अगर राजनीति में भी फिल्मों की भांति अवार्ड देने की प्रक्रिया होती तो धोखा देने वाली कैटेगरी में लाइफ टाइम अचीवमेंट का अवार्ड बिहार के पलटू कुमार अर्थात नीतीश कुमार को ही दिया जाता। एक निश्चित समय अंतराल के बाद वो अपनी बेस्ट कैटेगरी में अवार्ड विनिंग परफॉमेन्स देते रहते हैं। बिहार की राजनीति को हमेशा सुर्ख़ियों में रखना, अपने राजनीतिक सहयोगियों को शॉक देना एक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने से भी कहीं ज्यादा ज़रूरी हैं नीतीश कुमार के लिए।
हम ऐसा इसलिए कह रहें हैं क्योंकि बिहार की राजनीति पिछले 20 घंटों से गरमाई हुई हैं। ऐसी आशंका लगायी जा रही हैं कि आने वाले समय में बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला हैं। जिसका सारा श्रेय हमारे पलटू चाचा, पलटू कुमार उर्फ नीतीश कुमार को जाता है।
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दरअसल, जेडीयू और बीजेपी के बीच की तनातनी के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर राजनीतिक हालातों पर बात की। इस बातचीत के बाद जेडीयू ने अब मंगलवार को अपने सभी सांसदों और विधायकों की बैठक की। इस बीच आरजेडी नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी सक्रिय हो गए और अपने विधायकों की बैठक बुलायी। सूत्रों के अनुसार राज्य में तीन महत्वपूर्ण दलों के विधायक दल की बैठकें होने वाली हैं। जिनमें नीतीश कुमार की जेडीयू, तेजस्वी यादव की आरजेडी और जीतनराम मांझी की हम जैसी पार्टियां शामिल होंगी। अचानक इन सभी राजनीतिक प्रकरण से ऐसा लगने लगा हैं कि नीतीश कुमार कहीं फिर से अपने गठबंधन सहयोगी के पीठ में छुरा घोंपने की तैयारी में तो नहीं लगे हैं। अगर वो बीजेपी के साथ ऐसा करते भी हैं तो इसमें कोई नयी बात नहीं होगी। ऐसे कारनामें वो इतिहास में कई बार दर्ज करा चुके हैं।
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आरसीपी सिंह के इस्तीफे से जेडीयू बैकफुट पर
जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम चंद्र प्रसाद (RCP Singh) ने शनिवार को अपनी पार्टी जेडीयू से इस्तीफा दे दिया था। नीतीश कुमार के बेहद करीबी और दाएं हाथ माने जाने वाले आरसीपी सिंह का अचानक पार्टी से इस्तीफा देना काफी चौंकाने वाला था। ऐसी खबरें सामने आयीं कि आरसीपी सिंह की बीजेपी के साथ नजदीकियां बहुत बढ़ रही थीं जो नीतीश कुमार को पसंद नहीं था। जिसमें आग में घी डालने का काम जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने भी किया क्योंकि ललन सिंह और आरसीपी सिंह के बीच शुरुआत से ही इस बात को लेकर अनबन रहती थी कि “कौन जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद दूसरे नंबर का नेता है।”
अभी जेडीयू के बिहार विधानसभा में 45 विधायक हैं लेकिन इनमें लगभग 20-25 वैसे विधायक हैं जो आरसीपी सिंह के साथ सम्पर्क में हैं। यदि नीतीश कुमार 2015 की भांति महागठबंधन (आरजेडी और कांग्रेस) में शामिल होते हैं तब भी नीतीश कुमार के साथ उनके काफी कम विधायक जाएंगे। अगर बात बिहार की विधानसभा में स्थिति की करें तो बीजेपी के पास 77, आरजेडी के पास 80, कांग्रेस के पास 19 और भाकपा माले के पास 12 सीटें हैं। बता दें, जब से नीतीश कुमार और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ईद की इफ्तार पार्टी में मिले हैं तब से ही मीडिया में ऐसी खबरें आ रही थीं कि नीतीश और तेजस्वी के बीच कुछ तो राजनीतिक खिचड़ी पक रही है। ऊपर से हमेशा गठबंधन में रहने के बावजूद बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के बीच किसी ना किसी मुद्दे को लेकर जुबानी जंग चलती ही रहती हैं।
नीतीश का तेजस्वी के साथ जाना मतलब ‘सन्यास’
अगर नीतीश कुमार फिर से तेजस्वी यादव के साथ जाते हैं। तो इस बार 2015 वाली राजनीतिक स्थिति नहीं होगी क्योंकि उस समय नीतीश कुमार की पार्टी के पास ज्यादा सीटें थीं जबकि आरजेडी के पास उनसे कम। दूसरी तरफ आरजेडी की तत्कालीन स्थिति लालू यादव के चारा घोटाला में जेल जाने के कारण हाशिए पर थी, जिसके कारण तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री पद से संतोष कर लिया था लेकिन आज लगभग सात साल बाद परिस्थितियां विपरीत हैं।
जहां जेडीयू का सूरज अस्त होने के कगार पर हैं तो वहीं आरजेडी ने राजनीति के खेल में जबरदस्त कमबैक किया है। एक तरफ जहां नीतीश कुमार बेबस और लाचार लग रहे हैं तो दूसरी तरह तेजस्वी यादव ने बिहार की राजनीति में अपना कद कई गुना बढ़ा लिया है। इनके नेतृत्व में आरजेडी बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी हैं। इस लिहाज़ से भले ही नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल हो जाएं लेकिन इस बार तेजस्वी उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी का सुख भोगने नहीं देंगे। चाहे नीतीश कुमार कितने भी हाथ-पैर क्यों न मार लें, अधिक से अधिक होगा तो नीतीश कुमार को उपमुख्यमंत्री का पद दे दिया जाएगा, जो उनके राजनीतिक जीवन का आखरी पद होगा और उनके राजनीति जीवन का अंतिम समय। बात यहीं समाप्त नहीं होगी, तेजस्वी बिहार सरकार के बड़े मंत्रालय जैसे वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा, गृह और ग्रामीण भी अपने पास रखेंगे और जेडीयू को वही मिलेगा जिसके वो हालिया स्थिति में हकदार हैं।
वैसे भी बिहार की जनता नीतीश कुमार से त्रस्त हो गयी है और मुख्यमंत्री के रूप में कोई नया चेहरा ढूंढ रही हैं। नीतीश कुमार का शासन बिहार में पिछले 17 सालों से हैं, उनसे बिहार किसी भी मोर्चे पर अब संभल नहीं रहा। एक मुख्यमंत्री के रूप में वो पूरी तरह से थक गए हैं। बिहार की जनता अब बदलाव चाहती है, वो बिहार में एक नया मुख्यमंत्री देखना चाहती हैं। बात तो स्पष्ट है कि आने वाले समय में बिहार में जेडीयू का मुख्यमंत्री देखना स्वप्न हो जाएगा।
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