मकान बनाओ नहीं तो फंडिंग भूल जाओ, मोदी सरकार की भूपेश बघेल को सीधी चेतावनी

बघेल सरकार को दिन में तारे दिख रहे हैं!

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देश के गिनेचुने राज्यों में ही तो कांग्रेस की सरकार बची है और जहां बची है वहां के मुख्यमंत्री के तेवर ऐसे हैं मानों इनसे बड़ा कोई सानी मुख्यमंत्री नहीं हैं। तभी तो एक बार फिर प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर छत्तीसगढ़ भूपेश बघेल सरकार और केंद्र सरकार आमने-सामने आ खड़ी हुई हैं। केंद्र और राज्य सरकार के बीच इसी विवाद के कारण छत्तीसगढ़ के आवास विहीन लोगों को पक्के आवास मिलने में मुश्किलें हो रहीं हैं। लोगों की इसी परेशानी को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को चेता दिया है।

केंद्र की तरफ से साफ़ कहा गया है कि ‘अगर राज्य प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण को लागू करने में सक्षम नहीं है तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी अन्य मुख्य ग्रामीण योजनाओं के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को अपने समर्थन पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बात की जानकारी ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन को एक अगस्त को लिखे एक पत्र में दी गयी है।

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चेतावनी देने का क्या है कारण? 

केंद्र सरकार की यह चेतावनी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार द्वारा राज्य में इस योजना को लागू करने के लिए जरूरी अपने हिस्से के पैसे को जारी करने में विफल रहने के बाद आई है। केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY) के तहत 7.8 लाख घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा था। लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों से पता चला है कि राज्य अपने हिस्से की राशि जारी करने में बार-बार विफल हो रहा है, जिसके कारण 562 करोड़ रुपये की राशि और योजना की असंतोषजनक प्रगति के कारण इस टारगेट को वापस लेने के लिए विवश कर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक छत्तीसगढ़ एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पिछले तीन-चार साल में इस योजना को समस्या का सामना करना पड़ा है। बता दें, प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आने वाले खर्च को केंद्र और राज्य 60:10 के अनुपात में साझा करते हैं।

केंद्र की बड़ी योजनाओं में से एक प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY) पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सवाल उठाते हुए कहा था – जब आवास योजना का 40 फीसदी पैसा राज्यों का है तो नाम PM का क्यों है। यह योजना प्रधानमंत्री के नाम से है तो फिर इसमें 60:40 के हिसाब से राशि देने का अनुपात क्यों है। इस योजना में पूरी 100 फीसदी राशि ही केंद्र सरकार को देनी चाहिए या राज्यों को इस योजना का नाम रखने का अधिकार दे देना चाहिए। भूपेश बघेल का आरोप है कि केंद्र सरकार की वजह से ही पीएम आवास योजना के मकान बनने में अड़बंगा लग रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार ने छत्तीसगढ़ को मिलने वाली सेंट्रल एक्साइज की राशि नहीं दी है जो कि तकरीबन 20-22 हजार करोड़ रुपये है। साथ ही कोल ब्लॉक पेनाल्टी मामले में भी राज्य को हजार करोड़ मिलने हैं। जब तक यह राशि हमें मिल नहीं जाती तब तक PMAY के मकान नहीं बन पाएंगे। देखा जाए तो भूपेश बघेल ने घुमा फिराकर बोल दिया था कि अभी छत्तीसगढ़ में ये योजना बंद कर दी गयी है।

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क्या कहते हैं छत्तीसगढ़ के आंकड़े? 

प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी में साल 2019-2020 में 29 हजार 25 आवास स्वीकृत हुए। जबकि साल 2020-21 में 25 हजार 298 आवास की स्वीकृति प्रदान की गई। साल 2021-22 में 34 हजार 308 आवासों की स्वीकृति प्रदान की गयी। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के आंकड़ों की बात करें तो 2019-2020 में एक लाख 51 हजार 73 आवास स्वीकृत हुए जबकि 2020-21 में 2 लाख से अधिक मकानों की स्वीकृति मिली। साल 2021-22 में केंद्र सरकार ने 7 लाख 81 हजार 999 आवासों का लक्ष्य रखा गया था, जिसे भारत सरकार ने वापस ले लिया था।

2020-21 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को PMAY-G के तहत 6.4 लाख घरों का निर्माण लक्ष्य दिया था। जिसमें से राज्य ने अपने हिस्से की राशि जारी करने में वित्तीय बाधाओं और कठिनाई का हवाला दिया था। 2020-21 के लिए छत्तीसगढ़ ने केवल 1.5 लाख घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा था। इस योजना में अपने हिस्से की राशि को जारी करने के लिए कई मौकों पर संबंधित मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ सरकार से आग्रह किया। यहां तक कि इसके लिए पिछले साल जून, सितंबर और नवंबर में पत्र भी भेजे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुफ्त की सुविधाएं जैसे बिजली, किसानों का कर्ज माफ़ देने वाले राज्यों जैसे दिल्ली, पंजाब पर निशाना साधते हुए कहा था – मुफ्त की ‘रेवड़ी कल्चर’ देश के लिए बहुत घातक है। ये सिर्फ राज्यों पर कर्ज का बोझ डालेगा, जिसका खामियाजा केंद्र सरकार को भी भुगतना पड़ेगा। मोदी ने कहा था – देश के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली सभी बातों से दूर रहने की आवश्यकता है चाहे वो मुफ्त की चीज़ें ही क्यों ना हो।

आज देश के हालात ये हैं कि 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 27 में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान उनके ऋण अनुपात में 0.5 से 7.2 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। पंजाब तो अपने जीडीपी का करीब 53.3 प्रतिशत तक कर्ज में डूब चूका है। राजस्थान में यह अनुपात 39.8, पश्चिम बंगाल का 38.8, केरल का 38.3 और आंध्र प्रदेश का 37.6 प्रतिशत है। ये सभी राज्य राजस्व घाटा पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से अनुदान लेते हैं। आर्थिक रूप से मजबूत राज्य महाराष्ट्र और गुजरात राज्य भी कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी और 20 फीसदी से गुजर रहे हैं।

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