास और इसका विस्तृत वर्णन प्राचीन भारतीय शास्त्रों में किया गया है। अखण्ड भारत के विचार का प्रतिपादन महान भारतीय  अर्थशास्त्री चाणक्य ने किया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, भारतीय उपमहाद्वीप-जिसमे अब अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बर्मा, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश जैसे आधुनिक समय के राष्ट्र हैं, ये सभी अखंड भारत के स्वायत्तशासी राज्यों मे विभक्त थे । चाणक्य ने एक अखंड भारत के विचार को रेखांकित किया जिसका अर्थ है कि इस क्षेत्र मे स्थित सभी राज्य एक ही सत्ता , शासन और प्रशासन के अधीन होंगे। महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ने एक अखंड भारत के साथ-साथ एक हिंदू राष्ट्र की धारणा को प्रतिपादित किया, जिसमे ‘कश्मीर से रामेश्वरम और सिंध से असम तक’ सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुओं के बीच प्रबल सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक एकता पर जोर दिया गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय, कन्हैयालाल मुंशी ने अखंड हिन्दुस्तान की वकालत की, जिनके इस प्रस्ताव को मोहनदास करमचंद गांधी ने भी स्वीकार किया। 7-8 अक्टूबर 1944 को, दिल्ली में, प्रमुख बुद्धिजीवी राधा कुमुद मुखर्जी ने दिल्ली में अखंड हिन्दुस्तान लीडर्स कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता की।

आरएसएस प्रचारक और भारतीय जनसंघ के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आगे चलकर अखंड भारत के विचार को परिभाषित किया। उन्होंने कहा “अखण्ड भारत” शब्द में राष्ट्रवाद के सभी मौलिक मूल्य और एक अभिन्न संस्कृति की संकल्पना निहित है।”

“इन शब्दों में यह भावना समाहित है कि अटक से कटक, कच्छ से कामरूप और कश्मीर से कन्या कुमारी तक की यह पूरी भूमि न केवल हमारे लिए पवित्र है, बल्कि हमारा एक हिस्सा है। वे लोग जो अनादि काल से इसमें जन्मे हैं और जो अभी भी इसमें रहते हैं, उनके स्थान और समय के आधार पर सतही रूप से कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनके संपूर्ण जीवन की मूल एकता अखंड भारत के प्रत्येक राष्ट्रभक्त में देखी जा सकती है।”

मुख्य बिन्दु

  • मैं स्पष्ट रूप से चित्र देख रहा हूं कि भारत माता अखंड होकर विश्वगुरु के सिंहासन पर फिर से आरूढ़ हैं. – अरबिंदो घोष
  • आइए, हम प्राप्त स्वतंत्रता को सुदृढ़ नीव पर खड़ा करें और अखण्ड भारत के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हों. -वीर विनायक दामोदर सावरकर
  • अखंड भारत मात्र एक विचार न होकर विचारपूर्वक किया हुआ एक संकल्प है। कुछ लोग विभाजन को एक पत्थर का स्तंभ मानते है, उनका ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अनुचित है । ऐसे विचार केवल मातृभूमि के प्रति उत्कट भक्ति की कमी का परिचायक हैं. -पंडित दीनदयाल उपाध्याय
  • पश्चाताप से पाप प्रायः धुल जाता है, किन्तु जिन आत्माओं को विभाजन के कुकृत्य पर संतप्त होना चाहिए था, वे अपनी अपकीर्ति की धूल मे लोटकर प्रसन्न हो रहे हैं। आइए , जनता ही पश्चाताप कर ले, अपनी भूल चूक मात्र के लिए ही नहीं, बल्कि अपने नेताओं के कुकृत्यों के लिए भी।   -राम मनोहर लोहिया
  • हम सब अर्थात भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश इन तीनों देशों में रहने वाले लोग वस्तुतः एक ही राष्ट्र भारत के वासी हैं, हमारी राजनीतिक इकाइयां भले ही भिन्न हों परंतु हमारी राष्ट्रीयता एक रही है और वह है भारतीय – लोकनायक जयप्रकाश नारायण

विवरण

एक सभ्यता के रूप में भारत की अवधारणा, विश्व के प्रमुख साम्राज्यों के उदय और पतन से पहले की है। यह सच है कि भारत के अधिकांश भाग कुछ निश्चित समय के मध्य ही एक एकीकृत राजनीतिक शासन के अधीन रहे हालाँकि यह संक्षिप्त समयावधि भी विश्वभर के अधिकांश अन्य देशों की उत्पत्ति और  अस्तित्व की दृष्टि से तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक हैं। जब तक कि हम इस भूमि की ऐतिहासिक सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक एकता को नहीं समझते हैं तब तक हम भारत को नहीं समझ सकते । भारत एक देश ही नहीं  बल्कि इस ग्रह पर विद्यमान अन्य देशों के बीच एक प्राचीनतम जीवित सभ्यता का एक देश है।

और पढ़ें: आगा खान – जिसने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का सृजन किया और अखंड भारत को खंडित किया

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, भारतीय उपमहाद्वीप – जो अब अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बर्मा, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश के आधुनिक समय के राष्ट्र हैं, को कई स्वतंत्र राज्यों में विभाजित किया गया था।

चाणक्य ने एक “अखंड भारत” के विचार को प्रतिपादित किया , जिसका अर्थ है कि इस क्षेत्र के सभी राज्य एक ही प्राधिकरण, शासन और प्रशासन के अधीन हैं।

