हिन्दू तीर्थ क्षेत्रों के अनोखे अर्थशास्त्र को जानिए!

हिन्दू तीर्थ क्षेत्रों की ऐसी अर्थनीति जो देश की अर्थव्यवस्था की बनती जा रही है रीढ़ की हड्डी

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पर्यटन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विस्तार देने का महत्वपूर्ण माध्यम हो सकता है। सिंगापुर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, वहीं पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था ठप भी पड़ सकती है और यह हम पर्यटन पर आधारित एक और अर्थव्यवस्था श्रीलंका की स्थिति से समझ सकते हैं। अब विशेष बात यह है कि भारत सरकार ने पर्यटन को तो विस्तार देने पर काम किया ही है लेकिन तीर्थ क्षेत्रों में विस्तार और सुविधाओं में बढ़ोतरी से भक्तों की संख्या यहां इतनी अधिक हो गयी है कि अब पर्यटन से इतर हिंदू तीर्थ क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग आर्थिक क्षेत्र भी बनता दिख रहा है जिसकी उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लगायी थी, जिस पर न रिसेशन की माया है न ही NPA का काला साया।

इस लेख में हम जानेंगे भारत की इस अनोखी उभरती अर्थव्यवस्था के बारे में जो सालों साल उभरती ही जा रही है और जिस पर हर देवी देवता की कृपा बरसती ही रहती है। जानेंगे हिन्दू तीर्थ क्षेत्र और उसके बदलते हुए अर्थशास्त्र को।

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ये सब संभव कैसे है?

कभी किसी तीर्थस्थल गए हैं आप? जैसे काशी विश्वनाथ या हरिद्वार या तिरुपति या फिर वैष्णो देवी, गए होंगे तो देख पाते होंगे कि फूल, विश्राम स्थल और प्रसाद की दुकानों के अतिरिक्त अब एकाएक भोजनालय, विशेषकर फास्ट फूड जॉइन्ट/फूड कोर्ट, चाहे देसी हो या विदेशी, बहुत तेज़ी से बढ़ने लगे हैं। उदाहरण के लिए प्रसिद्ध डेरी ब्रांड अमूल और कनफेक्शनरी ब्रांड नेस्ले की पहुंच उत्तर से लेकर दक्षिण के तीर्थस्थलों तक हो चुकी है और सागर रत्ना जैसे चर्चित रेस्टोरेंट तो वैष्णो देवी जैसे पावन तीर्थस्थल में भी दर्शनार्थियों की सुविधा और उनके विकल्पों के अनुसार भोजन तैयार करता है।

परंतु इसके पीछे का तर्क क्या है? ये संभव कैसे है? आप मानेंगे नहीं, परंतु ये पकौड़े की रेहड़ी लगाने जितना सरल है, जिसके उदाहरण पीएम मोदी भी कभी कभी अपने व्याख्यानों में दिया करते थे। मान लीजिए किसी तीर्थस्थल में आपने पकौड़े की रेहड़ी लगायी जिसमें आपने मूल सामग्री, कुछ दोने, एक ठेला और एक छोटा सा स्थल अपने लिए चुन लिया। कुल मिलाकर कितना निवेश हुआ? 3000 से 4000 रुपये। परंतु अगर आपने इसी व्यापार में अच्छा कमाया तो इसी 4000 का 40000, 40000 का 4 लाख और 4 लाख का 4 करोड़ बनते देर नहीं है।

आप सोच रहे होंगे क्या मज़ाक है परंतु चोरवाड़ में भजिया यानी पकौड़े तलते-तलते एक युवा धीरजलाल धीरुभाई अंबानी बन सकता है तो फिर कल्पना कीजिए कि हमारे तीर्थस्थलों में अवसर का कितना अनंत सागर उपस्थित है?

