सॉफ्ट पावर को हार्ड पावर में कैसे बदलें, यह भारत को ताइवान से सीखना चाहिए

ताइवान के लिए सुरक्षा कवच बन चुका है सेमीकंडक्टर उद्योग

Taiwan

अमेरिका और चीन के वर्चस्व की लड़ाई में अपनी सम्प्रभुता के लिए लड़ने वाला छोटा सा ताइवान दोनों विशाल देशों के लिए किसी हुकुम के इक्के से कम नहीं है। यही कारण है कि चीन ताइवान को छोड़ना नहीं चाहता और अमेरिका ताइवान को चीन के हाथ लगने नहीं देना चाहता। चीन की अपेक्षा हज़ारों गुना छोटे इस देश में ऐसा कौन सा ख़ज़ान है कि चीन और अमेरिका दोनों इसे अपने पक्ष में रखना चाहते हैं?

वैसे तो चीन अपनी विस्तारवादी नीति के लिए विश्वभर में कुख्यात है लेकिन ताइवान को हथियाने का लक्ष्य रखने वाले इस चीन की नजर ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योग पर भी है। ताइवान का सेमीकंडक्टर उद्योग वह कारण है जिसके लिए चीन किसी भी मूल्य पर इस छोटे से देश को हथिया लेना चाहता है।

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सेमीकंडक्टर का व्यापार ताइवान की पहचान है

यह छोटा सा देश ताइवान विश्वभर की लगभग 50% सेमीकंडक्टर के व्यापार को संभालता है। ताइवान की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी TSMC (फाउंड्री) है। ताइवान के बनाए गए सेमीकंडक्टर की सफलता और ताकत का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि Intel, Apple, AMD, Nvidia और Qualcomm जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां TSMC की क्लाइंट हैं और उनका उद्योग ताइवान की इस कंपनी के बनाए गए  माइक्रोचिप पर निर्भर करता है। TSMC $426 बिलियन मार्केट कैप के साथ दुनिया की सबसे मूल्यवान सेमीकंडक्टर निर्माण कंपनी है। यह कंपनी दुनिया के सबसे अत्याधुनिक चिप्स का उत्पादन करती है, जिससे सेमीकंडक्टर्स बनते हैं जो अमेरिकी अपने आईफोन, चिकित्सा उपकरण और लड़ाकू जेट को चलाने के लिए उपयोग करते हैं।

इस कंपनी का महत्व अमेरिका भी इतने अच्छे से जानता है कि भले ही नैंसी पेलोसी का ताइवान दौरा 24 घंटों से भी कम समय का रहा हो लेकिन इतने समय में वे Taiwan Semiconductor Manufacturing Co. यानी TSMC के चेयरमैन से भी मिली थीं। चीन की कई धमकियों के बाद भी अमेरिका की स्पीकर नैंसी पेलोसी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। 25 साल बाद यह पहली बार था जब कोई अमेरिकी स्पीकर ताइवान के दौरे पर गया, इससे पहले विपक्ष से न्यूट गिंगरिच ताइवान के दौरे पर गए थे।

नैंसी पेलोसी के ताइवान में कदम रखते ही चीन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। पेलोसी के दौरे के विरोध के रूप में मंगलवार को 21 चीनी एयरक्राफ्ट ताइवना के डिफेंस जोन में पहुंच गए, वहीं चीन ने ताइवान के पास युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया। कम से कम 11 चीनी मिसाइलों ने गुरुवार को ताइवान के उत्तर, दक्षिण और पूर्व में समुद्र पर हमला किया। यह हमला स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान से जाने के 24 घंटे से भी कम अंतराल में हुआ। हालांकि ताइवान का इन मिसाइलों से अभी तक कोई नुक्सान नहीं हुआ है लेकिन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने घोषित किया कि उसकी मिसाइलों ने “अपने सभी लक्ष्यों को सटीक रूप से मारा है.”

चीन और ताइवान के बीच बढ़ते इस तनाव में यह समझना आवश्यक है कि यदि इस समय इन दो देशों के बीच अगर युद्ध होता है तो इसके परिणाम पूरे विश्व को झेलने पड़ेंगे। यदि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने खाद्यान्न का संकट पैदा किया है तो चीन और ताइवान की लड़ाई टेक्नोलॉजी वर्ल्ड के लिए एक बड़ा संकट लेकर आएगी जिसके पीछे का कारण ये है ताइवान दुनियाभर के सबसे एडवांस सेमीकंडक्टर का गढ़ है।

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चीन को उसके हर कदम पर चेतावनी दे रहा है अमेरिका

लेकिन सेमीकंडक्टर उद्योग ही ताइवान की वह ताकत है जिसने अभी तक उसे चीन से बचाकर रखा है। एक तरह से सेमीकंडक्टर का यह उद्योग ताइवान की सॉफ्ट पावर है यानी भले ही चीन के दबदबे के चलते अधिकतर देश ताइवान को चीन से अलग नहीं मानते लेकिन ताइवान अपने सेमीकंडक्टर उद्योग के कारण अपनी एक अलग छवि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बनाने में सफल रहा है। आज दुनिया ताइवान के सेमीकंडक्टर के उद्योग पर इतनी निर्भर है कि यदि चीन और ताइवान में युद्ध का संकट उत्पन्न होता है तो हर देश का यही प्रयास होगा कि यह युद्ध टल जाए और यदि युद्ध नहीं भी टालता है तो ताइवान के चिप्स उद्योग के चलते हर देश उसे हर संभव सहायता प्रदान करने की कोशिश करेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं अमेरिका है जो चीन को उसके हर कदम पर चेतावनी दे रहा है, और चीन-ताइवान के बीच में चल रहे संघर्ष पर नज़रें गड़ाए बैठा है।

चीन भले ही ताइवान का सेमीकंडक्टर का बिज़नेस और ज़मीन चाहता है लेकिन ताइवान भी यूं ही घुटने टेक दे ऐसा तो संभव नहीं। यदि सबसे बड़ी ताकत स्वयं के काम न आये तो उसे इस तरह नष्ट कर दिया जाता है कि दुश्मन भी उसका उपयोग न कर सके। TSMC के चेयरमैन ने भी इस बात को स्पष्ट शब्दों में कहा था कि कोई भी यदि एक सैन्य बल का इस्तेमाल करता है तो आप TSMC के कारखाने को गैर-संचालनीय बना देंगे क्योंकि कोई भी TSMC को बलपूर्वक नियंत्रित नहीं कर सकता है। इस तरह से सेमीकंडक्टर का यह उद्योग ताइवान के लिए उनका सुरक्षा कवच बन चुका है।

ताइवान को देखते हुए भारत भी एक बड़ा सबक ले सकता है कि किस तरह अपनी सॉफ्ट पावर को एक मजबूत हथियार और कवच के रूप में बदला और इस्तेमाल किया जा सकता है। कई देश अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल विश्व में अपनी शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने के लिए करते हैं। वैसे ही भारत अपने यहां के मनोरंजन जगत, शास्त्रीय गीत संगीत, आईटी क्षेत्र, योग, आयुर्वेद और अपने भीतर बसे ज्ञान के भंडार को अपनी सॉफ्ट पावर बना सकता है। कल को अगर आवश्यकता हुई तो भारत अपनी उलब्धियों को अपना ढाल बनाकर दुनिया के सामने पूरी शक्ति के साथ प्रस्तुत हो सकता है।

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