  • चाणक्य अपनी इस दृष्टि को मूर्त रूप प्रदान करने मे पर्याप्त सीमा तक सफल भी रहे । उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को खोज और पहचानकर उन्हें सिंहासनारूढ़ होने के लिए प्रेरित किया और फिर युद्ध, बुद्धि और गठबंधन के माध्यम से चन्द्रगुप्त ने अखिल भारत बनाने के लिए सभी रियासतों को जीत लिया। हालांकि, चंद्रगुप्त मौर्य के बाद इस साम्राज्य का विघटन होना आरंभ हो गया था किन्तु अशोक के राजा बनने के बाद अस्थायी रूप से बिखर गए राज्यों को पुनः अखंड भारत मे सम्मिलित कर लिया गया।

मुग़ल आक्रमणों के बाद कई भारतीय रियासतों ने लंबे संघर्ष के बाद अपनी शक्ति को आत्मसमर्पण कर दिया और जबकि अन्य जैसे मेवाड़ और राजपुट ने लंबी लड़ाइयां लड़ने का अथक प्रयास किया , किन्तु सफल नहीं हो सके और अखण्ड भारत का विचार अतीत का एक आदर्श बन गया। इस बीच, ब्रिटिश व्यापारियों ने भारत में पैर रखा और इतिहास की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया।

  • 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्व अंग्रेजों ने कभी नहीं सोचा था कि इस राष्ट्र को मज़हबी गलती की रेखाओं के साथ तोड़ा जा सकता है। उन्हे जैसे इस बात का आभास हुआ तो उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई। उन्होंने व्यावहारिक रूप से भारत को विभिन्न राज्यों में तोड़ दिया और हर रियासत को धमकी, खरीद या बातचीत करके अपने शासन के अधीन किया। इतना ही नहीं, भविष्य में एकीकरण से बचने के लिए, ब्रिटिश ने उनके बीच मजहबी मतभेदों को सामने लाकर दूरियाँ और बढ़ा दी, जिससे वे एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए। इस प्रकार स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारियों के एक स्वर कि ऊर्जा अपने लक्ष्य से बहुत दूर चली गयी। महान प्रयासों और संघर्षों के फलस्वरूप के साथ, भारत ने 1947 में अपनी स्वतंत्रता वापस तो ले ली – लेकिन वह भारत नहीं बन पाया जिसको खोया गया था और जिसे प्राप्त करने के लिए इतना बलिदान दिया गया था ।
  • अंग्रेजों द्वारा भारत कि अखंडता पर किया गया कुठाराघात अपार था। भारत को दो राष्ट्रों में तोड़ने के अलावा, भारत के राज्यों में अलग-अलग शासन नियम थे। सभी राज्यों को एक सरकार और एक संविधान के तहत लाना एक विशाल कार्य था।
  • जब वैश्विक विशेषज्ञ यह अनुमान लगाने में व्यस्त थे कि भारत का नया स्वतंत्र राष्ट्र जल्द ही ढह जाएगा तो एक और चाणक्य जैसे व्यक्ति, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सभी देशी रियासतों को एक संयुक्त भारत का विचार दिया हालांकि इसे अखंड भारत नहीं कहा जा सकता था क्योंकि देश अब भी कई हिस्सों में बंटा हुआ था।

और पढ़े: बंगाल विभाजन क्यों हुआ? किसने किया, इसके नकारात्मक प्रभाव

1950 के दशक की शुरुआत में सरदार पटेल ने संयुक्त भारत की महत्वाकांक्षा को काफी सीमा को पूरा किया हालांकि यह पहले के भारत जैसा फिर भी नहीं था।

  • अखंड भारत की विशाल महत्वाकांक्षी संकल्पना में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, तिब्बत, नेपाल, भूटान, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, मलेशिया और यहां तक ​​कि इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों को एकजुट करने का संकल्प है।
  • बहुसंख्यक बाली द्वारा हिंदू धर्म का पालन किया जाता है। वियतनाम के चाम लोग आज भी हिंदू धर्म का पालन करते हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर बौद्ध, कई थाई, खमेर, और बर्मी लोग भी हिंदू देवता की पूजा करते हैं, जो कि एकरूपता के रूप में है। यह खमेर साम्राज्य जैसी पिछली हिंदू सभ्यताओं की मान्यताओं को प्रतिध्वनित करता है।
  • थाईलैंड के शाही दरबार में जैसे कई स्थानो पर आज भी राजशाही कार्यक्रमों मे हिंदू रीति-रिवाज से राजा के लिए हिंदू अनुष्ठान होते हैं।
  • गरुड़, जो कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में एक पवित्र व्यक्ति के रूप में पाया गया है, वह इंडोनेशिया, थाईलैंड और उलानबटार मे पूजनीय हैं
  • मुए थाई, एक युद्ध कला जो हिंदू मुस्तकी-युधा शैली की मार्शल आर्ट का थाई संस्करण है।
  • बोर्नियो के दयाक लोगों द्वारा पालन कहारिंगन नाम का एक स्थानीय धर्म इंडोनेशिया में हिंदू धर्म के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • फिलीपीन पौराणिक कथाओं में सर्वोच्च देवता बाथला और दिवाता की अवधारणा और कर्म कि अवधारणा में अभी भी विश्वास – सभी हिंदू-बौद्ध अवधारणाओं से व्युत्पन्न हैं।
  • मलय लोकगीतों में भारतीय-प्रभावित प्राचीन पात्रों, जैसे बडादरी, जेंटायु, गरुड़ और नागा की एक समृद्ध संख्या है।
  • वेनांग छाया कठपुतलियों (इंडोनेशिया) और इंडोनेशिया, कंबोडिया, मलेशिया और थाईलैंड के शास्त्रीय नृत्य-नाटकों ने रामायण और महाभारत के पत्रों से कहानियाँ लीं हैं।

