बिलकिस बानो के बारे में बात करनी ही पड़ेगी

बलात्कार के दोषियों को सज़ा देना ही भारत की संस्कृति है।

बिलकिस बानो

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बलात्कार हमारे समाज में एक दंश की तरह है। बलात्कार तो बलात्कार होता है, चाहे वह किसी भी महिला के साथ हो और इसके दोषी कड़ी से कड़ी सजा पाने योग्य होते हैं। परंतु अफसोस तब होता है, जब नारी अस्मिता, मानवीय संवेदनाओं को ताक पर रखकर न केवल बलात्कारियों को छोड़ा जाता है परंतु इसके साथ ही उन्हें किसी हीरो की तरह सम्मानित किया जाता है। पिछले कुछ दिनों से बिलकिस बानो मामला को लेकर पूरे देश में चर्चाएं जोरों पर हैं। गुजरात सरकार द्वारा जब से बिलकिस बानो के बलात्कारियों को रिहा किया गया है, तब से ही इसका चौतरफा विरोध हो रहा है। लोग इसे लेकर गुजरात सरकार पर प्रश्न भी खड़े कर रहे हैं।

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समझिए पूरा मामला

बिलकिस बानो से जुड़ा यह मामला दो दशक पुराना है। वर्ष 2002 में गुजरात दंगों की आग में झुलस गया था। फरवरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन को गोधरा रेलवे स्टेशन पर उन्मादी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था। इस दौरान 59 हिंदुओं की जलकर मृत्यु हो गई थी। इसमें अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्री और कार सेवक शामिल थे। गोधरा स्टेशन पर हुए इस अग्निकांड के बाद राज्य में हिंसा भड़क उठी।

गुजरात में हिंसा भड़कने के बाद बिलकिस अपने परिवार के साथ राधिकपुर गांव से निकल गई और 3 मार्च 2002 को पूरा परिवार छप्परवाड़ गांव पहुंच गया। बिलकिस के परिवार में कुल 17 सदस्य थे, जिसमें उनकी साढ़े तीन वर्षीय एक बेटी भी शामिल थी। इस दौरान 20 से 30 लोगों की भीड़ ने मिलकर बिलकिस के परिवार पर हमला कर दिया। बिलकिस, उनकी मां और तीन अन्य महिलाओं को बुरी तरह मारा गया। साथ ही उनके साथ बलात्कार की घटना को भी अंजाम दिया गया। इस घटना के दौरान बिलकिस के परिवार के सात लोगों की मृत्यु हो गई, उनकी तीन वर्षीय बेटी भी मारी गई।

दिल दहला देने वाली घटना के सामने आने के बाद मामले ने तूल पकड़ा और इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार CBI को सौंपी गई। लंबे समय तक चली कानूनी लड़ाई के पश्चात 21 जनवरी 2008 को CBI की विशेष अदालत ने सामूहिक बलात्कार और बिलकिस के परिवार के सात सदस्यों की मृत्यु के मामले में 11 लोगों को दोषी माना और उन सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। परंतु अब 15 अगस्त 2022 को सजा माफी नीति के आधार पर बिलकिस बानो मामले के सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया। यह निर्णय 1992 की माफी नीति के आधार पर लिया गया, जिसके तहत किसी भी श्रेणी के दोषी को रिहा करने पर कोई रोक नहीं है।

हालांकि, गुजरात सरकार इस नीति को बदल चुकी है। सरकार ने वर्ष 2014 में नई नीति बनाई थी, जिसके अनुसार कई श्रेणी के दोषियों की रिहाई पर रोक लगाई गई, जिसमें बलात्कार और हत्या के दोषी को सजा माफी नहीं देने का प्रावधान था। परंतु बिलकिस बानो का मामला वर्ष 2002 का था, इसलिए इस मामले में 1992 वाली माफी नीति लागू की गई। दोषियों को जिन नियमों के आधार पर छोड़ा गया, केंद्र सरकार तक उसके खिलाफ है और इस पर रोक लगा चुकी है।

महिलाओं को लेकर स्पष्ट रही है केंद्र सरकार की नीति

दरअसल, जून 2022 में अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के तौर पर केंद्र सरकार द्वारा दोषी कैदियों की रिहाई को लेकर राज्यों को कुछ विशेष दिशानिर्देश जारी किए गए थे, जिसके अनुसार बलात्कार के दोषियों को समय से पहले रिहाई का हक नहीं है। लेकिन इस निर्णय को लेते हुए नारी सम्मान को ताक पर रखा गया, मानवीय संवेदनाओं की जरा भी परवाह नहीं की गई। बलात्कार हमारे समाज को कलंकित करने का काम करता है। इसे जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है परंतु जब इस तरह से दोषियों को यूं ही छोड़ दिया जाएगा, न्याय का उपहास उड़ाया जाएगा, तो इस पर प्रश्न तो उठेंगे ही।

केवल इतना ही नहीं, जेल से बाहर आने के बाद फूल माला पहनाकर उन्हें सम्मानित किया गया। यही कारण है कि लोगों का गुस्सा इस पूरे मामले पर फूट पड़ा है। स्वयं भाजपा भी दोषियों को यूं सम्मानित करने को गलत बता रही है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दोषियों को अगर सम्मानित किया गया है तो यह ठीक नहीं है और ऐसे कृत्यों का कोई स्पष्टीकरण नहीं हो सकता।

ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार जब से देश की सत्ता में आई है, वह महिलाओं को आगे बढ़ाने, नारियों को सम्मान देने के प्रयास करती आई है। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान की शुरुआत मोदी सरकार ने ही की। इसके अलावा बलात्कार के दोषियों को कठोर सजा दिलाने के लिए कानून में भी बदलाव किया। वर्ष 2018 में कानून में जो मुख्य बदलाव हुए, उसमें बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया। इसके अलावा 16 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों के मामले में कानून को और सख्त करते हुए सजा कम से कम 20 वर्ष कर दी गई थी। अब इस मामले में बलात्कार के दोषियों को छोड़ने पर चाहे जो कुछ भी तर्क क्यों न दिया जाए परंतु यह स्पष्ट है कि यह गलत निर्णय है और इसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता!

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