वर्ष 2020 में 5 अगस्त को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी थी तो उन्होंने कहा था इससे देश में बड़े स्तर पर आर्थिक फायदा भी होगा। वहीं अब एक रिपोर्ट सामने आयी है जो बताती है कि केवल राम मंदिर ही नहीं बल्कि देश की धार्मिक अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई है, यह बढ़कर कर 40 बिलियन डॉलर से ज्यादा की हो गयी है जो कि एक अलग सेक्टर बनती दिख रही है।

एनएसएसओ के सर्वेक्षण के अनुसार मंदिर की अर्थव्यवस्था 3.02 लाख करोड़ रुपये या लगभग 40 अरब डॉलर हो गयी है और GDP में इसका हिस्सा 2.32 प्रतिशत हो गया है। इसमें फूल, तेल, दीपक, इत्र, चूड़ियां, सिंदूर, चित्र और पूजा के कपड़े से लेकर सब कुछ शामिल है और माना जा रहा है कि यह और भी बड़ा हो सकता है।

साल 2022-23 में केंद्र सरकार का राजस्व 19,34,706 करोड़ रुपये है और केवल छह मंदिरों ने अकेले 24,000 करोड़ रुपये नकद एकत्र किए हैं। कुल धार्मिक क्षेत्रों की बात की जाए तो देश में 5 लाख मंदिर 7 लाख मस्जिदें और 35,000 चर्च हैं और अधिकारियों का मानना है कि हिंदू भक्तों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

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किस मंदिर को कितना दान मिला?

2021 में अयोध्या में राम मंदिर के लिए 5450 करोड़ रुपये का दान मिला, जो लगभग 5,000 करोड़ रुपये के रक्षा बजट के बराबर है। अन्य की बात करें तो तिरुमाला तिरुपति को रु. 3023 करोड़, वैष्णो देवी को 2000 करोड़ रुपये, अंबाजी को 4134 करोड़ रुपये (2019-20 में 5163 करोड़ रुपये), द्वारकाधीश को 1172 करोड़ रुपये, सोमनाथ को 1205 करोड़ रुपये, स्वर्ण मंदिर को 690 करोड़ रुपये दान मिला है। गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि, वृंदावन में बांके बिहार मंदिर, पद्मनाभ मंदिर, सिद्धिविनायक मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर की कमाई भी बढ़ी है।

एक सर्वे के अनुसार पिछले चार-पांच वर्षों में 25 प्रतिशत से अधिक भारतीय और ज्यादा हो गए हैं। धार्मिक हो 2007 और 2015 के बीच भारत में धर्म को बहुत महत्वपूर्ण मानने वाले उत्तरदाताओं का हिस्सा अब 11 प्रतिशत बढ़कर 80 प्रतिशत हो गया है जिसका मंदिरों में दान के रूप में वृद्धि स्पष्ट दिख रहा है।

ऐसा नहीं है कि यह केवल मंदिरों के दान तक ही सीमित है बल्कि इसे एक आम आदमी के तौर पर देखें तो इससे मंदिर के आस पास के पूरे क्षेत्र पर विशेष प्रभाव पड़ता‌ है। जब किसी पावन पर्व के समय बुकिंग का आप रिकॉर्ड देखें, जैसे कुम्भ मेला तो हर वस्तु की खपत काफी बढ़ जाती है परंतु ऑफ सीजन में भी कमी नहीं होती। जहां NPA या मंदी जैसे कांडों का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

रेलवे से किसी स्थान तक जाना हो, वहां किसी होटल में ठहरना हो और खाना-पीना, फिर स्थानीय तौर पर यातायात से लेकर वहां के फल फूल प्रसाद पर खर्च इन सब के पीछे भी एक बड़ी अर्थनीति काम करती है जो कि एक छोटे से स्थान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध कर सकती है। इसी के फलस्वरूप राम जन्मभूमि का फैसला आने के बाद अयोध्या में जमीन महंगी हो चुकी है। कुछ इसी तरह मथुरा से लेकर काशी विश्वनाथ सोमनाथ में जमीन काफी महंगी हो गयी है।

यही कारण है कि हिंदू तीर्थ क्षेत्र अब देश की जीडीपी तक में योगदान दे रहे हैं। इसके चलते ही मात्र जम्मू कश्मीर में 50 हजार से ज्यादा मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। वहीं कुंभ मेला भी एक प्रत्यक्ष उदाहरण है जहां भक्तों की अटूट श्रद्धा तो देखने को मिलती ही है वहीं इससे पर्यटन और अर्थनीति का अद्भुत संगम भी देखने को मिलता है जो कि देश की अर्थव्यवस्था में हिन्दू तीर्थ क्षेत्र को एक अहम स्थान देता रहा है।

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