और पढ़े: पामीर का पठार कहाँ स्थित है? विस्तार एवं जलवायु

वास्तुकला और स्मारक

  • हिंदू मंदिर वास्तुकला की शैली का उपयोग दक्षिण पूर्व एशिया में कई प्राचीन मंदिरों में किया गया था, जिसमें अंगकोर वाट भी शामिल है, जो हिंदू भगवान विष्णु को समर्पित है और कंबोडिया के ध्वज पर दिखाया गया है; मध्य जावा में प्रम्बानन, इंडोनेशिया में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर, त्रिमूर्ति – शिव, विष्णु और ब्रह्मा को समर्पित है।
  • मध्य जावा, इंडोनेशिया में बोरोबुदुर, दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्मारक है। इसने स्तूपों के मुकुट वाले एक विशाल पत्थर को मानवीय स्तूप का आकार दिया गया है और माना जाता है कि यह भारतीय मूल के बौद्ध विचारों का संयोजन है, जो मूल ऑस्ट्रोनेशियन चरण पिरामिड की पिछली महापाषाण परंपरा के समतुल्य है।
  • इंडोनेशिया में 15 वीं से 16 वीं शताब्दी की मस्जिदें, जैसे कि डेमाक और कुद्दुस मस्जिद की बड़ी मस्जिदें मजापाहित हिंदू मंदिरों से मिलती जुलती हैं। माजापहिट इंडोनेशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के इतिहास में अंतिम प्रमुख साम्राज्यों में से एक था।
  • मलेशिया में बाटू गुफाएँ भारत के बाहर सबसे लोकप्रिय हिंदू तीर्थस्थलों में से एक हैं। यह मलेशिया में वार्षिक थिपुसम उत्सव का केंद्र बिंदु है और 1.5 मिलियन से अधिक तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समारोहों में से एक बनाता है।
  • ब्रह्मा को समर्पित इरावन मठ, थाईलैंड के सबसे लोकप्रिय धार्मिक मंदिरों में से एक है।

 

अखण्डता का अर्थ क्या?

अखण्ड भारत महज सपना नहीं, श्रद्धा है, निष्ठा है। जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो, जो प्रात: उठकर “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शं क्षमस्वमे।” कहकर उसकी रज को माथे से लगाता हो, वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंत:करण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं, अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिए यथार्थ की कंकरीली-पथरीली, कहीं कांटे तो कहीं दलदल, कहीं गहरी खाई तो कहीं रपटीली चढ़ाई से होकर गुजरना ही होगा। यात्रा को शुरू करने से पहले उस यथार्थ को पूरी तरह जानना-समझना ही होगा। अन्यथा अंग्रेजी की वह कहावत ही चरितार्थ होगी कि “यदि इच्छाएं घोड़ा होतीं तो भिखारी भी उनकी सवारी करते।”

अत: हमारे सामने पहला प्रश्न आता है कि भारत क्या है? क्या वह भूगोल है? क्या इतिहास है या कोई सांस्कृतिक प्रवाह है? यदि भूगोल है तो उस भूगोल को भारत कब मिला, किसने दिया? भूगोल तो पहले भी था पर तब वह भारत क्यों नहीं था? तब उसका नाम क्या था? भारत की अखंडता का अर्थ क्या है? यदि कोई भौगोलिक मानचित्र है जिसे हम अखंड देखना चाहते हैं तो प्रश्न उठेगा कि उसकी सीमाएं क्या हैं? क्या हम ब्रिटिश भारत की अखंडता चाहते हैं या सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री हुएन सांग के समय के भारत की, जिसमें आज का अफगानिस्तान और मध्य एशिया का ताशकंद-समरकंद क्षेत्र भी सम्मिलित था? या उसके भी पहले के भारत की, जिसे पुराणों में नवद्वीपवती कहा है, जिसके श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, बाली, मलयेशिया, फारमूसा और फिलीपीन जैसे अनेक द्वीप अंग थे?

और पढ़ें: क्या भारत कर सकता है POK पर यूक्रेन स्टाइल चढ़ाई?

यहां प्रश्न उठेगा कि विष्णु पुराण के “उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रैश्चैव दक्षिणम्। वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्तति:।” वाला भारत, नवद्वीपवती कब कैसे बन गया? भारत नाम की भौगोलिक सीमाओं के संकुचन और विस्तार का रहस्य क्या है? उसका आधार क्या है? इन प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए हमें देखना होगा कि भारत बना कैसे? क्या भारत एक दिन में बन गया या उसके पीछे हजारों साल की इतिहास यात्रा विद्यमान है? प्राचीन साहित्यिक स्रोत बताते हैं कि कभी इस भौगोलिक खण्ड को केवल हिमवर्ष कहते थे, फिर उसे “पृथिवी” “अजनाम वर्ष” और “जम्बूद्वीप” जैसे नाम मिले।

मौर्य सम्राट अशोक को सकल जम्बूद्वीप का राजा कहा गया। आगे चलकर हमारे संकल्प-मंत्र में “जम्बूद्वीपे भरत खंडे भारतवर्षे आर्यावर्ते कुरुक्षेत्रे…” जैसे भौगोलिक नामों को गिनाया गया। जिसके अनुसार जम्बूद्वीप भरतखंड अर्थात् भारतवर्ष से बड़ी भौगोलिक इकाई है और भारतवर्ष आर्यावर्त से, आर्यावर्त कुरुक्षेत्र से बड़ा है। इन भौगोलिक रिश्तों का आधार क्या है? ये एक-दूसरे से जुड़ते कैसे चले गए? इन्हें परस्पर जोड़ने वाली इतिहास यात्रा की प्रेरणा क्या है, लक्ष्य क्या है और उसका वाहक या माध्यम कौन है?

