दुनिया में मंदी, भारत में बूम, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने कर दिया कमाल

अभी क्या हुआ, अभी तो देखते जाइए!

India's Manufacturing sector

Source- TFI

हाल ही में भारत की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के ग्रोथ के आंकड़े सामने आये हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था का हाल सुनाते हैं। एस एंड पी ग्लोबल के एक सर्वे के अनुसार, भारत का मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) आठ महीने के उच्च स्तर पर आ गया है। PMI जून के 53.9 की तुलना में जुलाई में बढ़कर 56.4 हो गया है। यह संख्या पिछले 13 महीने से 50 के स्तर से ऊपर बनी हुई है। बता दें कि पीएमआई में पिछले 8 महीने में हुई यह सबसे बड़ी वृद्धि है। ज्ञात हो कि अगर पीएमआई 50 के ऊपर होता है तो उसका मतलब होता है कि इसमें विस्तार हो रहा है। वहीं, अगर यह 50 के नीचे जाता है तो संकुचन को दर्शाता है।

नए ऑर्डर और आउटपुट में वृद्धि के कारण पिछले आठ महीने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सबसे तेजी देखी गई और यह वृद्धि जुलाई माह में और भी बढ़ी क्योंकि कीमतों में कमी के कारण मांग में बढ़ोत्तरी जारी रही। सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय विनिर्माण उत्पादन पिछले आठ महीने में तेज गति से बढ़ा है। इसे देखते हुए अर्थशास्त्रियों का कहना है कि तेजी से ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी, बड़े पैमाने पर पूंजी बहिर्वाह, डॉलर के मुकाबले रुपये का कमज़ोर होना और तेजी गति से धीमी होती वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चिंताओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था लचीली बानी हुई है। एस एंड पी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में सहायक निदेशक पोलियाना डी लीमा ने कहा है कि 2022-23 की पहली तिमाही भारत के विनिर्माण उद्योग के लिए अच्छी रही है।

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यह सर्वेक्षण उन सभी आलोचकों के मुंह पर करारा तमाचा है जिनका कहना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था डूब रही है। सर्वेक्षण से साफ़ है कि यदि भारत के मैन्युफैक्चरिंग कारोबार में बढ़ोत्तरी हो रही है तो उसका कारण उसके उत्पादों की बढ़ती मांग है। कोई भी व्यक्ति उत्पाद खरीदने की क्षमता तभी रखता है जब उसके पास उसे खरीदने के लिए पैसे हों। यदि इन उत्पादों को खरीदने के लिए लोगों के पास पैसे हैं तो इससे यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि देश में भले ही कुछ चीज़ों पर महंगाई बढ़ रही हो लेकिन आम इंसान की जेब खाली नहीं है। वह अपनी ज़रूरतों और मांग दोनों को पूरा कर पाने में सक्षम है।

यही बात केंद्र और भाजपा पार्टी के सबसे बड़े आलोचक रहे अर्थशास्त्री और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी स्वीकार की है। हमेशा पीएम मोदी और मोदी सरकार के आर्थिक फैसलों के आलोचक रहे राजन ने बीते शनिवार को रायपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था का भाग्य कभी भी श्रीलंका या पाकिस्तान जैसा नहीं होगा। भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, विदेशी कर्ज कम है और देश में श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी आर्थिक समस्याएं नहीं हैं।

आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 22 जुलाई तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 571.56 बिलियन डॉलर रहा। मार्च 2022 के अंत तक भारत का विदेशी ऋण $620.7 बिलियन था और भारत का विदेशी ऋण जीडीपी अनुपात जो मार्च 2021 के अंत में 21.2% था वह घटकर 19.9% ​​हो गया है। आपको बता दें कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार सर्वाधिक ऊंचा स्तर 642.45 बिलियन डॉलर है, जो इसने 3 सितंबर 2021 को छुआ था।

रघुराम राजन ने कहा कि कम विदेशी कर्ज और उच्च विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय अर्थव्यवस्था को लचीला बनाते हैं। महंगाई पर राजन ने आरबीआई के रुख की सराहना करते हुए कहा कि नीतिगत दरों में बढ़ोत्तरी से मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति मौसमी कारकों के कारण हुई है और इसके कम होने की संभावना है।

केवल इतना ही नहीं, पिछले सप्ताह ब्लूमबर्ग ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें उन देशों की सूची थी जो आने वाले समय में व्यापारिक मंदी में जा सकते हैं। इस सूची में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और चीन जैसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों के नाम हैं जहां मंदी की संभावना सबसे ज्यादा है। वहीं, भारत में मंदी की संभावना शून्य बताई गयी है जो कि भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करती है। जहां आर्थिक मंदी के साये ने विश्वभर के देशों को डर के साये में पहुंचा दिया है वही भारत सभी बाधाओं को पार करते हुए अर्थव्यवस्था में अग्रसर होकर नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

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