‘कपटी’ चीन को इराक में दफन करने के लिए कमर कस चुका है भारत

चीन को हर मोर्चे पर कड़ी टक्कर दे रहा है भारत!

India vs China in Iraq

Source- TFI

पूरी दुनिया की नाक में दम करने वाला कपटी चीन अपनी धूर्तता से बाज नहीं आ रहा है। श्रीलंका को तबाह और पाकिस्तान जैसे देशों को बर्बादी की कगार पर लाने वाले ड्रैगन की नजर अब एक अन्य देश पर भी पड़ गई है। चालबाज चीन अब इराक को अपना नया शिकार बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए ड्रैगन के द्वारा बड़े स्तर पर इराक में निवेश किया जा रहा है। चीन का मकसद अब मध्य एशिया में दबदबा बनाना है। चीन का बढ़ता हुआ दखल इसलिए भी समस्याएं बढ़ाने वाला है क्योंकि इराक के पास तेल का अकूत भंडार मौजूद है। चीन बड़ी चालाकी से निवेश बढ़ाकर कुछ देशों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करता आया है। ड्रैगन की कर्ज वाली नीति से अब पूरी दुनिया भली-भांति वाकिफ हो चुकी है। इसलिए अब चीन तेल के बदले निर्माण डील के तहत इराक को फंसाने की तैयारी में है, जबकि खाड़ी देशों में भारत की पकड़ पहले से ही मजबूत है।

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क्या अगला श्रीलंका बन जाएगा इराक?

दरअसल, चीन की नजरें इराक के हालफाया तेल क्षेत्र पर है। यह इलाका करीब 30 किमी लंबा और 10 किमी चौड़ा है। एक अनुमान के अनुसार यहां 4.1 अरब बैरल तेल का भंडार छिपा हुआ है। इराक के इस खजाने को देखते हुए चीन ने वर्ष 2019 में उसके साथ ‘तेल के बदले निर्माण’ का एक समझौता किया था। इसके बदले में उसे हर दिन 1 लाख बैरल तेल मिल रहा है।

पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ जॉन कालाब्रेसे इस पर कहते हैं कि दशकों से चल रहे संघर्ष के कारण इराक को वर्तमान समय में बड़ी तदाद में विदेशी निवेश की आवश्यकता है। ऊर्जा सेक्टर के आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाने के लिए खास तौर पर उसे सहायता चाहिए। इसकी आड़ में ही चीन इराक में अपना दखल बढ़ाने और उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है। तमाम विशेषज्ञों द्वारा इराक को चेताया जा रहा है कि आधारभूत ढांचे से जुड़े इन प्रोजेक्ट के कारण वह श्रीलंका की तरह ही चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह से फंस सकता है।

चीनी कंपनियां वहां अपने पैर पसारने शुरू भी कर चुकी है। इराक के पूर्व प्रधानमंत्री आदिल अब्देल महदी जब चीन के दौरे पर गए थे तो उन्होंने देश में स्कूल बनाने को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। जानकारी के मुताबिक चीन अब तक इराक में 8 हजार स्कूलों का निर्माण कर चुका है। इसके अतिरिक्त चीनी कंपनी नसीरिया इलाके में एयरपोर्ट पर भी काम कर रही है। इराक चीन के विशाल “बेल्ट एंड रोड” परियोजना के कई भागीदारों में से एक है, जिसे ड्रैगन का गरीब देशों को कर्ज के जाल माना जाता है।

भारत कर रहा है अपने संबंधों को मजबूत

चीन की मध्य एशिया में बढ़ती दखल दुनिया के लिए चिंता की बात है। वह चाबहार योजना में ईरान को फंसाने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इराक से अमेरिकी सेना के वापस जाने के बाद से ही ड्रैगन ने वहां अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया था। इराक के साथ अगर चीन जुगलबंदी करने में कामयाब हो जाता है तो इससे खास तौर पर अमेरिका के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा। इराक हमेशा से ही अमेरिका का दोस्त रहा है और वह ईरान से लड़ने में भी उसकी सहायता करता आया है परंतु चीन के साथ इराक के मजबूत होते रिश्ते अमेरिका के लिए बड़ा झटका साबित होंगे।

हालांकि, देखा जाए तो वर्तमान समय में भारत ही ऐसा देश है, जो चीन की हर चाल का जवाब देने में सक्षम है। चीन भले ही इराक के माध्यम से मध्य एशिया में अपनी दखल बढ़ा रहा हो परंतु भारत इसकी भी काट निकाल सकता है। भारत के संबंध आज मध्य एशियाई देशों के साथ काफी अच्छे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मध्य एशियाई देशों के संबंध को और मजबूत करने का काम किया।

इराक के साथ भी भारत के संबंध काफी बढ़िया हैं। भारत ने यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान भले ही रूस से तेल व्यापार में जबरदस्त वृद्धि कर दी, बावजूद इसके वर्तमान समय में भी इराक भारत में तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है। तेल के मामले में भारत और इराक पुराने साथी रहे हैं। वहीं, भारत I2U2 जैसे समूह का भी हिस्सा है, जिसके माध्यम से देश मध्य एशियाई देशों के साथ अपनी साझेदारी और बेहतर कर सकता है। I2U2 गठजोड़ में भारत के साथ अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र अमीरात और इजरायल जैसे देश शामिल हैं, जिसमें भारत की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। जुलाई 2022 में इस समूह की पहली बैठक का आयोजन भी किया था। I2U2 के जरिए भारत मध्य एशियाई देशों को साधने का काम कर सकता है, जो चीन की चालाकी को नाकाम करने और उसकी रणनीतियों को विफल करने का काम कर सकती है।

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