रूस को लेकर भारत को हड़काने वाले देशों को विदेश मंत्रालय की खरी-खरी

भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी तरह की रोकटोक बर्दाश्त नहीं की जाएगी!

S Jaishankar

Source- TFIPOST

लातों के भूत बातों से नहीं मानते। परंतु ये बात कुछ लोगों को हजम नहीं होती और बार बार उन्हें स्मरण कराना पड़ता है। इस बात को सार्वजनिक करते हुए विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि रूस के साथ उसके जो भी संबंध है, उससे किसी को कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए और उसके लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सम्पूर्ण पश्चिमी जगत को खरी खोटी भी सुनाई है। विदेश मंत्रालय ने मीडिया को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया, “देखिए, हमारे निर्णय, चाहे तेल को लेकर हों या फिर किसी अन्य वस्तु को लेकर, जैसे ऊर्जा, सुरक्षा आवश्यकता इत्यादि, वो सभी हमारे दृष्टिकोण पर आधारित होगा।”

मंत्रालय ने अप्रत्यक्ष रूप से पाश्चात्य जगत को भारत की रूस से निकटता पर आलोचना के लिए आड़े हाथों लेते हुए कहा, “हम जो भी कुछ कर रहे हैं, अपनी इच्छा अनुसार कर रहे हैं और हमें नहीं लगता है कि हमें इसके लिए किसी की आज्ञा की आवश्यकता है या हम पर किसी प्रकार के दबाव का आभास है।” ज्ञात हो कि ये प्रथम ऐसा अवसर नहीं है जब विदेश मंत्रालय ने पाश्चात्य जगत को उसके दोहरे मापदंडों के लिए खरी खोटी सुनाई है। वन चाइना पॉलिसी पर भारत के विचारों के लिए भी भारत ने स्पष्ट किया कि उसको जो कहना था, वो कह चुका है और बार बार स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है।

और पढ़ें: भारत अब इराक के बाद रूस से लेता है सबसे ज्यादा तेल, सऊदी अरब छूटा पीछे

यह परिवर्तन यूं ही नहीं आया। विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के नेतृत्व में भारत ने अमेरिका और चीन को न केवल निर्भय होकर उत्तर देना अपितु कूटनीति के मैदान में पटक पटक कर धोना भी सीख लिया है। इसका प्रमाण तो उसी समय मिल गया, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के समय भारत ने अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए अमेरिकी गुट के समक्ष घुटने नहीं टेके।

TFI Post के ही एक विश्लेषणात्मक लेख के अंश अनुसार, “रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी देखने को मिला कि भारत शुरू से लेकर अब तक अपने रवैये पर तटस्थ रहा है। भारत ने न तो रूस का साथ दिया और न ही यूक्रेन का। ऐसा कर भारत ने किसी को नाराज भी नहीं किया परंतु यह संभव कैसे हो पाया? इन सबके पीछे की वजह है “कृष्ण कूटनीति” जिसके रास्ते पर भारत की विदेश नीति चलायी जा रही है। देखा जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध का मामला एक बहुत ही जटिल मुद्दा था और भारत के लिए इसमें किसी एक का पक्ष लेना संभव नहीं था। अगर भारत यूक्रेन का पक्ष लेता तो इसकी आंच भारत और रूस की दोस्ती पर आ जाती। वहीं, अगर देश रूस के पक्ष में खड़ा होता तो पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका के साथ भारत के संबंध बिगड़ने के आसार थे। ऐसे में भारत ने बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया और इसके लिए अपनायी “कृष्ण कूटनीति”

इसके अतिरिक्त समय-समय पर जब भी अमेरिका ने तेल का मुद्दा उठाने का प्रयास किया, जयशंकर ने तुरंत यूरोप और अमेरिका के तेल खपत की पोल खोल दी और परिणाम यह हुआ कि अब दूसरे द्वार से दोनों ही गुटों को अपने निर्णयों पर दोबारा सोचने पर विवश होना पड़ रहा है। एक ही तीर से दो निशाने साध कर भारत ने अपनी कूटनीति का बेजोड़ परिचय दिया है और अब पश्चिमी जगत को स्पष्ट कर दिया है कि रूस के साथ वो जब चाहे, जैसे चाहे, वैसे कूटनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध स्थापित करेगा, जिस पर किसी भी तरह की रोकटोक बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version