2014 में सत्ता में आने से पहले बीजेपी के मैनिफेस्टो (घोषणा पत्र) में शामिल तीन मुद्दों ने बीजेपी को 2014 और 2019 लोकसभा के चुनाव में विजय पताका लहराने में अहम भूमिका निभाई। इसमें कोई दो राय नहीं है। बीजेपी के ये तीन मुद्दे अहम थे- धारा 370, राम मंदिर और यूनिफार्म सिविल कोड (UCC)। जिनमें से धारा 370 और राम मंदिर वाला मुद्दा तो मोदी सरकार ने 2019 में पूरा कर दिया और इसके साथ कहीं न कहीं 2023 के लोकसभा चुनाव की जीत की नींव रखी। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC), जो बीजेपी के 2019 के चुनावी घोषणा पत्र का भी हिस्सा था। वो इन दोनों मुद्दों के सामने पीछे छूट गया। लेकिन अब समय आ गया है कि मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना रुख साफ़ करें और इस पर पूरे देश में चर्चाएं शुरू करवाएं।
जैसे धारा 370, राम मंदिर और तीन तलाक़ के समय करवाई थी। क्योंकि मोदी सरकार का इतिहास रहा है कि ये कोई भी बड़ा मुद्दा सुलझाने से पहले पूरे देश में उस विशेष मुद्दे को लेकर देश में माहौल बनाती है, लोगों की राय जानती है फिर देश में चर्चा और बहस का दौर शुरू करवाती है। जिनका सरासर लाभ भी मोदी सरकार को मिलता आया है। सरकार को ये स्पष्ट पता चल जाता है कि देश का बहुसंख्यक और देश की आम जनता कोई विशेष मुद्दे को लेकर आख़िरकार चाहती क्या है। हालांकि विपक्ष UCC को लेकर हमेशा बीजेपी पर देश को तोड़ने का आरोप लगाता रहा है। विपक्ष का कहना है कि “UCC के लागू हो जाने से लोगों की आजादी छीन जाएगी।” लेकिन बीजेपी का कहना है “UCC के लागू होने से देश के सभी लोग एक ही दायरे में आ जाएंगे और धर्मों के बीच भेदभाव कम होगा।”
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बीजेपी को 2023 से पहले UCC को लाना सही समय होगा
बीजेपी अभी केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ एक मजबूत स्थिति में विराजमान है। जिसका फ़ायदा बीजेपी को राज्यसभा में भी बहुमत के रूप में मिल रहा है। देश के 19 राज्यों में बीजेपी सत्ता में हैं या अपने सहयोगियों के साथ गठबंधन में शामिल हैं। इस लिहाज़ से बीजेपी को यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) को पूर्ण रूप से लागू करवाने में कोई खासा दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।
क्योंकि किसी भी कानून को संसद में पारित करवाने में सबसे ज्यादा ज़रूरी तो नंबर का ही खेल होता हैं। जो बीजेपी के पास मौजूद हैं। समय-समय पर बीजेपी के बड़े-बड़े नेता जैसे गिरिराज सिंह, किरोड़ी लाल मीणा, निशिकांत दुबे ने UCC का मुद्दा उठाते रहें हैं। इन नेताओं ने UCC को समय की मांग बताया है और कहा है कि “देश में अब UCC लागू होना चाहिए।” बीजेपी शासित राज्य असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा शर्मा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तो UCC को देश में लागू करने की कई बार सामने आके कवायद की हैं।
UCC पर प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने की कोशिश भी हो चुकी है
संसद में बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा और निशिकांत दुबे कई बार यूनिफार्म सिविल कोड पर प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने की कोशिश कर चुके हैं। लेकिन ये बिल हमेशा किसी न किसी कारणवश ठंडे बस्ते में चला जाता है। लेकिन UCC मामले में उत्तराखंड राज्य पहले ही एक कदम आगे बढ़ चुका है। उत्तराखंड में UCC को लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है। इस समिति के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही दिए हैं। इससे साफ पता चलता है कि कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास बना हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अन्य राज्यों से UCC पर अपने राज्य द्वारा अपनाए जा रहे मॉडल का पालन करने की अपील की थी।
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UCC पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है
यूनिफार्म सिविल कोड पर सुप्रीम कोर्ट कई बार बात कर चुका है। लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अभी भी निलंबित है। दिल्ली हाईकोर्ट भी UCC पर कई बार टिप्पणियां कर चुका है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणियों से पता चलता है कि कहीं न कहीं इनका रुख UCC को देश में लागू करने को लेकर नर्म है। अगर बात दाखिल याचिकाओं की करें तो सुप्रीम कोर्ट में UCC लागू करने के लिए 5 स्थानांतरण याचिका दायर हो चुकी है। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट में UCC लागू करने वाली 6 याचिका निलंबित है।
क्यों ज़रूरी है यूनिफार्म सिविल कोड
भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में यूनिफार्म सिविल कोड का उल्लेख मिलता है। जहां राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में संविधान में राज्य को यूनिफार्म सिविल कोड के लिए प्रयास करने के लिए निर्देशित किया गया है। दरअसल, दुनिया के किसी भी देश में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून नहीं है। लेकिन भारत में अलग-अलग धर्मों के मैरिज एक्ट हैं। अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ हैं। मुस्लिम के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है। ऐसा क्यों? कुछ भी हो जाएं वो शरिया लॉ के हिसाब से चलता है। जब देश एक है तो अलग-अलग कानून क्यों हैं। इसी प्रकार हिन्दू पर्सनल लॉ है। इन सभी वजहों से विवाह, जनसंख्या समेत कई तरह का भारत में सामाजिक ताना-बाना भी बिगड़ा हुआ है। इसीलिए देश के कानून में UCC की शीघ्र जरूरत है। जो सभी धर्म, जाति, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए। सभी को समान अधिकार मिले और भेद-भाव समाप्त हो।
यूनिफार्म सिविल कोड के खिलाफ कौन
UCC के खिलाफ देश के मुस्लिम धड़े हैं। ये लोग शरिया कानून की वकालत करते हैं और धार्मिक रीति-रिवाज को सबसे ऊपर रखना चाहते हैं। लेकिन यह भारत के संविधान के खिलाफ है। क्योंकि आर्टिकल 44 के हिसाब से सिद्धांत अलग हो सकते हैं। लेकिन कानून सभी भारतीयों के लिए एक समान होना चाहिए। यहां हम आपको बता दें, UCC मुख्य रूप से चुनावी मुद्दा 1985 में शाह बानों केस के बाद बना था। जहां बहस का मुद्दा था, क्या कुछ कानूनों को बिना किसी इंसान का धर्म देखें सभी पर लागू किया जा सकता है।
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साफ तौर पर कहें तो यूनिफॉर्म सिविल कोड से किसी का कोई नुकसान नहीं है। यह आपको किसी धर्म को मानने या नहीं मानने की रोक-टोक नहीं लगा रहा है। आप चाहें तो हिंदू धर्म के तरीके से शादी करें चाहें मुस्लिम तरीके से। यूनिफॉर्म सिविल कोड बस आपको वह अधिकार दिलाएगा जो भारत का नागरिक होते हुए आपके पास होने चाहिए। इस कानून को हमेशा ही राजनीतिक चश्मे से देखा जाता रहा है। लेकिन मुख्य तौर पर अगर इसे समाज के नजरिए से देखा जाए तो यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता, सशक्तिकरण, जागरूकता, कानून का सम्मान, प्रगतिवाद और सच्चा उदारवाद लेकर आएगा।
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