आखिर बॉलीवुड एक धर्म को नीचा और दूसरे धर्म को ऊंचा क्यों दिखाता आया है ?

बॉलीवुड और उसकी टाइप कास्टिंग की महामारी कभी नहीं जाएगी !

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Source- TFIPOST.in

पहले के समय में साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता था। परंतु वर्तमान में देखें तो स्थिति बदल चुकी है। आज सिनेमा को समाज का आईना माना जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा लोगों को काफी हद तक प्रभावित करता है। जो भी चीजें लोग फिल्मों में देखते है, उससे हकीकत मानने लगते है। सिनेमा लोगों के दिलों-दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ता है। इसलिए फिल्म निर्माताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे हर फिल्म को बनाते समय समझदारी दिखाएं। ऐसी फिल्में लोगों के सामने प्रस्तुत करें। जो समाज को कुछ सिखाए। जो समाज में संदेश दें। ऐसे में बॉलीवुड की भी जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है, क्योंकि देश में अधिकतर लोग हिंदी सिनेमा को ही फॉलो करते है। परंतु जिस बॉलीवुड से इतनी अपेक्षा रखी जाती है उसे देखा जाए तो असल में टाइप कास्टिंग नाम की महामारी का शिकार नजर आता है।

टाइप कास्टिंग का मतलब एक किरदार या अभिनेता को एक ही प्रकार के सांचे में ढाल देना। उदाहरण के तौर पर आप आलोक नाथ को देखेंगे तो एक संस्कारी बापू जी वाली छवि आपके दिमाग में आएगी। निरूपा रॉय को देखेंगे तो एक ऐसी मां की छवि आएगी, जिनके दिमाग में केवल दुख ही दुख है। ऐसा क्यों? क्योंकि बॉलीवुड द्वारा इन किरदारों को हमेशा ऐसा ही दिखाया गया है और हम इन्हें ऐसे ही देखने के आदी हो चुके है। परंतु देखा जाए तो केवल अभिनेताओं और किरदारों में ही नहीं बॉलीवुड में तो विभिन्न धर्मों को लेकर भी इस टाइपकास्टिंग महामारी से पीड़ित है।

अधिकतर हिंदी सिनेमा में आपको देखने मिला कि हर धर्म के किरदारों को एक ही रूप में दिखाया जाता है। जैसे कि ज्यादातर फिल्मों में सिख पात्रों को हंसी वाले किरदारों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के तौर पर आप ‘सिंग इज किंग’, ‘सन ऑफ सरदार’ जैसी ढेरों फिल्में देख सकते है। इन फिल्मों में आपको सिख किरदार ऐसी ही देखेंगे जो कॉमेडी वाला रोल निभाते नजर आएंगे। कम ही फिल्मों में आपको ऐसे सिख किरदार आपको गंभीर रोल में नजर आएंगे।

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ब्राह्मणों को देख लीजिए कि उनके किरदार को हमारी हिंदी फिल्मों में किस तरह से प्रस्तुत किया जाता है। अधिकतर फिल्मों में ब्राह्मणों को शोषित करने वाले किरदारों के रूप में दिखाया जाता है। गुंडागर्दी, दलितों का शोषण यह सबकुछ ब्राह्मण करते है, ऐसा हमारा हिंदी सिनेमा कहता है। ऐसी हमें कई सारी फिल्में देखने को मिल जाएगी, जिसमें ब्राह्मण और उच्च जाति के लोगों को विलेन के तौर पर प्रस्तुत किया गया हो। बॉलीवुड की फिल्मों में इन्हें विलेन के तौर पर तो दिखाया ही जाता है, इसके अलावा इनके विशुद्ध धार्मिक प्रतीकों भी इस दौरान साथ में दिखाए जाते हैं।

कभी साधु-संत के भेष में दिखाते हैं, तो कभी आरती करते हुए अथवा कभी त्रिपुंड माथे पर लगाए हुए। वहीं पत्रा वाले ब्राह्मणों को अक्सर ही पाखंडी के रूप में हमारा बॉलीवुड प्रदर्शित करता नजर आया है। बॉलीवुड ने दशकों तक ‘दुराचारी ठाकुर’, ‘पाखंडी ब्राह्मण’ जैसे अनगिनत नैरेटिव गढ़े। यह वही बॉलीवुड है, जो पूर्वोत्तर के साथ भेदभाव पर ज्ञान तो हर किसी को खूब बांटता रहता है। परंतु सबसे अधिक मजाक भी बॉलीवुड फिल्मों में इनका उड़ाया जाता है। कई फिल्मों में आप देखेंगे कि कैसे नॉर्थ ईस्ट के लोगों को मोमो, चंकी मंकी जैसे नामों से बुलाकर इनका उपहास उड़ाया जाता है।