मनुस्मृति में इस लम्बी इतिहास यात्रा के कुछ भौगोलिक सोपानों का वर्णन सुरक्षित है। (अध्याय 2, श्लोक 18-23) । इनमें पहला सोपान था, दो प्राचीन देव नदियों-सरस्वती और दृषद्वती के बीच का क्षेत्र, जिसे देवताओं ने बनाया और जिसे ब्राह्मावर्त नाम मिला। मनुस्मृति के अनुसार इस ब्राह्मावर्त क्षेत्र में “परम्परा से चले आये आचार को सभी मानवों के लिए आदर्श माना गया यानी वहां एक महान सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ। निश्चय ही यह वही संस्कृति है जिसका स्रोत वेदों को माना जाता है और जिसका भौतिक शरीर अब पुरातात्विक खुदाइयों में सरस्वती के लुप्त प्रवाह के किनारे-किनारे हरियाणा से गुजरात के समुद्रतट तक प्रगट हो रहा है, जिसे पुरातत्वशास्त्रियों ने सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता या सरस्वती सभ्यता का नाम दिया है। भारत की अखंड साहित्यिक परम्परा साक्षी है कि सरस्वती के तट पर ऋषियों ने वैदिक यज्ञ किए, दृश्यमान सृष्टि चक्र के पीछे विद्यमान देवशक्तियों का साक्षात्कार किया, ज्ञान यात्रा के इस चरण को त्रयी विद्या का नाम दिया।

एक उत्कृष्ट विकसित भौतिक सभ्यता का विकास किया और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की स्थापना की। इस सभ्यता के निर्माताओं को आर्य अर्थात् श्रेष्ठ कहा गया। “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” पूरे विश्व को आर्यत्व-श्रेष्ठत्व की ओर ले जाने का सपना लेकर यह संस्कृति प्रवाह ब्राह्मावर्त की सीमाओं से आगे बढ़ा। उसके अगले भौगोलिक सोपान के रूप में मनुस्मृति ब्राह्मर्षि देश का वर्णन करती है जिसके अन्तर्गत कुरु, पांचाल, शूरसेन एवं मत्स्य नामक जनपदों का नामोल्लेख है। अर्थात् वर्तमान हरियाणा, उससे सटे राजस्थान का कुछ भाग और उत्तर प्रदेश का बृजमंडल इस सांस्कृतिक प्रवाह से आप्लावित हो गए। इस ब्राह्मर्षि देश की महिमा का वर्णन करते हुए मनुस्मृति कहती है इस देश में जन्मे निवासियों से ही पृथ्वी के समस्त मानव अपने लिए चरित्र की शिक्षा लेते हैं। यहां भी संस्कृति ही भूगोल की पहचान का आधार है।

अगला सोपान है मध्य देश, जो उत्तर में हिमालय से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत के बीच और पूर्व में प्रयाग से पश्चिम में सरस्वती के लोपस्थान विनशन तक फैला है। यही सांस्कृतिक प्रवाह मध्यदेश से आगे बढ़कर दक्षिण में रेवा (नर्मदा) तट तक पहुंच जाता है और पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक फैल जाता है। इस क्षेत्र को नाम मिलता है आर्यावर्त और उसकी पहचान है कि वह यज्ञिय देश है और वहां काला मृग नि:शंक होकर चरता है। स्पष्ट ही, आर्यावर्त नाम का अधिष्ठान सांस्कृतिक है। मनुस्मृति के नवीं शताब्दी के व्याख्याकार मेधातिथि तो यहां तक कहते हैं कि जिस क्षेत्र में वर्णाश्रम व्यवस्था है वही आर्यावर्त कहलाने का अधिकारी है, उसके परे म्लेच्छों का वास है।

मनुस्मृति आर्यावर्त पर आकर रुक जाती है। उसके आगे सांस्कृतिक प्रवाह की यात्रा का वर्णन नहीं करती। यह वर्णन हमें महाभारत व पुराणों में प्राप्त होता है। पुराण हमें भारत नाम की उत्पत्ति, उसकी भौगोलिक सीमाओं, उसके नदी प्रवाहों, पर्वतों, नगरों और आसेतु हिमाचल बिखरे जनपदों का परिचय देते हैं। उनके अनुसार वैवस्वत मनु की वंश परम्परा के नाभि के पौत्र एवं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारत नामकरण हुआ। भरत ने सरस्वती के तट पर अनेक यज्ञ किए। कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् में वर्णित दुष्यंत पुत्र भरत का उल्लेख कोई पुराण नहीं करता। कुछ प्राच्यविद् भारत नाम का स्रोत सरस्वती नदी के तट पर भरत नामक जन को मानते हैं। यदि सरस्वती तट पर विकसित वैदिक सरस्वती का आधार भरत जन था तो यह बहुत संभव है कि उस लम्बी सांस्कृतिक यात्रा, जिसने उस पूरे भूगोल को जिसे भारत वर्ष नाम मिला, एक सांस्कृतिक व्यक्तित्व प्रदान करने का माध्यम भरत जन ही रहा होगा।

