मार्गरेट अल्वा का हारना निश्चित था लेकिन क्रॉस वोटिंग ने 2024 का निर्णय भी कर दिया

विपक्षी एकता का ढोल बुरी तरह से फट गया है!

NDA

Source- TFI

‘विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट है। हम मोदी सरकार को सबक सिखाकर रहेंगे। हम एक साथ सरकार को सत्ता से हटाकर ही दम लेंगे’, विपक्षी एकता से जुड़ी ऐसी तमाम बातें आप लंबे समय से सुनते आ रहे होंगे। परंतु क्या वाकई में विपक्ष एकजुट है या फिर उनकी एकता ढोंग के सिवा कुछ और है ही नहीं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर हुई वोटिंग के बाद कुछ इसी तरह के प्रश्न सामने आ रहे हैं। साथ ही माना यह भी जा रहा है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव ने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का निर्णय भी तय कर दिया है।

दरअसल, हाल ही उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए वोटिंग हुई, जिसमें भाजपा के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के विरुद्ध विपक्ष ने मार्गरेट अल्वा को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था। जैसा कि पहले से ही प्रतीत हो रहा था, जगदीप धनखड़ इस चुनाव में विजयी घोषित हुए और मार्गरेट अल्वा को इस दौरान हार का सामना करना पड़ा। मार्गरेट अल्वा की हार छोटी-मोटी नहीं थी बल्कि विपक्षी नेताओं की क्रॉस वोटिंग के कारण उन्हें उपराष्ट्रपति चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। केवल भाजपा के पक्ष वाले नेताओं ने ही जगदीप धनखड़ के समर्थन में बढ़ चढ़कर वोटिंग नहीं की बल्कि विपक्ष के कई नेताओं ने भी उनके समर्थन में वोट डाले।

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NDA उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के समर्थन में 528 वोट पड़े और इसी के साथ वो देश के अगले उपराष्ट्रपति बन गए, जबकि उनकी विरोधी मार्गरेट अल्वा को 182 वोट ही मिले। इसके अलावा 15 वोटों को अमान्य घोषित किया गया। इस चुनाव में इतनी बेहतरीन जीत हासिल कर धनखड़ ने कई बड़े रिकार्ड भी बना दिए।

इस चुनाव में विपक्षी एकता में फूट देखने को मिली। विपक्षी पार्टियों के कई नेताओं ने धनखड़ के सपोर्ट में मतदान किया। वहीं, TMC जिसने इन चुनावों से दूरी बनाई थी, उसके कुछ नेताओं ने पार्टी लाइन से इतर जाकर चुनाव के दौरान वोट डाले। शुभेंदु अधिकारी के पिता शिशिर और भाई दिब्येंदु अधिकारी ने पार्टी का फैसला नहीं माना और उन्होंने वोटिंग की। TMC ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने का इसलिए निर्णय लिया था क्योंकि पार्टी का कहना था कि मार्गरेट अल्वा के नाम पर मुहर लगाने से पहले उनसे सलाह नहीं ली गई थी।

उपराष्ट्रपति चुनाव में मिली करारी हार के बाद मार्गरेट अल्वा विपक्ष पर भड़क उठीं। उन्होंने अपनी हार के लिए विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि यह चुनाव विपक्ष के लिए अतीत की बातों को भूलकर एक साथ काम करने और एक दूसरे पर भरोसा बनाने के लिए था। भाजपा का प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर समर्थन करके, कुछ पार्टियों और उनके नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है। दुर्भाग्य से, कुछ विपक्षी पार्टियों ने एकजुट विपक्ष के विचार को पटरी से उतारने के प्रयास किए। बता दें कि बसपा और टीडीपी ने पहले ही धनखड़ को समर्थन देने का ऐलान किया था। इसके अलावा भी कई विपक्षी नेताओं ने जगदीप धनखड़ के पक्ष में वोटिंग की।

इससे पहले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी ऐसी ही तस्वीरें देखने को मिली थी, जब विपक्षी एकता की पूरी की पूरी हकीकत सभी के सामने आ गई थी। द्रौपदी मुर्मु देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनीं और इन चुनावों में भी विपक्ष द्वारा जमकर क्रॉस वोटिंग की गई थी। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्ष के 17 सांसदों और 126 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी। इसी के साथ द्रौपदी मुर्मु ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में कामयाब हुई और उन्हें देश की राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल हुआ।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान हुई क्रॉस वोटिंग से यह तो स्पष्ट है कि विपक्षी एकता महज दिखावा है। मोदी सरकार के विरुद्ध विपक्ष एकजुट नहीं है और इसके पीछे का कारण यह नजर आता कि विपक्षी नेताओं को अच्छी तरह से मालूम है कि सरकार की लोकप्रियता के आगे विपक्ष दूर दूर तक टिकता ही नहीं। यही कारण है कि पिछले दरवाजे से कई छोटी पार्टियां और नेता एनडीए को अपना समर्थन देते आ रहे हैं। इससे साबित हो जाता है कि विपक्षी एकता और एकजुटता के तमाम दावे खोखले हैं।

विपक्ष में पड़ी इस फूट का सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही होने वाला है। एक तो विपक्ष पहले से ही काफी कमजोर है और ऊपर से कथित विपक्षी एकता यूं बिखरती चली जाएगी तो इससे भाजपा को ही और मजबूत होने का मौका मिलेगा। पूरी स्थिति का आंकलन करने के बाद तो यही प्रतीत होता है कि मानो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव तो महज ट्रेलर है, पूरी पिक्चर तो अभी बाकी है और यह पिक्चर हमें 2024 लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकती है।

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