सीजेआई के पिता संग हुई घटना ने साबित किया कि SC में सिर्फ ‘फेस वैल्यू’ को ही तवज्जो मिलती है

सीजेआई के पिता को सुप्रीम कोर्ट में किया गया था अपमानित!

UU Lalit pic

Source- TFI

देश की अदालतों में भी एक एलीट मानसिकता का वास है। इसके कारण आम आदमी की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दबी पड़ी रहती हैं तो दूसरी ओर कुछ मामलों में अदालतें आधी रात तक को खोल दी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट के जजों को लगता है कि वे ही सब कुछ हैं और जो वे चाहेंगे वही होगा! आम तौर पर इन बातों को सुप्रीम कोर्ट के जज नकारते रहें हैं लेकिन अहम बात यह है कि देश के नए चीफ जस्टिस यू यू ललित इस विशिष्ट व्यक्तियों वाले एलीट कल्चर से वाकिफ हैं। इसकी वजह यह है कि पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की ही एक बेंच ने एक बार यू यू ललित के पिता यू आर ललित का अपमान किया था।

दरअसल, चीफ़ जस्टिस यू यू ललित का एक किस्सा इन दिनों काफी चर्चा में है क्योंकि हाल ही में उन्होंने यह पदभार संभाला है। वर्तमान सीजेआई के पिता यू आर ललित से यह मामला सीधे तौर पर जुड़ा है क्योंकि कभी सुप्रीम कोर्ट में यू यू ललित के साथी जज ने उनके पिता के क़ानूनी ज्ञान सवाल उठाया था। यह बात वर्ष 2016 की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इस दौरान कोर्ट ने शिकायतकर्ता के वकील से एक तकनीकी सवाल पूछा था कि आपराधिक मानहानि के मामले में पुलिस की क्या भूमिका होती है?

वहीं, इस मामले में शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि फिलहाल उन्हें इस मामले में बहुत अधिक नहीं पता है। इसके बाद दीपक मिश्रा ने सामने से उत्तर न आता देख खुद ही जवाब दिया कि “आपराधिक मानहानि के मामले में पुलिस की कोई भूमिका नहीं होती है।” इसके साथ ही उन्होंने उन वकील यानी यू यू ललित के पिता यू आर ललित को कानूनी जानकारी न होने पर उनकी आलोचना की थी।

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पूरे बवाल की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस रोहिंगटन नरीमन थे। वहीं, सामने शिकायतकर्ता राजेश कुंटे की पैरवी के लिए खड़े थे बॉम्बे हाईकोर्ट के मशहूर वकील और सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यू यू ललित के पिता यू आर ललित। यू आर ललित सुप्रीम कोर्ट कम आते थे इसलिए यहां के जज और वकील उन्हें कम ही पहचानते थे और यही ‘एलीट क्लास’ न होना यू आर ललित को अपमानित करने का कारण बना था।

जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी के लिए कपिल सिब्बल पैरवी कर रहे थे। वहीं, जस्टिस दीपक मिश्रा सीनियर ललित को नहीं पहचान रहे थे इसलिए सिब्बल को ज्यादा तवज्जो मिल रही थी और ललित को एक सामान्य वकील समझकर क्रिमिनल लॉ में उनकी जानकारी की परीक्षा ले रहे थे। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह बहुत आम है कि नामचीन वकीलों को जज ज्यादा तवज्जो देते हैं और जिन्हें जज नहीं जानते उन्हें अपने कानूनी ज्ञान से जजों को प्रभावित करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है।

कपिल सिब्बल, सीनियर ललित को पहचानते थे। उन्होंने जस्टिस दीपक मिश्रा को संकेतों में बताने की कोशिश करते हुए कहा कि “मी लार्ड, इन्हें क्रिमिनल लॉ का ज्ञान हमलोगों से कहीं अधिक है।” जस्टिस नरीमन जो मुंबई से ही आते हैं, वो भी सीनियर ललित को पहचानते थे। उन्होंने दीपक मिश्रा के कान में कुछ कहा था जिसके बाद दीपक मिश्रा को यू आर ललित की पहचान पता चली थी और फिर अचानक ही उनके सुर बदल गए थे।‌ उसके तत्काल बाद जस्टिस मिश्रा के भाव अचानक बदल गए।

गौरतलब है कि दीपक मिश्रा बहुत ही नेक जज थे। उन्हें जैसे ही अहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई है। उन्होंने कहा कि “सॉरी, सॉरी, सॉरी। चूंकि इससे पहले आप कभी मेरी कोर्ट में नहीं आये थे, हमें आपके आर्गुमेंट्स सुनने का सौभाग्य नहीं मिला है, आप हमें गाइड करें।” फिर मुस्कुराते हुए सिब्बल की ओर मुखातिब होते हुए कहा था कि “अब मैं मिस्टर सिब्बल से कहूंगा की आप बैठ जाइए।” भले ही तब दीपक मिश्रा इस मामले में यू आर ललित से माफी मांगते नजर आए थे लेकिन फिर भी उन्होंने यह साबित कर दिया कि अदालतों में जज केवल प्रतिष्ठित और जाने-माने वकीलों की ही बातें सुनते हैं। हालांकि, अब इन्हीं यू आर ललित के बेटे यू यू ललित सीजेआई बने हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि यू यू ललित को राम मंदिर केस की संवैधानिक बेंच से हटना पड़ा था क्योंकि उन्होंने वकालत के समय में भाजपा के नेताओं की बाबरी विध्वंस केस में वकालत की थी। यू यू ललित के साथ केवल इतना ही नहीं हुआ बल्कि सच तो यह है कि उनके पिता यू आर ललित को परेशान किया जाता रहा। वो कांग्रेस की नीतियों का विरोध करते थे और उन्होंने इमरजेंसी की आलोचनाओं का समर्थन किया था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यू आर ललित की सैलरी और पेंशन तक में विघ्न डाले गए।  इसका नतीजा यह भी हुआ कि ललित के पिता की पेंशन और सैलरी आने तक उन्हें मुसीबत का सामना करना पड़ा था। यू यू ललित की बात करें तो वो सभी तरह की दिक्कतों और कोर्ट की ढुलमुल नीति से गुज़रे हैं। अब वो सुप्रीम कोर्ट की कमान अपने हाथ में लिए हुए हैं। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि ललित इस नीति को बदलने के साथ ही कुछ ऐतिहासिक फ़ैसले लेंगे, जिससे राष्ट्रीय सतर पर देश का नुकसान न हो।

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