महाभारत ने भारतवर्ष नाम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन करते हुए उसका कीर्तिगान किया। भीष्म पर्व के नवें अध्याय में महाभारतकार कहता है कि अब तुम्हारे लिए उस भारतवर्ष का कीर्तिगान करूंगा जो देवराज इन्द्र, वैवस्वत मनु, वैन्यपृथु, इक्ष्वाकु, ययाति, अम्बरीष, मान्धाता, नहुष, मुचुकुन्द, उशिनर, ऋषभ, एल नृग, कुशिक, सोमक, दिलीप आदि राजाओं को प्रिय था। ये सभी नाम महाभारत युद्ध से पुराने हैं और एक लम्बी इतिहास यात्रा के सूचक हैं। पुराण, ग्रन्थ इस इतिहास यात्रा में से जन्मी-बढ़ी सांस्कृतिक पक्ष को महत्व देते हैं। विष्णु पुराण कहता है कि भारतवर्ष में ही चार युग (कृत, त्रेता, द्वापर और कलि) होते हैं अन्यत्र कहीं नहीं।

इसी देश में परलोक के लिए मुनिजन तपस्या करते हैं, याज्ञिक लोग यज्ञानुष्ठान करते हैं और दान देते हैं। जम्बूद्वीप में भी भारतवर्ष सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह कर्मभूमि है। अन्य देश केवल भोग भूमियां हैं। जीव को सहस्रों जन्मों के अनन्तर महान पुण्यों का उदय होने पर ही इस देश में जन्म प्राप्त होता है। मनुष्य तो मनुष्य स्वर्ग के देवता भी एक ही गीत गाते हैं कि धन्य हैं वे जिन्हें भारतभूमि में जन्म मिला, क्योंकि वहां स्वर्ग और अपवर्ग दोनों को प्राप्त कराने वाला कर्म पथ उपलब्ध है। विष्णुपुराण भारत को मोक्ष भूमि व कर्म भूमि कहता है। (विष्णुपुराण, द्वितीय अंश, अध्याय 3, श्लोक 19-25)

विष्णु पुराण की इन पंक्तियों में भारत की ज्ञान यात्रा की त्रयी विद्या से ब्राह्म विद्या की ओर प्रगति का संकेत भी छिपा है। ये पंक्तियां हमें भगवद्गीता (अध्याय 9, श्लोक 20-21) के इस कथन का स्मरण दिलाती हैं कि सोमपान करने वाले त्रैविद्य यज्ञों के द्वारा स्वर्ग पाने की प्रार्थना करते हैं। वे अपने पुण्यों के फलस्वरूप इन्द्रलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में देवतुल्य भोग भोगते हैं। किन्तु उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर अपने पुण्यों के क्षीण होने पर पुन: मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस त्रयी धर्म का अनुसरण करने वाले, भोगों की कामना वाले लोगों को आवागमन के चक्र में फंसे रहना पड़ता है। एक अन्य स्थान पर गीता कहती है कि तीनों वेद (ऋक्, यजु: और साम) त्रिगुणात्मक हैं। तू उनसे आगे बढ़।

ब्राह्म को जानने वाले व्यक्ति के लिए सब वेदों का प्रयोजन उतना रह जाता है जितना कि सब ओर से परिपूर्ण विशाल जलाशय के प्राप्त हो जाने पर किसी कुंए का होता है। (गीता, अध्याय-2, श्लोक 45-46) भारत की ज्ञान यात्रा गतिमान है। उसने एक बिन्दु पर पहुंच कर जीव, जगत और ब्राह्म के वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार किया। देश और काल से बंधे दृश्य जगत के परे जाने के लिए योगमार्ग का आविष्कार किया। स्वर्ग से आगे मोक्ष, निर्वाण या कैवल्य को मानव जीवन का चरम लक्ष्य घोषित किया। और अनेक जन्मों में उस लक्ष्य तक पहुंचाने वाले श्रेष्ठ दैवी गुणों का प्रतिपादन किया। इनके समुच्चय को ही “धर्म” कहा।

मानव की अर्थ और काम की जन्मजात ऐषणाओं को “धर्म” के द्वारा संयमित करने का प्रयास किया- धर्मानुसार अर्थ, अर्थानुसार काम जैसे सूत्र प्रदान किए। व्यक्ति को कुल, जाति, ग्राम, जनपद और राष्ट्र की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए “वसुधैव कुटुम्बकम्” के आदर्श तक पहुंचाने वाली समाज रचना खड़ी की, जीवन की विविधता को केवल सहन ही नहीं तो शिरोधार्य किया। “एकोऽहं बहुस्यामि” और “एकं सद्विप्रा: बहुधा वदन्ति” जैसे सूत्र वाक्यों के द्वारा उसे दार्शनिक अधिष्ठान दिया।

अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा कि इस भूमि पर अनेक बोलियां बोलने वाले और अनेक आचार-विचार को मानने वाले लोग रहते हैं पर यह भूमिमाता अपने उन सब पुत्रों को समान रूप से दूध पिलाती है। वह मेरी माता है, मैं उसका पुत्र हूं। कृतज्ञता से भरे भारतीय मन ने माता-भूमि सम्बन्ध के द्वारा अपने को इस भूमि से मान लिया। इसके कण-कण में अपनी श्रद्धा के बीज बोये जिनमें से एक विशाल तीर्थ मालिका का जन्म हुआ। यह मातृभूमि के प्रति भक्ति की अनेकमुखी विविधता को बांधने वाला सूत्र बन गयी। भारत ने प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि, प्रकृति के अनुकूल इष्ट देवता और उपासना पद्धति को चुनने की छूट दी।