वहीं बात मुस्लिम चरित्रों की आती है, तो बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों में इन्हें वफादार, ईमानदार, दोस्ती निभाने वाला और अपने धर्म के प्रति सच्ची आस्था रखने वाले किरदारों के तौर पर दिखाया जाता है। उदाहरण के तौर पर आप लोकप्रिय फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ को देख सकते है। फिल्म की कहानी यह है कि तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मगलर है लेकिन उनके बच्चों अकबर और एंथनी को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई महान इंसान हैं।

किसी फिल्म में अगर मुस्लिम किरदार कोई अपराधी या विलेन हो, तो यह दिखाया जाता है कि वे कितना अपने उसूलों का पक्का है। अगर आप बॉलीवुड फिल्मों को सही तरीके से खंगालेंगे तो आपको ऐसी बहुत सारी फिल्में मिल जाएगी। जिसमें मुस्लिम समेत अन्य धर्मों से जुड़े लोगों को महान किरदारों के तौर पर पेश किया जाता है। जबकि ब्राह्मण, उच्च जाति से जुड़े लोगों को नकारात्मक किरदारों में दिखाया जाता है। लोगों के दिमाग में यह भरा जाता है कि ब्राह्मण और सवर्ण जातियां सदैव ही अत्याचारी रही हैं।

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वर्ष 2015 में अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM) के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने इससे संबंधित एक अध्ययन भी किया था। जिसमें उन्होंने पाया कि कैसे बॉलीवुड की फिल्में हिंदू धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा जहर भरने का प्रयास कर रही है। रिसर्च के अनुसार बॉलीवुड फिल्मों में 58 प्रतिशत भ्रष्ट नेताओं को एक ब्राह्मण के तौर पर दिखाया जाता है। वहीं इन फिल्मों में 62 फीसदी बेईमान कारोबार के तौर पर वैश्य सरनेम वाले को दिखाया जाता रहा है। 74% सिखों को इन फिल्मों में मजाक का पात्र बनाया गया। जबकि 84 प्रतिशत मुस्लिम किरदारों को अपने धर्म में पूर्ण विश्वास रखने वाला, ईमानदार और उसूलों का पक्का जैसे दिखाया गया।

इससे पता चलता है कि बॉलीवुड की तो हिंदू संस्कृति को बदनाम करने की आदत सी हो गई है। फिल्मों के माध्यम से बॉलीवुड हिंदू धर्म को बदनाम करने में कोई कमी तो नहीं छोड़ता। जैसे कि आमिर खान की ‘पीके’ और अक्षय कुमार की ‘ओ माई गॉड’ जैसी फिल्में ही ले लीजिए। शाहरुख, काजोल और रानी मुखर्जी की ‘कुछ कुछ होता है’, तो आप सभी ने जरूर देखी होगी। फिल्म का एक दृश्य है, जिसमें छोटी अंजली का किरदार निभाने वाली बच्ची जब नमाज पढ़ती है, तो तुरंत ही उसकी दुआ कबूल हो जाती है। जबकि इसी फिल्म में दिखाया गया है कि जब उस बच्ची की दादी उसे पूजा-पाठ करने के लिए कहती है, तो वो कैसे इसका मजाक बनाती है। कुछ इस तरह बड़ी ही चालाकी से बॉलीवुड दशकों से हिंदू समाज के विरुद्ध एजेंडा चला रहा है। लोगों के दिमाग में जहर घोलने के प्रयास कर रहा है।

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ऐसे में अब समय आ गया है कि बॉलीवुड से हिंदुओं को बदनाम करने की टाइप कास्टिंग करने की महामारी का अंत किया जाए और वो तभी संभव होगा जब लोग इसके विरुद्ध में खुलकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे। वैसे देखा जाए तो आजकल सोशल मीडिया के इस युग में लोग इन सबके खिलाफ अपनी आवाज उठाते भी है। यही कारण है कि आज के समय में एक के बाद एक कई बॉलीवुड फिल्में लगातार बायकॉट अभियान के ट्रेंड का हिस्सा हो रही है और इन्हीं कारणों से वो अपने विनाश के करीब पहुंचता चला जा रहा है।

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