देखो जी, लाल सिंह चड्ढा बड़ी चंगी फिल्म सी! ओ न जी न! चकित मत होइए! ये ऐसे नहीं बोलदे सी, ये जांची परखी बात है। लाल सिंह चड्ढा न बड़ी इंस्पाइरिंग फिल्म है जी! इतनी इंस्पाइरिंग फिल्म कि ये आपको हॉल से सीधे पास वाले दवाई की दुकान की ओर ले जाएगी और आपको सेरिडॉन या क्रोसिन के बीच किसी एक को चुनने पर विवश करेगी। आमिर खान ने एक मास्टरपीस को बिगाड़ा ही नहीं है बल्कि उसके टुकड़े-टुकड़े कर, पेट्रोल डालकर उसे प्रेम से अग्नि को समर्पित कर हम सभी को उसके प्रदर्शन के लिए बुलाया है। इस आर्टिकल में हम लाल सिंह चड्ढा (Lal Singh Chaddha review) के कर्मकांड के बारे में जानेंगे और यह भी जानेंगे कि क्यों यह फिल्म इतनी बेकार है कि इसे किसी बॉयकॉट कैंपेन की आवश्यकता ही नहीं थी।
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दरअसल, जिस बात का भय था वही हुआ और रजके हुआ। आमिर खान ने मिस्टर परफेक्शनिस्ट की भूमिका को आत्मसात करते हुए एक और फिल्म का सत्यनाश कर दिया और इस बार लक्ष्य भेदा ‘फॉरेस्ट गम्प’ पर, जो ऑस्कर विजेता रॉबर्ट जिमेकिस द्वारा निर्देशित एवं टॉम हैंक्स द्वारा अभिनीत एक विश्वप्रसिद्ध फिल्म है। 1994 में इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर पुरस्कार भी मिला था। पर चलिए, रीमेक ही बनानी थी तो थोड़ा तो डेडिकेशन दिखाते। पर नहीं जी, उन्हें तो गोबर करना है और उसका पहाड़ बनाना है क्योंकि जिस हिसाब से फिल्म बनाई है, उसे देखकर विश्वास ही नहीं होता कि इसके रीमेक राइट्स के लिए 14 वर्ष तक वो पैरामाउंट पिक्चर्स से खींचातानी कर रहे थे?
देखिए, बॉयकॉट तो हम भी कर सकते थे पर आदत से मजबूर हैं, बिना जांचे नहीं समझ सकते कि जहर जहर होता है कि नहीं और यह फिल्म जहर नहीं, जैविक हथियार का भी बाप है! इस फिल्म ने तो इतिहास का अस्थिपंजर कर दिया, एल्विस प्रेसले के स्थान पर शाहरुख खान कुछ नहीं तो निशान-ए-पाकिस्तान के लिए अगले दावेदार निस्संदेह अतुल कुलकर्णी को माना जा सकता है। वियतनाम युद्ध की तुलना कारगिल से करना एक बात पर लेफ्टिनेंट डैन जैसे चरित्र को एक शत्रु, आतंक समर्थक चरित्र में परिवर्तित करना और उसके माध्यम से आतंकवाद का महिमामंडन कर कैप्टन सौरभ कालिया, स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा, कैप्टन मनोज कुमार पांडेय, कैप्टन विक्रम बत्रा और असंख्य योद्धाओं के बलिदान का जो उपहास उड़ाया गया है और उसपर अस्वीकरण का पोस्टर लगाकर बचने का असफल प्रयास किया गया है, उससे क्या सिद्ध करना चाहते हैं आमिर खान और उनकी टीम?
अभी तो हमने इस फिल्म के मास्टरक्लास एक्टिंग पर चर्चा भी प्रारंभ नहीं की है। अगर मोना सिंह, नन्हेलाल एवं रुपा को छोड़ दें तो इस फिल्म में आपको अधिक देर तक बांधने के लिए कुछ भी नहीं है। एक्टिंग कोई मैगी नहीं है कि कुछ मिनट में बनकर तैयार हो जाए परंतु इस फिल्म में आमिर खान की हरकतों से तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है! आमिर खान को सोचना चाहिए कि बार बार ‘पीके’ वाला लुक दिखाकर वो एक्टिंग के सरताज नहीं बन सकते और अगर ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अर्जुन कपूर भी उनसे बढ़िया एक्टिंग कर नेशनल फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर लेंगे और किसी को कोई आश्चर्य भी नहीं होगा!
बात यही है कि सच में लाल सिंह चड्ढा को बॉयकॉट की आवश्यकता नहीं थी, उसके लक्षण तो ट्रेलर में ही दिखने लगे थे परंतु रही सही कसर फिल्म ने पूरी कर दी। एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है और यही बात लाल सिंह चड्ढा के लिए आमिर खान पर भी लागू होती है।
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