गीता में कृष्ण ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जो मुझे जिस जिस रूप में भजना चाहता है मैं उसकी श्रद्धा को उसी रूप में दृढ़ कर देता हूं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार सब नदियों का जल बहकर समुद्र में जाता है उसी प्रकार उपासना के सब मार्ग मुझ तक ही पहुंचाते हैं। मनुष्य के आत्मिक विकास की एकमात्र कसौटी है “आत्मवत् सर्वेभूतेषु” और “सर्वभूतहिते रत:।” इस प्रकार भारत माता के प्रति पुत्र भाव और एक श्रेष्ठ जीवन दर्शन के प्रति अस्था ने ही हमारी सब विविधताओं को एक सूत्र में बांधे रखा है। इसी को राष्ट्र-धर्म कहते हैं। भूमि के प्रति भक्ति का यह भाव सांस्कृतिक प्रवाह के साथ-साथ आगे बढ़ता गया। संस्कृति और भारत एकरूप हो गए। इसीलिए भारतवर्ष की व्याख्या ब्राह्मावर्त, ब्राह्मर्षि देश, मध्य देश, आर्यवर्त, कन्याकुमारी से हिमालय तक के कुमारी खंड से आगे बढ़कर नवद्वीपवती तक पहुंच गयी। भारत ने बृहत्तर भारत का रूप धारण कर लिया।

किन्तु कालक्रम से इन सीमाओं का सिकुड़ना आरम्भ हुआ। आठवीं शताब्दी में भारत में एक ऐसी विचारधारा का प्रवेश हुआ जिसे उपासनात्मक विविधता स्वीकार्य नहीं है, जो अपनी उपासना पद्धति को ही पूर्ण और अन्तिम सत्य मानती है, जो एक पुस्तक और एक पैगम्बर के प्रति अन्धश्रद्धा न रखने वालों को काफिर कहती है, जिसकी दृष्टि में काफिरों को येन-केन प्रकारेण अपने रास्ते पर लाना ही सबसे बड़ा पुण्य कार्य है अन्यथा उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं है। इस विचारधारा में देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता के लिए कोई स्थान नहीं है। वह मजहब को ही सामूहिक पहचान का आधार मानती है। वह अन्य उपासना पद्धतियों के पूजा स्थलों के विध्वंस को मजहब की सेवा समझती है।

अपने अनुयायियों को काफिरों के विरुद्ध जिहाद (धर्म युद्ध) का आदेश देती है। जिहाद में मारे जाने वालों को गाजी कहलाने व जन्नत में जाने का लालच दिखाती है। जो अपने जन्मदेश अर्थात् अरब प्रायद्वीप की सभ्यता, भाषा, वेशभूषा को भी मजहब का हिस्सा मानती है। इस विचारधारा के प्रवेश के बाद भारत में दो विचारधाराओं का लम्बा टकराव प्रारम्भ हो गया। एक विचारधारा जिसमें देशभक्ति, सहिष्णुता, विविधता एवं मानव सभ्यता के लिए कोई स्थान नहीं है, जो असहिष्णु, विस्तारवादी एवं ध्वंसकारी है। यह विचारधारा जहां पश्चिमी और मध्य एशिया, उत्तरी अफ्रीका में अनेक प्राचीन सभ्यताओं को पूरी तरह लील गई, वहां विविधता भरे विकेन्द्रित भारत में इसको एक-एक इंच आगे बढ़ने के लिए लड़ना पड़ा, यहां उसे भारत की संस्कृति को पदाक्रान्त और नि:शेष करने के बजाय अपनी अलग अस्मिता को बचाने की चिन्ता लगी रही। अनेक मध्यकालीन मौलवियों और शासकों की पीड़ा रही कि भारत में हमारी स्थिति हिन्दुओं के महासमुद्र में एक दाने के समान है। इस अस्तित्व रक्षा की चिन्ता ने भारत की प्राचीन सभ्यता व सांस्कृतिक प्रतीकों से पूर्ण सम्बंध विच्छेद का रूप धारण कर लिया।

जियाउद्दीन बरनी, शेख अहमद सरहिन्दी, शाहवली उल्लाह से लेकर सैयद अहमद बरेलवी और उन्नीसवीं शताब्दी में स्थापित देवबंद के दारूल उलूम का एकमात्र प्रयास भारतीय मुसलमानों को भारत की वेषभूषा, जीवन शैली, भाषा और इतिहास से दूर करके अरबी सांचे में ढालना रहा। उन्होंने इस्लाम पूर्व भारतीय इतिहास को जाहिलिया घोषित कर दिया। अपने पूर्वजों और महापुरुषों को अस्वीकार करके विदेशी आक्रमणकारियों को अपने महापुरुष मान लिए। उन्हें राम और कृष्ण स्वीकार्य नहीं, बाबर और औरंगजेब शिरोधार्य हैं। पाकिस्तान द्वारा अपने प्रक्षेपास्त्रों के नाम गोरी और गजनवी रखने के पीछे भी यही मानसिकता झलकती है। आखिर पाकिस्तानी मुसलमान भी तो विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा मतान्तरितों की ही सन्तान हैं। भारत जैसा संकट इस्लाम को शायद किसी दूसरे देश में नहीं झेलना पड़ा इसलिए भारतीय मुस्लिम मानस का विकास इन तेरह सौ वर्षों में हिन्दू विरोध के आधार पर ही हुआ है। इसीलिए उन्हें वन्देमातरम् से चिढ़ है।

सर सैयद अहमद को लोकतंत्र स्वीकार नहीं था, क्योंकि उनकी दृष्टि में लोकतंत्र का अर्थ होगा बहुमत का राज अर्थात् मुस्लिम अल्पमत पर हिन्दू बहुमत का शासन। इसलिए उन्होंने मुसलमानों को कांग्रेस में न जाने की सलाह दी। इसी मानसिकता में से 1906 में मुस्लिम लीग का जन्म हुआ, जिसने 1947 में देश का विभाजन कराया। इस विभाजन के लिए जिन्ना नहीं, मुस्लिम समाज जिम्मेदार है। एक मुस्लिम चिन्तक अजीज अहमद ने 1964 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “स्टडीज इन इस्लामिक कल्चर इन इंडियन एनवायरमेंट” (भारतीय परिवेश में इस्लामी संस्कृति का अध्ययन) पुस्तक में भारत में मुस्लिम पृथकतावाद के विकास का विश्लेषण करते हुए पुस्तक का समापन इन शब्दों के साथ किया है कि जो लोग समझते हैं कि जिन्ना ने मुसलमानों का नेतृत्व किया या उन्होंने पाकिस्तान बनवाया, वे भूल करते हैं। जब तक जिन्ना ने मुसलमानों का नेता बनने की कोशिश की मुस्लिम समाज ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, जिस दिन उन्होंने मुस्लिम समाज का अनुयायी बनना तय किया उसी दिन वे उसके नेता बन गए। जिन्ना की भूमिका अपने मुवक्किल (मुस्लिम समाज) की आकांक्षाओं को आधुनिक संवैधानिक शब्दावली में प्रस्तुत करने वाले वकील से अधिक कुछ नहीं थी।

यहीं सवाल आता है कि मुस्लिम समाज ने मौलाना अबुल कलाम आजाद के बजाय जिन्ना को अपना वकील क्यों चुना? आजाद पूरी तरह मुसलमान थे, वेषभूषा में अरबी, फारसी व उर्दू भाषा में पांच बार नमाज पढ़ने में, कुरान की विद्वतापूर्ण व्याख्या में, जबकि मि. जिन्ना का इस्लाम से दूर तक वास्ता नहीं था, वे अंग्रेजी वेषभूषा में रहते थे, नमाज नहीं पढ़ते थे, उर्दू पढ़-लिख नहीं सकते थे।

मुसलमानों के लिए वर्जित सुअर का मांस उन्हें पसन्द था। वरिष्ठ पत्रकार प्राण चोपड़ा ने अभी हाल में लिखा है कि विभाजन के पहले जालंधर में मुस्लिम लीग की एक सभा की रिपोर्टिंग करते समय उन्होंने देखा कि कायदे आजम जिन्ना अंग्रेजी में धुआंधार भाषण दे रहे हैं कि इस्लाम खतरे में है, उसे बचाने के लिए आपको संघर्ष करना होगा। उनके भाषण के बीच में ही पास की मस्जिद से अजान हुई जिसे सुनकर मंच पर बैठे सब लोग और श्रोताओं का विशाल समूह नमाज पढ़ने के लिए चला गया, पर कायदे आजम अपनी कुर्सी पर बैठे रहे। उन्होंने अपनी जेब से सिगार निकाला, उसमें तम्बाकू भरा और मजे से पैर फैलाकर वे धुंआ उड़ाते रहे। नमाज पूरी करके भीड़ वापस लौटी और फिर अंग्रेजी भाषा में इस्लाम की रक्षार्थ संघर्ष का भाषण शुरू हो गया। प्राण चोपड़ा आश्चर्यचकित थे कि अंग्रेजी न जानने वाली वह भीड़ इतनी श्रद्धा से क्या सुन रही थी।

इस मानसिकता का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि भारतीय मुस्लिम मानसिकता ने हिन्दू विरोध को ही मजहब मान लिया है। इस हिन्दू विरोधी और पृथकतावादी मानसिकता के कारण ही उन्होंने गांधी और नेहरू जैसे नेताओं के होते कांग्रेस का साथ नहीं दिया क्योंकि वे उसे हिन्दु कांग्रेस मानते थे। नेहरू जी ने मार्च, 1937 में मुस्लिम जनसम्पर्क अभियान छेड़ा तो उससे घबड़ा कर कवि इकबाल ने जिन्ना को मुसलमानों का नेतृत्व संभालने का आदेश दिया।

और पढ़ें: अब समय है कि भारतीय संविधान का ‘भारतीयकरण’ हो और यह सिर्फ भाजपा ही कर सकती है

इसी कारण उन्होंने मौलाना आजाद को ठुकराया क्योंकि उनकी दृष्टि से वे हिन्दू कांग्रेस का एजेन्ट थे। आज भी वही मानसिकता है। भारतीय जनता पार्टी को स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस के उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं। इसीलिए भाजपा के साथ जुड़ने वाले प्रत्येक मुस्लिम नेता को -वह चाहे स्व. सिकन्दर बख्त हों, चाहें आरिफ बेग या आरिफ मुहम्मद, चाहे मुख्तार अब्बास नकवी या शाहनवाज हुसैन इन सभी को वे हिन्दुओं का एजेन्ट मानते हैं।

1947 का विभाजन पहला और अन्तिम विभाजन नहीं है। भारत की सीमाओं का संकुचन उसके काफी पहले शुरू हो चुका था। सातवीं से नवीं शताब्दी तक लगभग ढाई सौ साल तक अकेले संघर्ष करके हिन्दू अफगानिस्तान इस्लाम के पेट में समा गया। हिमालय की गोद में बसे नेपाल, भूटान आदि जनपद अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण मुस्लिम विजय से बच गए। अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया पर अब वह राजनीतिक स्वतंत्रता संस्कृति पर हावी हो गयी है।

श्रीलंका पर पहले पुर्तगाल, फिर हालैंड और अन्त में अंग्रेजों ने राज्य किया और उसे भारत से पूरी तरह अलग कर दिया। यद्यपि श्रीलंका की पूरी संस्कृति भारत से गए सिंहली और तमिल समाजों पर आधृत है। दक्षिण पूर्वी एशिया के हिन्दू राज्य क्रमश: इस्लाम की गोद में चले गए किन्तु यह आश्चर्य ही है कि भारत से कोई सहारा न मिलने पर भी उन्होंने इस्लामी संस्कृति के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। इस्लामी उपासना पद्धति को अपनाने के बाद भी उन्होंने अपनी संस्कृति को जीवित रखा है और पूरे विश्व के सामने इस्लाम के साथ सह अस्तित्व का एक नमूना पेश किया।

किन्तु मुख्य प्रश्न तो भारत के सामने है। तेरह सौ वर्ष से भारत की धरती पर जो वैचारिक संघर्ष चल रहा था उसी की परिणति 1947 के विभाजन में हुई। पाकिस्तानी टेलीविजन पर किसी ने ठीक ही कहा था कि जिस दिन आठवीं शताब्दी में पहले हिन्दू ने इस्लाम को कबूल किया उसी दिन भारत विभाजन के बीज पड़ गए थे। इसे तो स्वीकार करना ही होगा कि भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम आधार पर हुआ। पाकिस्तान ने अपने को इस्लामी देश घोषित किया। वहां से सभी हिन्दू-सिखों को बाहर खदेड़ दिया।

अब वहां हिन्दू-सिख जनसंख्या लगभग शून्य है। भारतीय सेनाओं की सहायता से बंगलादेश स्वतंत्र राज्य बना। भारत के प्रति कृतज्ञतावश चार साल तक मुजीबुर्रहमान के जीवन काल में बंगलादेश ने स्वयं को पंथनिरपेक्ष राज्य कहा किन्तु एक दिन मुजीबुर्रहमान का कत्ल करके स्वयं को इस्लामी राज्य घोषित कर दिया। विभाजन के समय वहां रह गए हिन्दुओं की संख्या 34 प्रतिशत से घटकर अब 10 प्रतिशत से कम रह गई है और बंगलादेश भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बन गया है। करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठिए भारत की सुरक्षा के लिए भारी खतरा बन गए हैं।

संदर्भ

Devendra Swarup (2016)Akhand Bharat : Swapan Aur Yatharth, Prabhat Prakashan,

KM Munshi (1942) Akhand Hindustan , Kitab Mahal, Mumbai

RK Mookerji (1945) Akhand Bharat   Kitab Mahal, Mumbai

Sadanand Damodar Sapre (2015) Pratyek Rashtrabhakta Ka Sapna: Akhand Bharat, Archna Prakashan, Bhopal

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Tags: Akhand Bharatअखंड भारतभारतविभाजन विभीषिका दिवस
शेयरट्वीटभेजिए
पिछली पोस्ट

नेहरू की वो 3 गलतियां जिन्होंने विभाजन की विभीषिका को जन्म दिया

अगली पोस्ट

‘कुछ’, ‘अज्ञात’, ‘संभवत:’- सुबह-शाम इस्लामिस्टों को बढ़ावा देने वालों का ‘राग-रुश्दी’ सुनिए

संबंधित पोस्ट

आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण
मत

आरएसएस की शाखा से ‘टीम मैनेजमेंट’ का प्रशिक्षण

22 July 2025

जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का शताब्दी वर्ष निकट आ रहा है, उसके कार्यों की चर्चा बढ़ती जा रही है। संघ की ओर से भी...

‘विश्व संवाद केंद्र’ संचार माध्यमों, सोशल मीडिया और मीडिया की ताकत को राष्ट्र हित में उचित दिशा देने के लिए प्रयासरत है
मत

‘संवाद से सौहार्द’ की ओर ‘विश्व संवाद केंद्र’ की भूमिका

20 July 2025

‘संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्’, ऋग्वेद की ऋचा की यह पंक्ति अधिकांश लोगों ने सुनी या पढ़ी होगी । यह ऋचा आज भी उतनी...

आरएसएस के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया
इतिहास

वैज्ञानिक और शिक्षक से सरसंघचालक तक: प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य ‘रज्जू भैया’ की प्रेरक जीवनयात्रा

14 July 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के लिए ‘14 जुलाई’ का दिन विशेष स्मृति दिवस होता है, क्योंकि 14 जुलाई 2003 को संघ चतुर्थ सरसंघचालक प्रो....

और लोड करें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

I agree to the Terms of use and Privacy Policy.
This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

इस समय चल रहा है

Lashkar-e-Taiba on the Run from Muridke: Is Bahawalpur Becoming Pakistan’s New Terror Capital?

Lashkar-e-Taiba on the Run from Muridke: Is Bahawalpur Becoming Pakistan’s New Terror Capital?

00:07:26

Britain’s Million-Dollar Bird Finally Takes Off!

00:06:43

Maharashtra targets crypto christians. fake dalit quota scam exposed.

00:04:16

The Forgotten Maratha Legacy in Tamil Nadu

00:07:37

India’s ULRA Bomber: 12,000-km Beast That Can Strike Anywhere Without Refueling

00:07:39
फेसबुक एक्स (ट्विटर) इन्स्टाग्राम यूट्यूब
टीऍफ़आईपोस्टtfipost.in
हिंदी खबर - आज के मुख्य समाचार - Hindi Khabar News - Aaj ke Mukhya Samachar
  • About us
  • Careers
  • Brand Partnerships
  • उपयोग की शर्तें
  • निजता नीति
  • साइटमैप
MASHABLE IS A GLOBAL, MULTI-PLATFORM MEDIA AND ENTERTAINMENT COMPANY. FOR MORE QUERIES AND NEWS, CONTACT US AT info@mashablepartners.com


©2025 TFI Media Private Limited

कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
TFIPOST English
TFIPOST Global

©2025 TFI Media Private Limited